जालोर.जिले के देवड़ा गांव निवासी पीराराम धायल, जिन्होंने सीआरपीएफ की सरकारी नौकरी छोड़कर वन्य जीवों के उत्थान के लिए काम करने की ठानी और घायल अवस्था में वन्यजीवों के उपचार करने का कार्य शुरू किया. पिछ्ले 7 साल में करीब 900 घायल हिरणों का उपचार कर, उन्हें वापस जंगल में छोड़ चुके हैं. जबकि 550 हिरण आज भी अमृता देवी उद्यान में मौजूद हैं. इनकी देखभाल इन्हीं के द्वारा की जा रही है.
पीराराम धायल ने बताया कि साल 1989 में उनकी सरकारी नौकरी लगी थी, जिसमें 5 साल तक रहने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर वन्यजीवों के लिए कुछ करने की तमन्ना लेकर घायल जीव-जंतुओं की देखभाल करनी शुरू की थी. शुरुआत में टायर पंचर की दुकान के साथ यह कार्य करते थे. वहीं साल 2009 में कुछ ग्रामीणों के साथ मिलकर धमाणा गांव के पास नेशनल हाईवे- 68 के किनारे बंजर पड़ी जमीन पर 6 हजार पौधे लगाकर उद्यान बनाया. 5 साल तक पौधों की सेवा करने के बाद ये पौधे बड़े होकर पेड़ बन गए थे. उसके बाद उसी जमीन पर 27 अक्टूबर 2013 को घायल हिरणों सहित अन्य जीव-जंतुओं के लिए रेस्क्यू सेंटर की शुरुआत की. अब पिछले 7 साल से इस अमृता देवी उद्यान में घायल वन्यजीवों की सेवा की जा रही है.
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सड़क हादसे में घायल हिरण, खरगोश, बंदर, नील गाय और राष्ट्रीय पक्षी मोर में लोग लेकर आते हैं और रेस्क्यू सेंटर में उपचार करके इनको ठीक किया जाता है. धायल बताते हैं कि इन 7 साल में करीबन 900 से ज्यादा घायल हिरणों का उपचार कर वन क्षेत्र में विचरण करने के लिए छोड़ चुके हैं. जबकि 550 हिरण आज भी अमृता देवी उद्यान में मौजूद हैं, जिनकी देखभाल की जा रही है.
24 बीघा जमीन में उद्यान विकसित कर खोला रेस्क्यू सेंटर
धायल ने बताया कि वन्यजीवों के लिए कुछ खास करने की दिल में तमन्ना लेकर सेवा कर रहे थे. इस दौरान धमाणा के पास बंजर पड़ी जमीन पर ग्रामीणों ने पौधरोपण करने की बात रखी तो सभी ने मिलकर बंजर जमीन में पौधरोपण कर उद्यान विकसित कर दिया. उद्यान विकसित होने के बाद धायल ने इसी जमीन पर घायल हिरणों सहित अन्य वन्यजीवों के लिये रेस्क्यू सेंटर खोलने की पहल की. उसके बाद सभी के सहयोग से रेस्क्यू सेंटर खोलकर वन्यजीवों की देखभाल की जा रही है.
इस दौरान कई बार मुश्किलें भी आईं. उद्यान के जमीन को अतिक्रमण बताकर ग्रामीणों ने शिकायत कर दी. प्रशासन ने कार्रवाई करके जमीन खाली करने का अल्टीमेटम दिया. काफी विवाद हुआ तो वन्यजीवों सहित उद्यान को प्रशासनिक अधिकारियों के हवाले सुपुर्द कर दिया गया. 5 दिन तक हिरणों सहित अन्य वन्यजीवों की देखभाल करने के बाद प्रशासन ने वापस इन्हीं को सुपुर्द कर दिया. हालांकि विवाद के बाद साल 2017 में वन विभाग ने इस उद्यान को अपने कब्जे में ले लिया और वन्यजीवों की देखरेख करने के लिए 8 कार्मिक नियुक्त कर दिए. लेकिन चारे पानी की जिम्मेदारी आज भी पीराराम धायल की संस्था के जिम्मे है.
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