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विश्व पर्यटन दिवसः जैसलमेर दुनिया भर के सैलानियों के लिए बन रहा बड़ा सैरगाह...ये है खासियत

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Published : Sep 27, 2020, 7:42 PM IST

जैसलमेर दुनिया भर के सैलानियों के लिए एक बड़ी सैरगाह बन रहा है. लेकिन पर्यटन मानचित्र पर उभरे इस सितारे का सफर आसान नहीं रहा है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच बसे इस जैसलमेर में अपने आप को दुनिया के सामने निखारने के लिये कड़ा संघर्ष किया है. आज विश्व पर्यटन दिवस पर जानते है जैसलमेर पर्यटन के इस सफर की कहानी...

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सैलानियों के लिए बन रहा एक बड़ा सैरगाह

जैसलमेर.दुनियाभर के सैलानियों के लिये सबसे पसंदीदा पर्यटक स्थलों में से एक है स्वर्णनगरी जैसलमेर. रेतीले लहरदार धोरों के बीच पीले पत्थरों से बनी इमारतों को दूर आकाश से देखने पर लगता है मानों रेत के समन्दर में सोने का शहर बसा हुआ है. 99 बुर्जों से घिरा यहां का सोनार किला और पत्थरों पर लकड़ी से भी महीन नक्काशी से बनी पटवा हवेलियों के साथ रेतीले इलाके में बनी गडीसर झील यहां आने वाले सैलानियों को रेगिस्तान में नखलिस्तान का अहसास करवाती हैं.

सैलानियों के लिए बन रहा एक बड़ा सैरगाह

जितनी समृद्ध और कलात्मक यहां की इमारतें है, उससे भी कई गुना बेहतर यहां का लोक जीवन है. जिसमें देशी माटी की खुशबू के साथ साथ विकट परिस्थितियों में जीवन यापन की जीजिविषा यहां आने वाले सैलानियों को दांतों तले अंगुलिया दबा देने पर मजबूर कर देती है.

आज जैसलमेर दुनिया भर के सैलानियों के लिए एक बड़ी सैरगाह बन रहा है. लेकिन पर्यटन मानचित्र पर उभरे इस सितारे का सफर आसान नहीं रहा है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच बसे इस जैसलमेर में अपने आप को दुनिया के सामने निखारने के लिये कड़ा संघर्ष किया है. आज विश्व पर्यटन दिवस पर जानते है जैसलमेर पर्यटन के इस सफर की कहानी.

जैसलमेर में स्थित किला

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जैसलमेर के लिये कहा जाता था कि घोड़ा कीजे काठ का, पिण्ड कीजे पाषाण, बख्तर कीजे लौह का तब देखो जैसाण' यानि जैसलमेर का अगर किसी को सफर करना हो तो उसका घोड़ा लकड़ी का होना चाहिये जो पानी और खाना नहीं मांगता हो, शरीर पत्थर का होना चाहिए, जिस पर यहां के तापमान का कोई असर न हो, और कपड़े लोहे के होने चाहिए, ताकि यहां की धूलभरी आंधियों का सामना कर सके. तब जाकर जैसलमेर दर्शन की इच्छा पूरी हो सकती थी.

जैसलमेर में स्थित किला

जैसलमेर के लिए कही गई ये कहावत कई सालों तक बिल्कुल सटीक ही थी, क्योंकि उस जमाने में जब दुनिया के मुकाबले देश विकास की रफ्तार के साथ धीरे-धीरे कदम मिलाने की कोशिश कर रहा था, उस वक्त पश्चिमी छोर पर बसे इस जिले की ओर किसी का भी ध्यान नहीं था.

यहां न तो परिवहन के साधन थे और न ही ये इलाका विकास की परिभाषा को जानता था.. ठेठ देशी मिजाज के साथ यहां प्रकृति से संघर्ष करते लोगों की प्राथमिकता केवल जिन्दा रहना ही थी, क्योंकि प्रकृति ने यहां के लोगों की अकाल और सूखे के रूप में कई परीक्षाएं ली थी. लेकिन समय बदला और देश जब विकास की रफ्तार को पकड़ने लगा तो उस समय देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सीमान्त जिले जैसलमेर के हालात जानने के लिये यहां की यात्रा की.

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प्रधानमंत्री ने जब यहां की समृद्ध कला-संस्कृति को स्थानीय लोक कलाकारों द्वारा देखी, तो इसे दुनियाभर के लोगों के सामने रखने की चाहा और स्थानीय लोगों के प्रयासों के चलते जैसलमेर वर्तमान स्थिति में पहुंचा है. जो आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है.

जैसलमेर का पर्यटन स्थल

जैसलमेर पर्यटन को कैसे लगे पंख...

