जैसलमेर. भारत-पाक सीमा पर बसा सीमावर्ती जिला जैसलमेर सामरिक रूप से खासा महत्व रखता है. लेकिन इसके साथ ही सुनहरे धोरों की चादर ओढ़े यह जिला पर्यटन के पटल पर अपनी खास पहचान रखता है. यही कारण है कि यहां हर वर्ष पर्यटन सीजन के दौरान सैकड़ों की संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक भ्रमण पर आते हैं. यह सिलसिला साल दर साल बढ़ता जा रहा है.
करीब 900 साल पुराने इस शहर में सैलानियों को लुभाने वाली वह सभी खासियतें मौजूद हैं, जिसकी चाह लिए देश के विभिन्न कोनों के साथ ही विदेश से भी 'पावणे' खींचे चले आते हैं. पर्यटकों को यहां उनके घर से दूर एक घर जैसा ही प्रतीत होता है. 80 के दशक से शुरू हुआ पर्यटन आज पूरे परवान पर पहुंच गया है.
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जैसलमेर में जीवित हैं सदियों पुरानी विरासतः जैसलमेर घूमने आने वाले सैलानियों को यहां सदियों पुरानी विरासत आज भी जीवंत रूप में नजर आती है. इसका सीधा सा उदाहरण है जैसलमेर का किला जो कि दुनिया भर में सोनार किला यानि गोल्डन फोर्ट के नाम से अपनी पहचान रखता है. इस सोनार दुर्ग में हजारों की आबादी का बसेरा उनके लिए किसी अजूबे से कम नहीं होता. सोनार किले के साथ ही रेगिस्तानी क्षेत्र में गड़ीसर जैसा कलात्मक सरोवर, पीले पत्थर पर बेजोड़ नक्काशी वाली पटवा हवेलियां और अन्य इमारतें पर्यटकों के आकर्षण की वजह है.
इसके साथ ही दुर्ग तथा लौद्रवा के प्राचीन जैन मंदिर, कुलधरा व खाभा में पालीवाल समाज की धरोहरों से लेकर सम तथा खुहड़ी के बालुई मिट्टी के लहरदार धोरे पर्यटकों को बरबस अपनी तरफ खींच लेती हैं. इतनी खासियतें किसी एक पर्यटन स्थल पर अन्यत्र देखना दुर्लभ होता है. थोड़ा अलग हटकर देखें तो जैसलमेर में लाखों साल पहले के जीवाश्म और सरस्वती नदी का बहाव क्षेत्र मानव सभ्यता के साथ जीव जगत के अनखुले अध्यायों को अपने में समाहित किए हुए हैं.
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तनोट माता का मंदिर है विशेष आस्था का केन्द्रः जैसलमेर घूमने आने वाले देशी सैलानियों के लिए भारत-पाक सीमा पर स्थित मातेश्वरी तनोटराय माता का मंदिर विशेष आस्था का केंद्र है. देश भर से श्रद्धालु नत मस्तक होने यहां पहुंचते हैं. तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है. मंदिर की पूजा-अर्चना सीमा सुरक्षा बल के जवान ही करते हैं. नवरात्रि के मौके पर तनोट मंदिर में आस्था का ज्वार उमड़ता है. इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शनार्थ पहुंचते हैं और मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं. हर दिन दोपहर 12 बजे व शाम 7 बजे आरती की जाती है. इस मंदिर में सीमा सुरक्षा बल के जवानों के द्वारा की जाने वाली आरती श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र रहती है.
जैसलमेर पर्यटन का इतिहासः पर्यटन से जुड़े लोगों के अनुसार जैसलमेर में 1980 के बाद से पर्यटकों की आवक शुरू हुई है. शुरूआती तौर में यहां गिने चुने सैलानी ही आते थे. धीरे धीरे जैसलमेर की सुंदरता सात समुंदर पार पहुंच गई और सैलानियों की आवक में इजाफा हो गया. 1990 के बाद से लेकर 2011 तक सैलानियों की संख्या में कभी भी गिरावट नहीं आई. दूसरी तरफ वर्ष 2000 के बाद से देसी सैलानियों में भी जैसलमेर के प्रति आकर्षण बढ़ा और उनका ग्राफ भी तेजी से बढ़ा. जानकारी के अनुसार 2011 तक जैसलमेर में सालाना 4 लाख तक देसी विदेशी सैलानी आने लगे. यहां 200 से अधिक होटलें बन गई और इतने ही रेस्टोरेंट और तो और स्टार कैटेगरी की होटलों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई.
