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भारत-पाक सीमा पर स्थित है बम वाली देवी 'तनोट माता', 1965 के युद्ध में हुआ था ये चमत्कार - Tanot Mata Temple of Jaisalmer

नवरात्री के अवसर पर जैसलमेर के तनोट माता के सिद्ध मंदिर में रविवार को सुबह आरती और घट स्थापना के साथ नवरात्रि की शुरुआत हो गई. इस मंदिर की खास बात यह है कि तनोट माता का मंदिर भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई यादें से जुड़ी है. बता दें कि 1965 में जब दुश्मन की तोपों ने इस मंदिर को तीनों ओर से घेर लिया था. उस वक्त पाक सेना की ओर से मंदिर को निशाना बनाया गया था. लेकिन इसे चमत्कार ही कहा जा जाएगा कि मंदिर टस से मस न हुआ.

जैसलमेर के तनोट माता मंदिर, Bomb goddess Tanot Devi

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Published : Sep 29, 2019, 4:30 PM IST

जैसलमेर. थार रेगिस्तान से 120 किमी दूर सीमा के पास स्थित तनोट माता के सिद्ध मंदिर में रविवार को सुबह आरती और घट स्थापना के साथ नवरात्रों की धूम शुरू हो गई. आरती के पश्चात माता के भण्डारे में सैंकड़ों श्रृद्धालुओं ने प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण किया.

तनोट माता के मंदिर पर नवरात्री की धूम

बता दें कि ये मंदिर बेहद खास है क्योंकि ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसकी पूजा और सभी व्यवस्थाएं BSF के जवान करते है. भारत पाकिस्तान युद्ध के कई यादें से जुड़ी यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के लिये भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है. देश की पश्चिमी सीमा के निगेहबान जैसलमेर जिले की पाकिस्तान से सटी सीमा पर बना यह तनोट माता का मंदिर भारत पाक के 1965 और 1971 के युद्ध का मूक गवाह भी है.

नवरात्री के अवसर पर सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से श्रृद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए तनोट में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए है. सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ पुलिसकर्मी तैनात है. तनोट सड़क मार्ग पर पैदल जाने वाल भक्तों की सुविधा के लिए माता के भक्तों ने नि:शुल्क भण्डारे लगाए है, जहां भक्तों के लिए खाने, ठहरने, चाय और दवाईयों की व्यवस्था की गई है.

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पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम

बता दें कि 1965 के बीच की जब दुश्मन की जबरदस्त आग उगलती तोपों ने तनोट को तीनों ओर से घेर लिया था उस वक्त पाक सेना की ओर से मंदिर को निशाना बनाया गया था लेकिन मंदिर पे एक खरोच तक नहीं आई थी. वहीं सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर को टस से मस न कर सकी, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 400 बम तो फटे तक नहीं थे.

यहीं कारण रहा कि 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक हुए पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाजखान ने भारत सरकार से यहां दर्शन करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. करीब ढ़ाई साल की जद्दोजहद के बाद भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने माता की प्रतिमा के दर्शन किए और मंदिर में चांदी के तीन सुन्दर छत्र भी चढ़ाये जो आज भी मंदिर में विद्यमान है और इस घटना का गवाह बना हुआ है.

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मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी ये आकर्षण का केन्द्र है. लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है, इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों के ओर से अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती है.

रूमाल बांधकर मांगते हैं मन्नत

माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर रूमाल खोला जाता है. तनोट माता ने सैंकड़ो भक्तों की झोलीयां खुशियों से भरी है. मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रीयों और नेताओं के साथ आमजन भी माता के मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगी है.

सीसुब पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है. आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. पुजारी भी सैनिक ही है. सुबह-शाम आरती होती है. मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है, लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता. फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं है. इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ की पटकथा में भी शामिल किया गया था.

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