जैसलमेर पर्यटन से जुड़े कैलाश व्यास का कहना है कि पहली बार जैसलमेर में एक फ़्रेंच कम्पनी सीमावर्ती इलाके में गैस और तेल की खोज में यहां आई, तो उसके कर्मचारी और अधिकारियों ने जब यहां का किला, ग्रामीण परिवेश और संस्कृति देखी तो इससे मोहित हुए और अपने साथ यहां की कला-संस्कृति को फोटों के माध्यम से फ्रांस सहित अन्य यूरोपियन देशों में फैलाया. जिससे जैसलमेर विदेशी लोगों के सामने पेश हुआ और उसके बाद यहां विदेशी पर्यटकों के आने का सिलसिला प्रांरभ हुआ, जो अब तक अनवरत जारी है.

साथ ही बंगाली फिल्म निर्माता सत्यजीत रे का जैसलमेर पर्यटन के विकास में बड़ा ही अहम योगदान माना जाता है. उनके द्वारा जैसलमेर के किले पर बनाई गई बंगाली फिल्म 'सोनार किला' और 'गोपीगायन-बागाबायन' के कारण देशी पर्यटक और खास तौर पर बंगाली सैलानियों को स्वर्णनगरी ने अपनी ओर आकर्षित किया.

जैसलमेर

जैसलमेर के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां पर्यटन विभाग द्वारा 1979 में विश्व प्रसिद्ध 'मरू-महोत्सव' आरंभ किया गया, जो फरवरी और मार्च माह में आयोजित होता है. जिसमें तीन दिनों में यहां की लोक कला, संस्कृति, ऊंटों के विभिन्न कार्यक्रमों आदि का प्रदर्शन होता है. जिससे देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या में अत्यधिक इजाफ़ा हुआ और अब हर वर्ष यह महोत्सव आयोजित किया जाता है.

होटल व्यवसायी और पिछले कई वर्षों से जैसलमेर पर्यटन में अपना सहयोग देने वाले पृथ्वीराज ने बताया कि जब यहां पर्यटकों का आना शुरू हुआ तब यहां कई विषम परिस्थितियां और समस्याएं थी, लेकिन पर्यटक व्यवसायीयों के सहयोग से ही पर्यटन आज इस मुकाम तक पहुंचा है और इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई लोगों का सहयोग रहा है. जिसे भुलाया नहीं जा सकता. हालांकि उनका कहना है कि सरकार और प्रशासन ने सहयोग तो जरूर किया, लेकिन उतना सहयोग नहीं किया जितना करना चाहिए थे.

फिल्मों की शूटिंग और वेडिंग डेस्टिनेशन की पहली पसंद है स्वर्णनगरी

आज जैसलमेर वेडिंग डेस्टिनेंशन बना हुआ है. जहां हर एक साल देश के कई बड़े उद्योगपतियों की वीआईपी शादियों का आयोजन होता है. साथ ही हॉलीवुड, बॉलीवुड सहित अन्य कई फिल्मों की शूटिंग यहां होती है. जिससे जैसलमेर के प्रति लोगों की उत्सुकता और अधिक बढ़ती है. जिससे पिछले कुछ वर्षों से यहां देशी पर्यटकों की संख्या में लगातार इज़ाफा हुआ है.

फाइल

कोरोना ने तोड़ी कमर

इन दिनों कोरोना की मार सभी उद्योगों और व्यवसायों पर पड़ रहा है और इसकी मार से पर्यटन भी अछूता नहीं है. जिससे पर्यटन व्यवसाय की कमर लगभग टुट सी गई है और यहां के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों जहां पर आमतौर पर सितम्बर-अक्टूबर में चारों तरफ सैलानी ही सैलानी दिखाई देते थे. वहां पर आज सन्नाटा छाया हुआ है.

जिसका कारण है कि कोरोना के चलते कई बसों,ट्रेनों और हवाई सेवा का संचालन नहीं हो रहा है. हालांकि पर्यटन व्यवसायियों का कहना है कि जैसलमेर जिला राजस्थान ही नहीं देश के अन्य पर्यटक स्थलों से कहीं अधिक सुरक्षित है, क्योंकि यहां अन्य जगहों की तुलना में कोरोना का खतरा कम है.

अब तक यहां सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल 718 ही संक्रमित मामले ( 24 सितम्बर तक ) सामने आए हैं. साथ ही पर्यटन से जुड़े लोगों द्वारा आने वाले सैलानियों के लिए कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए पर्याप्त व्यवस्थाएं की गई हैं. उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही जैसलमेर से अन्य स्थानों के लिए ट्रेन और हवाई सेवा के शुरू होने के बाद यहां पर्यटकों का फिर से आना शुरू होगा. जिससे यहां फिर से रौनक लौटेगी.

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