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पर्यटकों के साथ लपकागिरी से हो रहा नुकसानः स्वर्णनगरी के विश्व विख्यात सम के धोरों की सैर किए बिना यहां आने वाले सैलानी नहीं लौटते. लेकिन जब वे सम के धोरों पर पहुंचते हैं तो उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. सैलानी बताते हैं कि ऊंट चालक ने उन्हें 50 रुपए कहकर ऊंट पर बिठाया था और जब वापस आए तो उससे 500 रुपए ले लिए. मना करने पर दो चार ऊंट चालक आए और जबरदस्ती करने लगे. ऐसी घटनाएं जैसलमेर के पर्यटन को धरातल पर ला रही हैं.
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सालाना 500 करोड़ का टर्नओवर, पर नहीं दिया ध्यानःजैसलमेर वासियों ने पर्यटन से खूब कमाई की. पर्यटन विदों के अनुसार सालाना टर्न ओवर 500 करोड़ से ज्यादा तक पहुंच गया. लेकिन पर्यटन को स्थाई रखने व संरक्षण के लिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. इसमें स्थानीय लोगों के साथ साथ सरकारें भी दोषी हैं. यहां का पर्यटन विभाग मरू महोत्सव के अलावा कभी भी हरकत में दिखाई नहीं देता है. हालांकि, पर्यटन को बढ़ावा देने में मरू महोत्सव ने अहम भूमिका निभाई. लेकिन नवाचारों की कमी के चलते मरु महोत्सव के प्रति रुझान कम होने लगा है.
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1500 करोड़ रुपए से अधिक का पर्यटन व्यवसायःवर्ष 1970 के दशक में कुछ विदेशी पेशेवर मरुस्थलीय जैसलमेर में तेल और गैस के अन्वेषण के कार्य के सिलसिले में आए. यहां आकर उन्हें तेल-गैस के भूगर्भीय भंडारों की थाह तो लगी, लेकिन उससे भी ज्यादा विस्मयपूर्ण और कला का बड़ा खजाना इस रेगिस्तानी शहर में स्थापत्य सौन्दर्य के तौर पर नजर आया. वे लोग अपने देश गए तथा राजस्थान के इस अजूबा शहर के बारे में बताया. धीरे-धीरे एक कारवां बनने लगा और आज जैसलमेर पर्यटन क्षितिज पर पुख्ता पहचान बना चुका है.
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पिछले चार दशक के दौरान बढ़े-चढ़े पर्यटन ने हर क्षेत्र में पिछड़े और कोई सौ साल तक अलग - थलग रहे जैसलमेर और यहां के बाशिंदों की किस्मत को ही बदल दिया है. कोई जमाना था जब अकाल व सूखे की मार झेलते हुए यहां के मूल निवासी रोजी-रोटी के लिए राजस्थान के अन्य शहरों के साथ देश के दूसरे प्रांतों का रुख करते थे. लेकिन पिछले चार दशकों में समय का पहिया ऐसा पलटा कि आज लोग बाहर से रोजगार के लिए जैसलमेर आकर बस रहे हैं. जैसलमेर में वर्तमान में करीब 500 से ज्यादा होटलें, सम-खुहड़ी में 200 से ज्यादा रिसोर्टस, 300 से अधिक रेस्टोरेंट्स के अलावा सैकड़ों की तादाद में ट्रेवल एजेंसियां, हैंडीक्राफ्ट की दुकानों व अन्य व्यवसायों के साथ हजारों की तादाद में लोग रोजगार पा रहे हैं. इसके चलते जैसलमेर का पर्यटन व्यवसाय आज करीब 1500 करोड़ रुपए से अधिक सालाना तक पहुंच गया है. यही पर्यटन उद्योग यहां के लोगों की रोजी रोटी का साधन बन चुका है.
