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पहले आधुनिकता की भेंट चढ़ा हथकरघा उद्योग, अब लॉकडाउन ने तोड़ी कमर - Rajasthan news

कई साल पहले हथकरघा उद्योग काफी फला-फूला करता था. लेकिन जब से मशीनरी युग और आधुनिकता का दौर शुरू हुआ, मानो हथकरघा उद्योग पर ग्रहण लग गया. हमारे देश में बुनकर समाज का एक बड़ा वर्ग है जो हथकरघा उद्योग पर ही निर्भर है. इनके रोजगार का हथकरघा उद्योग ही सिर्फ एक जरिया है. लेकिन ये जरिया भी खत्म होता जा रहा है. जानने के लिए पढ़े ये खास खबर...

जालोर का हथकरघा उद्योग,  Jalore's Handloom Industry
लॉकडाउन ने भी तोड़ी हथकरघा उद्योग की कमर

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Published : May 29, 2020, 2:14 PM IST

जालोर. देश में कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन लागू किया था. लेकिन पहले से ही अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ता हथकरघा उद्योग इस लॉकडाउन में बंद होने की कगार पर आ गया है. पहले आधुनिक मशीनों ने हथकरघा उद्योग को पीछे किया और अब लॉकडाउन में ये उद्योग बंद होने की कगार पर आ गया.

लॉकडाउन ने भी तोड़ी हथकरघा उद्योग की कमर

आधुनिकता की भेंट चढ़ा हथकरघाः

जिले में करीब 10 साल पहले सैंकड़ों गांवों में 500 से ज्यादा हथकरघा उघोग हुआ करते थे. लेकिन आधुनिकता और मशीनरी युग के कारण यह उघोग सिमटते गए. अब जिले में सिर्फ 5 गांवों में ही 70 से 80 हथकरघा उघोग संचालित होते हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण इन पर खतरे के बादल मंडरा रहे है. सरकार ने राहत पैकेज में भी हथकरघा उघोग को बचाने के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई. कोरोना के बाद लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए केंद्र सरकार ने बड़े राहत पैकेज की घोषणा भी की है. जिसमें रजिस्टर्ड एमएसएमई (लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम, भारत सरकार) को सरकार ने पैकेज में बड़ी राहत देते हुए लोन की छूट दी है. लेकिन हथकरघा उघोग रजिस्टर्ड के इसमें नहीं होने के कारण यह फायदा भी इनको नहीं मिल पा रहा है.

इन गांवों में बचा था उघोगः

कोरोना से पहले जिले के लेटा जालोर, भंवरानी आहोर, लालपुरा चितलवाना, जैलातरा, सांचोर और केरवी रानीवाड़ा में हथकरघा उघोग संचालित होता था. लॉकडाउन में बुनकरों को न तो कच्चा माल मिल पा रहा है, न ही बना बनाया माल बाहर बेच पा रहे हैं. जिसके कारण मजबूरी में बुनकरों को हथकरघा उघोग बंद करना पड़ रहा है. हथकरघा उघोग में अपनी बुनाई का लोहा मनवा चुके लालपुरा गांव के किशना राम राज्य स्तर पर बुनाई में एक बार पुरस्कार भी जीत चुके हैं. उन्होंने बताया कि हमारे कई पीढ़ियों से बुनाई का कार्य ही करते आ रहे हैं.

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हमने कभी हथकरघे को बंद नहीं किया था. लेकिन अब पहली बार ऐसा हुआ है की हमें, हमारी रोजी रोटी और आजीविका के साधन हथकरघे को बंद करना पड़ा है. उन्होंने बताया कि पुराने जमाने में स्वदेशी कपड़े की डिमांड थी. लेकिन अब मशीनरी के युग में हमारा उघोग पिछड़ता जा रहा है. अब स्थानीय स्तर पर कोई बाजार भी नहीं है कि हम हमारे उत्पाद वहां जाकर बेच सकें. ऐसे में हमें घर-घर जाकर बेचना पड़ता है. लेकिन कोरोना के कारण लोग दहशत में हैं, कोई अपने घर पर आने नहीं देता है. जिसके कारण अब बनाया हुआ माल खराब हो रहा है.

पटू की होती है बड़ी मान्यताः

बुनकरों ने बताया कि ऊनी पटू, केस मिलोन पटू, भाखला, खेहला, दरी, कोट कपड़ा, ऊनी आसन, तौलिया, बेडशीट और लुंकार बनाई जाती है. पटू का राजस्थान में काफी मान होता है. किसी सामाजिक समारोह में मान्यता है कि कुछ खास लोगों को ही पटू गिफ्ट के तौर पर दिया जाता है. लेकिन अब कोरोना के कारण सामाजिक कार्यक्रम भी बंद हो जाने के कारण पटू की डिमांड भी खत्म हो गई है.

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बुनकरों को लघु उघोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की है. लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण बुनकरों को इनका फायदा नहीं मिल रहा है. हथकरघा उघोग चलाने वाले एक युवा बुधराम बताते हैं कि महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना है, लेकिन उसका हमें कोई फायदा नहीं मिलता है. इसके अलावा कार्यशाला बनाने के लिए पैसे मिलते हैं. लेकिन जिला उघोग केंद्र से कोई मदद नहीं मिल पा रही है. उन्होंने बताया कि सरकार की तरफ से इस उघोग को बढ़ावा देने के लिए उचित प्लेटफार्म दिया जाता है, तो वापस यब उघोग जीवित हो सकता है.

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तीन साल से नहीं बना बुनकर कार्डः

जिले में हथकरघा उघोग चलाने वाले लोगों के कार्ड सरकार की तरफ से बनाये जाते हैं. लेकिन जालोर में बुनकरों के कार्ड तक नहीं बने है. लालपुरा, लेटा, भंवरानी गांव में करीबन 100 परिवार हथकरघा उघोग से जुड़े हुए हैं. इन्होंने साल 2017, 2018 और 2019 में बुनकर कार्ड के लिए एप्लाई किया है लेकिन अधिकारियों ने अभी तक कार्ड नहीं बनाया.

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