जैसलमेर.पिछले दिनों जिला पुलिस अधीक्षक की फर्जी मोहर और हस्ताक्षर कर कुटरचित तरीके से प्रमाण पत्र बनाने का मामला सामने आया था, जिस पर कोतवाली पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए कलेक्ट्रेट परिसर से दलाल शंभू सिंह राजपूत निवासी दरियानाथ की बावड़ी, फर्जी सील बनाने के आरोप में गड़ीसर रोड़ से अब्दूल रहमान पुत्र गुलाम मुर्तजा तेली, पुलिस अधीक्षक कार्यालय जैसलमेर के नाम का फर्जी पत्र टाइप करने वाले अशोक कुमार खत्री को 1 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था.
पदस्थापित दो पुलिसकर्मी गिरफ्तार इस मामले को लेकर पुलिस अधीक्षक अजय सिंह ने पहले ही यह आंशका जताई थी कि एसपी कार्यालय के कुछ पुलिसकर्मी भी इसमें लिप्त हो सकते हैं, जिसकी जांच की जा रही है. इस पर गिरफ्तार दलाल और अन्य से पूछताछ और जांच के दौरान मंगलवार को जैसलमेर पुलिस अधीक्षक कार्यालय की जिला विशेष शाखा में पदस्थापित सहायक उप निरीक्षक रणवीर सिंह राजपूत निवासी सांकड़ा और कांस्टेबल आशीष कुमार निवासी रूपसी को इस मामले लिप्त पाए जाने के कारण गिरफ्तार किया गया है और उनसे पूछताछ जारी है.
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क्या था मामला?
हिमाचल प्रदेश से कुछ लोग जैसलमेर आए थे. इन लाेगाें काे जैसलमेर में मुरब्बे आवंटित हो रखे हैं. यहां आने पर उन्हें जानकारी मिली कि उन्हें पुलिस से चरित्र प्रमाण पत्र सत्यापित करवाना होगा. वे पूछताछ करते हुए कलेक्ट्रेट परिसर में पहुंचे तो उन्हें दलाल शंभू सिंह मिला. उसने बताया कि 25 हजार रुपए में सब कुछ करवा देगा. उन्होंने कागजात शंभू सिंह को सौंप दिए और दलाल ने उनके दस्तावेजों पर जैसलमेर पुलिस अधीक्षक की फर्जी मोहर लगाकर फर्जी हस्ताक्षर करके कुछ ही घंटों में सत्यापन कर दिया. जब ये प्रमाण पत्र जैसलमेर एसडीएम अशोक कुमार के पास पहुंचे तो उन्हें इस आधार पर संदेह हुआ कि एक ही दिन में सत्यापन कैसे हो गया. इस पर उन्होंने अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राकेश बैरवा से फोन पर बातचीत की और डिस्पैच रजिस्टर खंगालने पर पता चला कि एसपी ऑफिस में इस तरह का कोई आवेदन ही नहीं आया है. पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए कलेक्ट्रेट परिसर से दलाल शंभू सिंह को गिरफ्तार किया और उसके कब्जे से एसपी की फर्जी मोहर भी बरामद कर ली.
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गौरतलब है कि पोंग डेम से प्रभावित लोगों को जैसलमेर नहरी कृषि भूमि (मुरब्बे) आवंटित हो रखी है और अन्य कई बाहरी लोग भी जैसलमेर में जमीन खरीदने के लिए आते हैं. ऐसे में उन्हें पुलिस वेरिफिकेशन करवाना होता है और आमतौर पर वेरिफिकेशन का आवेदन स्थानीय पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पहुंचता है और फिर वहां से ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत व्यक्ति जहां का मूल निवासी होता है, वहां के पुलिस थाने फाइल जाती है. वहां से वेरिफिकेशन होने के बाद स्थानीय पुलिस अधीक्षक की मोहर और हस्ताक्षर किए जाते हैं. इस प्रक्रिया में आमतौर पर 4 से 5 दिन लगते हैं. अब इस मामले में कार्रवाई करते हुए कोतवाली पुलिस ने दो पुलिसकर्मियों की लिप्तता सामने आने पर उन्हें गिरफ्तार किया है और उनसे पूछताछ की जा रही है. ऐसे में इस पूरे मामले की जांच पड़ताल के दौरान कई और फर्जीवाड़े और कूटरचित तरीके से दस्तावेज तैयार करने के और भी मामले सामने आ सकते हैं.