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जालोर: शाखा प्रबंधकों के समर्थन में आए कैशियर भी, 44 ब्रांचों पर लटके ताले

जालोर के गांवों में सबसे ज्यादा राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक की शाखाएं हैं, लेकिन पिछले तीन दिन से कर्मचारियों की ओर से हड़ताल पर होने के कारण उपभोक्ताओं को परेशान होना पड़ रहा है. इसके साथ ही शाखा प्रबंधकों के साथ अब कैशियर भी हड़ताल पर हैं. वहीं, जिले की 44 ब्रांचों पर ताले लटके हुए हैं.

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Published : Oct 9, 2019, 8:28 PM IST

जालोर की खबर, राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक, Rajasthan Marudhara Gramin Bank

जालोर. राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक के शाखा प्रबंधकों की हड़ताल के तीसरे दिन बुधवार को बैंक के कैशियर भी शाखा प्रबंधकों के समर्थन में हड़ताल पर उतर आए. जिससे जिले भर में आरएमजीबी की 44 बैंकों की शाखाओं पर ताले लटके हुए हैं. जिसके कारण बैंक से जुड़े हजारों उपभोक्ताओं को 3 दिन से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन बैंक प्रबंधन के अधिकारियों की कुम्भकर्णी नींद नहीं खुल रही है.

शाखा प्रबंधकों के साथ कैशियर भी उतरे हड़ताल पर

जानकारी के अनुसार बैंक की शाखाओं में कार्यरत मैनेजर बैंक प्रबंधन की कार्मिक विरोधी नीतियों के खिलाफ जालोर जिला मुख्यालय पर व्यवसाय कार्यालय के सामने अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हैं. शाखा प्रबंधक आदेश कुमार प्रजापत ने बताया कि हम तीन दिन से हड़ताल पर बैठे हैं. लेकिन तीसरे दिन भी बैंक के उच्च अधिकारी अभी तक सुनवाई करने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने बताया कि त्योहारी सीजन में स्टाफ और ग्राहक की परेशानियों को बैंक प्रबंधन की ओर से तानाशाही रवैया अपनाते हुए नजरअंदाज किया जा रहा है.

इसके साथ ही बैंक कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि बैंक में उच्च अधिकारी सामाजिक सुरक्षा के सस्ते बीमा उत्पादों के बजाय निजी कंपनियों के महंगे बीमा उत्पाद जबरदस्ती बेचने के लिए कर्मचारियों को मजबूर कर रहें हैं. कई कर्मचारियों ने बीमा पॉलिसी बेचने से इनकार किया तो उनका स्थानांतरण कर दिया जाता है.

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वहीं, कई बार तो कार्मिकों को रविवार को भी बुलाकर काम करवाया जाता है, कोई कर्मचारी रविवार को आने से मना कर देता है तो उसके विरोध में कार्रवाई करने की धमकी दी जाती है. ब्रांच मैनेजर हरीश शर्मा ने बताया कि बैंक के प्रबंधन की ओर से कर्मचारियों के विरोध में दमनकारी नीति को अपनाया जा रहा है. जिसके कारण कर्मचारी मजबूर होकर हड़ताल पर उतरे हैं. लेकिन, बैंक के उच्च अधिकारी बात सुनने को तैयार नहीं हैं.

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