सांचौर(जालोर).जालोर के कुंडकी गांव में होली के दूसरे दिन यानि धुलंडी को पहलवानी की परंपरा है. सैकड़ों साल से निभाई जा रही इस परंपरा के तहत करीब 800 किलो के पत्थर को उठाकर दूसरी तरफ गिराना होता है. इसके बाद ही पहलवानी साबित होती है.
जालोर में धुलंडी पर पहलवानी परखने की परंपरा बताया जाता है कि करीब 200 साल पहले चूना पिसाई के लिए ये पत्थर लाया गया था. तभी से पहलवानी परखने की परंपरा शुरू हो गई. यहां 800 किलो वजन के इस पत्थर को लोग स्थानीय भाषा में घट कहते हैं. जो भी व्यक्ति इस पत्थर को पलट देता है, उसे पहलवान माना जाता है.
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आसपास के गांवों से हजारों लोग धुलंडी के दिन यहां आते हैं और पहलवानी साबित करने की प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं. हर साल चार-पांच लोग इस पत्थर को पलटने में कामयाब होते हैं.
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि ये पत्थर करीब 200 साल पहले यहां मंदिर, कुआं और टांका बनाने के लिए चूना पिसाई की चक्की के लिए लाया गया था, तभी ये परंपरा शुरू हो गई. ज्यादातर एक ही परिवार के सदस्य इसे पिछले 200 साल से उठा पा रहे हैं. ये पत्थरकुंड गांव के मोतीराम गोदारा का परिवार है. इसी परिवार के सबसे ज्यादा लोग हर होली पर इस पत्थर को उठाते हैं और ये परिवार ताकतवर माना जाता है. पिछले होली पर भी इसी परिवार के सबसे ज्यादा सदस्यों ने इस घट को उठाया था.
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माना जा रहा है कि हर साल की तरह इस साल भी होली के मौके पर आस-पास के सैकड़ों युवा पहलवान बनने के लिए इस 800 किलो केपत्थर को उठान की कोशिश करेंगे. साथ ही इस परंपरा को देखने के लिए भी कई लोग उमड़ेंगे.