जालोर.जिले के चितलवाना पंचायत समिति के भीमगुड़ा ग्राम पंचायत के आरवा गांव का रहने वाला ओमप्रकाश 20 साल से लगातार यूरीनल संबधी रोग से जूझ रहा है. बीस साल में पांच ऑपरेशन करा चुका है और अपनी जेब से पैसा लगाकर इलाज कराने में उसकी जमीन तक गिरवी चली गई है. अब ओमप्रकाश भी बेबस है. इलाज के लिए और पैसे चाहिए, लेकिन उसके पास कुछ नहीं बचा है. भाई भी तंगहाल है चाह कर भी मदद नहीं कर पा रहे हैं.
पुश्तैनी जमीन गिरवी रखकर कराया इलाज
ओमप्रकाश अपनी पुश्तैनी जमीन गिरवी रखकर इलाज करवा चुका है, लेकिन यह भी नाकाफी साबित हो रहा है. इलाज के लिए अब भी उसे 15 लाख रुपए की जरूरत है. पैसा नहीं होने के कारण वह उपचार भी नहीं करवा पा रहा है. रोग अपनी जगह है लेकिन शर्मनाक यह है कि दयनीय स्थिति होने के बावजूद इस परिवार को बीपीएल या खाद्य सुरक्षा योजना से अभी तक नही जोड़ा गया है. जिसके चलते ओमप्रकाश को सरकारी अस्पताल में निशुल्क उपचार तक नहीं मिल पा रहा है.
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चारपाई के हवाले है ओमप्रकाश की जिंदगी 20 साल से बीमार है ओमप्रकाश
कहते हैं गुरबत सबसे बड़ा अभिशाप है. अगर गरीबी में ऐसा रोग लग जाए, जिसके इलाज में काफी पैसा खर्च होता हो तो जिंदगी महंगी और गैरजरूरी लगने लगती है. चितलवाना उपखण्ड के आरवा निवासी ओमप्रकाश बिश्नोई किसी तरह मजदूरी कर अपने परिवार को पेट पालता था. 20 साल पहले यूरोलॉजी संबंधी परेशानी होने पर ओमप्रकाश का ऑपेरशन किया गया था. उसके बाद एक के बाद एक ओमप्रकाश के पांच ऑपरेशन हुए. इलाज चलता रहा लेकिन फायदा नहीं हुआ. लम्बी बीमारी के चलते किडनी खराब हो गई.
चारपाई पर सिमट गई जिन्दगी
परिवार की माली हालत ठीक नहीं है. इलाज के लिए पैसे भी नहीं बचे हैं. ऐसे में इस परिवार को भामाशाहों और सरकार से मदद का इंतजार है. ओमप्रकाश बिश्नोई का कहना है कि वर्ष 2000 में पहली बार यूरिन नली में तकलीफ हुई थी. जिसके बाद उसने गुजरात के डीसा में निजी अस्पताल में ऑपेरशन कराया था, कुछ समय बाद फिर तकलीफ हुई तो सिरोही के अस्पताल में ऑपेरशन करवाया गया, इसके बाद गुजरात के धानेरा में, पालनपुर में और फिर डीसा में फिर ऑपरेशन करवाया जिसके लिए जमीन तक गिरवी रखनी पड़ गई.ओमप्रकाश की किडनी खराब हो चुकी है, इलाज के लिए दस-पंद्रह लाख रुपये की जरूरत है. लेकिन पैसे नहीं होने के कारण बीमार ओमप्रकाश की जिंदगी अब उसकी चारपाई पर सिमट कर रह गई है.
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लाखों का इलाज, लेकिन कोई फायदा नहीं किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं
कहने को तो सरकारें आयुष्मान भारत, मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना जैसी स्कीमों से निशुल्क इलाज करवाती हैं, लेकिन ओमप्रकाश को यह सब भी नसीब नहीं हो रहा. यहां तक कि ओमप्रकाश बीपीएल चयनित तक नहीं है. सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही की इंतहां देखिए कि घर का मुखिया दो दशकों से बीमार है लेकिन पंचायत के कार्मिकों ने इसके परिवार को खाद्य सुरक्षा योजना में भी नहीं जोड़ा है. विश्नोई परिवार का घर भी कच्चा है, लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ तो भूल ही जाइये.
तंगी की दास्तां सुनाता ओमप्रकाश का घर पत्नी मजदूरी करके चला रही है घर
इन दिनों ओमप्रकाश की पत्नी धोली देवी पति के इलाज की दुहाई देती लोगों से मदद मांग रही है. साथ ही दूसरों के खेतों में मजदूरी कर पांच बच्चों के परिवार को भी पाल रही है. ओमप्रकाश के पिता के नाम जो जमीन थी उसमें से उसने अपने हिस्से की जमीन गिरवी रखकर सेठ साहूकारों से उधार पैसे लेकर बीमारी में लगा दिए. उसके मुताबिक करीब छः-सात लाख रुपए वह अस्पताल में लगा चुका है, लेकिन अब राशि खत्म होने के बाद निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने इलाज करने से मना कर दिया है. ऐसे में ओमप्रकाश को अब सरकार से मदद की दरकरार है।
चुनावी वादे सब करते हैं, बाद में कोई नहीं पूछता
चुनावों में वोटों के खातिर तो विधायक से लेकर सरपंच तक वोट मांगने विश्नोई परिवार के पास आते हैं लेकिन मुसीबत के दौर में इनकी मदद के लिए कोई नहीं पहुंचा. न ही सरकार की योजना इनके घर तक पहुंची. चितलवाना पंचायत समिति के विकास अधिकारी जगदीश विश्नोई आश्वासन तो देते हैं. लेकिन जब 20 साल में शासन-प्रशासन के नुमाइंदे आम जन के हक की योजनाओं तक में ओमप्रकाश और उसके परिवार का नाम नहीं जोड़ सके तो आगे क्या कहा जा सकता है. ओमप्रकाश के भाई जोरा राम के आर्थिक हालात भी बहुत अच्छे नहीं है, उसे उम्मीद है कि सरकार उनकी मदद जरूर करेगी, ताकि ओमप्रकाश को योजनाओं का लाभ तो मिल ही सके.