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इस बार अच्छी सीजन की उम्मीदः पिछले समय कोरोना महामारी के चलते जैसलमेर में पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो गया था. लेकिन इस साल कोरोना के बादल छंटने के कारण सीजन में 15 लाख के ज्यादा सैलानियों के जैसलमेर भ्रमण पर आने की उम्मीद है. बता दें कि जैसलमेर में हर साल लाखों की संख्या में देशी व विदेशी सैलानी आते है. लेकिन कोरोना महामारी के कारण बंद रही इंटरनेशनल फ्लाईट्स के कारण गत 2-3 सीजन में सिर्फ देसी पर्यटकों की भीड़ ही देखने को मिलती थी. लेकिन इस बार रिकार्ड तोड़ विदेशी सैलानियों के भी जैसलमेर आने की संभावना है. हालांकि इक्का दुक्का सैलानियों के ग्रुप जैसलमेर भ्रमण पर आ रहे हैं. जिससे यहां के पर्यटन व्यवसायियों में खासा उत्साह है. लेकिन अब कोरोना पर काफी हद तक अंकुश लगने के बाद यह पहला मौका होगा जब विदेशी सैलानी भी सीजन में जैसलमेर पहुंच पाएंगे. इसी को लेकर पर्यटन व्यवसायियों ने पावणों के स्वागत के लिए अपने होटल व रिसोर्ट को दुल्हन की तरह सजाना शुरू कर दिया है.
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दशहरा के बाद से लगातार पहुंच रहे सैलानीःगत दिनों नवरात्रि व दशहरा पर्व के बाद से स्वर्णनगरी देसी सैलानियों से गुलजार नजर आ रही है. इन दोनों पर्वों के बाद से खासकर बंगाली सैलानियों के स्वर्णनगरी पहुंचने से यहां के पर्यटन स्थल गुलजार नजर आ रहे हैं. पर्यटन कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि बंगाल में नवरात्रि के बाद मिली छुट्टियों के कारण इन दिनों में बंगाली टूरिस्ट ज्यादा आ रहे हैं. लेकिन लंबे समय से जैसलमेर विदेशी सैलानियों को देखने को तरस गया था. इस बार पर्यटन सीजन की बढ़िया शुरुआत हुई है और उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में बढ़िया बिजनेस मिलेगा. साथ ही पर्यटन से जुड़े लोगों का कहना है कि होटलों में बुकिंग तो इस साल बढ़िया आ रही है. एडवांस बुकिंग को देखकर इस साल बढ़िया पर्यटन सीजन की उम्मीद है.
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इन्होंने बिगाड़ी स्वर्णनगरी की छवि
- लपके:जैसलमेर की छवि बिगाड़ने में लपकों का सबसे बड़ा रोल है. जगह - जगह सैलानियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं ने सैलानियों का जैसलमेर से मोह भंग कर दिया.
- गंदगी : नगरपरिषद की ओर से शहर को साफ सुथरा नहीं रखने से भी सैलानियों के मन में यहां की छवि खराब हुई है. हालांकि इसमें यहां के स्थानीय निवासियों का भी पूर्ण रूप सहयोग मिले तो स्वर्णनगरी सैलानियों को साफ सुथरी नजर आ सकती है.
- ऊंट संचालक : धोरों पर सैलानियों के साथ होने वाली छीना झपटी व ठगी भी सैलानियों की आवक में कमी का मुख्य कारण है.
- अस्थाई होटल संचालक : किराए पर लेकर होटल चलाने वाले भी पीछे नहीं हैं. उनकी ओर से सैलानियों के साथ भारी ठगी की जाती है. जिससे सैलानी अब जैसलमेर आना कम पसंद कर रहे हैं.
- जागरुकता की कमी : जैसे - जैसे पर्यटन बढ़ा है वैसे कई समस्याएं सामने आई. लेकिन जैसलमेर के पर्यटन व्यवसायी इनके प्रति जागरूक नहीं हुए और उन्हें अब नुकसान उठाना पड़ रहा है.
लाइट एवं साउंड शो - गड़ीसर झील
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30 अक्टूबर से शुरू हो रही विमान सेवाः जैसलमेर से पर्यटन सीजन को देखते हुए स्पाइस जेट ने अपनी हवाई सेवाओं की समय सारिणी जारी कर दी है. साथ ही जैसलमेर के लिए फ्लाइट टिकट की बुकिंग भी शुरू हो गई है. 30 अक्टूबर से जैसलमेर 4 बड़े शहरों से जुड़ने जा रहा है. जिसमें दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और जयपुर शामिल है. जानकारी के अनुसार 30 अक्टूबर को अहमदाबाद से पहली फ्लाइट जैसलमेर के सिविल एयरपोर्ट पर लैंड करेगी.