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8 साल में 200 लोगों को निगल गई नर्मदा, फिर भी नहीं चेत रहा प्रशासन - accident in narmada canal

जालोर के सांचौर व चितलवाना से गुजरने वाली नर्मदा नहर में पिछले 8 सालों में 200 से ज्यादा लोगों की डूबने से मौत हो गई है. लेकिन प्रशासन कुम्भकर्णी नींद से नहीं जाग रहा है. नहर के दोनों तरफ किसी प्रकार की कोई सुरक्षा जाली या दीवार नहीं है. वहीं सबसे खास बात की नहर में गिरने के बाद निकालने के लिए प्रशासन या नर्मदा प्रशासन के पास कोई संसाधन नहीं है.

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नर्मदा में गिरने से मौतें

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Published : Dec 16, 2020, 3:16 AM IST

जालोर.जिले के सांचौर व चितलवाना से गुजरने वाली नर्मदा नहर में पिछले 8 सालों में 200 से ज्यादा लोगों की डूबने से मौत हो गई है. लेकिन प्रशासन कुम्भकर्णी नींद से नहीं जाग रहा है. नहर के दोनों तरफ किसी प्रकार की कोई सुरक्षा जाली या दीवार नहीं है. वहीं सबसे खास बात की नहर में गिरने के बाद निकालने के लिए प्रशासन या नर्मदा प्रशासन के पास कोई संसाधन नहीं है.

जालोर में नर्मदा बनी मौत की नहर

नर्मदा नहर के दोनों तरफ नहीं है कोई दीवार

नर्मदा नहर परियोजना के तहत बनी नहरों के पास सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं होने के कारण पिछले 8 सालों में 200 से ज्यादा लोगों की नहर में डूबने से मौत हो गई है. इतनी बड़ी संख्या में मौते होने के बावजूद जिला व नर्मदा प्रशासन ने सुरक्षा को लेकर कोई कदम नहीं उठाए हैं. नहर में दोनों तरफ नर्मदा विभाग ने सुरक्षा को लेकर कोई दीवार तक नहीं बना रखी है ना ही विभाग के पास तैराक व अन्य किसी प्रकार में सुरक्षा के संसाधन उपलब्ध है. जिसके कारण लोगों की अकाल मौत हो रही है.

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2020 के आंकड़ें देखे तो करीबन 30 से ज्यादा लोगों के नहर में शव मिल चुके है. 2008 में पहली बार नर्मदा नहर में पानी आया था तब से अब तक सैंकड़ों मौतों को सिलसिला लगातार जारी है.
नर्मदा नहर परियोजना का कार्य पूरा होने के बाद मार्च 2008 में सीलू गेट से राजस्थान के लिए नहर में राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पानी छोड़ा था.

शवों में खोजने में लग जाते हैं कई दिन

प्रशासन के पास नगर में गिरे लोगों को निकालने के पुख्ता बंदोबस्त नहीं हैं. जिसके चलते शवों को खोजने में 3 से 7 दिन का समय लग जाता है. स्थानीय तैराक अपनी जान जोखिम में डाल कर नहर में शवों को खोज करते हैं. कई मामलों में तो स्थानीय तैराकों की जिंदगी तक दांव पर लग जाती है. 2 साल पहले चितलवाना अगड़ावा गांव के पास एक विवाहिता नहर में कूद गई थी. जिसका शव खोजने में प्रशासन को 7 दिन का समय लग गया था. इन सात दिनों में नहर की वितरिका पानी से भरी थी, जिसमें शव नहीं मिलने पर पानी को खाली करके शव को खोजा गया था. तब जाकर नहर के तल में जमी काई में विवाहिता का फंसा हुआ शव मिला था.

सुरक्षा उपकरण मांगे, लेकिन मिले नहीं

नर्मदा नहर को लेकर प्रत्येक साल अरबों का बजट खर्च किया जा रहा है, लेकिन नहर की सुरक्षा को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है. सांचौर के तत्कालीन डीवाईएसपी सुनील के पंवार ने नर्मदा विभाग व राज्य सरकार को पत्र लिख कर नहर में गिरने वालों को सुरक्षित निकालने में काम आने वाले उपकरण उपलब्ध करवाने की मांग की थी. जिसमें वाटर विजन कैमरा, वाटर विजन टॉर्च, लाइफसेविंग जैकेट, फाइबर रस्से, हाईविजन टॉर्च, पानी में जगह-जगह लगाने के लिए जालियां, तलाशी के लिए कल्टी वैटर सिस्टम, प्रशिक्षित गोताखोर, मोटर नाव, वाटर गैज मीटर, एम्बुलेंस, पेट्रोलिंग वाहन, वाटर विजन चश्मे सहित अन्य संसाधनों का जिक्र किया था, लेकिन अभी तक कोई उपकरण स्थानीय प्रशासन को नहीं दिए गए हैं.

वाहन भी गिर चुके है नहर में

नर्मदा मुख्य नहर के दोनों ओर सड़क बनी होने से लोग शॉर्टकट के चक्कर में नहर के मार्ग से सीधे जाने का प्रयास करते हैं, लेकिन नहर व सड़क के बीच कोई सुरक्षा दीवार या डिवाइडर नहीं होने से मोड़ पर कई बार वाहन नहर में गिर चुके हैं. क्षेत्र के लालपुर, अगार, पालड़ी, डेडवा, परावा, सिवाड़ा सहित आस-पास में हर बार हादसे होते रहते हैं.

किस साल कितने लोगों की मौत हुई

अकेले सांचौर उपखंड क्षेत्र में 8 वर्षों में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. जिसमें वर्ष 2013 में 7, 2014 में 13, 2015 में 12, 2016 में 16, 2017 में 19 व 2018 में 14, 2019 में 17 व 2020 में 12 लोगों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा चितलवाना क्षेत्र में आठ सालों में 100 से भी ज्यादा लोगों की डूबने से मौत हो चुकी है.

हाल ही में हुई थी दो लड़कियों की मौत

चितलवाना क्षेत्र के मेघावा गांव में नर्मदा पर सुरक्षा के लिए दीवार या जाली नहीं लगी होने के कारण दो दिन पहले तीन लड़कियां नर्मदा नहर में गिर गई थी. जिसमें से एक लड़की को तुरंत निकाल लिया गया जिससे चलते उसकी जान बच गई, जबकि दो लड़कियों की डूबने से मौत हो गई. दोनों शवों को बाहर निकालने में पुलिस को स्थानीय तैराकों की मदद लेनी पड़ी. कुल मिलाके क्षेत्र के लोग भी इससे परेशान हैं. बार-बार अवगत कराने के बाद भी प्रशासन का ना चेतना चौंकाने वाला है. हर दिन के साथ ही मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी की आशंका बनी रहती है.

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