जैसलमेर. याचिकाकर्ता ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस बीआर गवई व सूर्यकांत की पीठ को बताया गया कि गोडावण के उड़ान के रास्ते में ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनों के साथ टकराव के कारण हर साल इन दोनों लुप्त प्राय प्रजातियों में से लगभग 15 फीसदी मर जाते हैं. इस पर सीजेआई ने कहा कि सबसे अच्छा समाधान इन पावर लाइनों को भूमिगत कर दिया जाना है. निर्णय के बाद जैसलमेर के गोडावण और वन्य जीव प्रेमियों ने इसका स्वागत किया और इसे विलुप्त होते गोडावण के संरक्षण के लिए मील का पत्थर साबित होना बताया.
गंभीर रूप से लुप्त प्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन गोडावण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर WWF के जीव वैज्ञानिक मोहन, जो पिछले कई समय से जैसलमेर में गोडावण पर शोध और अध्ययन कर रहे हैं. उनका कहना है कि IUCN की संकट ग्रस्त प्रजातियों पर प्रकाशित होने वाली लाल डेटा पुस्तिका में गोडावण को 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' श्रेणी में तथा भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में रखा गया है. पिछले कई साल से इसकी संख्या में लगातार कमी हो रही है. इसकी संख्या में कमी के कई कारण हैं, जिसमें जंगली जानवरों द्वारा इसे नुकसान पहुंचाना, शिकार, लेंडस्केप में परिवर्तन के साथ साथ ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनें मुख्य कारण हैं.
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भारतीय वन्य जीव संस्थान के आंकड़ों के अनुसार जैसलमेर के थार डेजर्ट में 6 हजार किलोमीटर तक इन ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनों का जाल है, जिससे लगभग 3 हजार वर्ग किलोमीटर में एक महीने में तकरीबन 18 हजार पक्षियों की मौत हो जाती है, जो चौंकाने वाला आंकड़ा है. इसमें गिद्ध, कुरंजा, बाज की कई प्रजातियों के साथ गोडावण और अन्य कई वन्य जीव शामिल हैं. इस निर्णय को लेकर जैसलमेर के पूर्व मानद वन्यजीव प्रतिपालक एवं पर्यावरण प्रेमी माल सिंह जामड़ा ने बताया कि जैसलमेर में नॉन डीएनपी (डेजर्ट नेशनल पार्क) एरिया में हाईटेशन वायर मोकला, रामदेवरा और खेतोलाई गांवों के आसपास अधिक है. इन इलाकों में गोडावण पाया जाता है.
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पिछले 2 साल में इन इलाकों में 3 रेकॉर्डेड मामले सामने आये हैं, जिसमें इन वायरों की चपेट में आने से इस राज्य पक्षी की मौत हुई है. इसके अतिरिक्त भी ऐसे कई मामले और होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
आंकड़ों पर एक नजर...
1 हजार 969 में अनुमानित 1 हजार 260 गोडावण जैसलमेर में थे, जो अब विभागीय आंकड़ों के अनुसार घटकर साल 2018 में लगभग 150 हो गए. लेकिन कुछ वन्य जीव प्रेमी और शोधकर्ता का कहना है कि जैसलमेर में इनकी वास्तविक संख्या 60 से 70 ही है. ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनों से खतरा क्यों.?
जीव वैज्ञानिक मोहन ने बताया की गोडावण भारत का सबसे वजनी उड़ने वाला पक्षी है और यह 60 मीटर ऊंचाई तक अधिकतम उड़ सकता है. सामान्यतः इसके उड़ने की ऊंचाई के बराबर ही ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनें गुजरती हैं और साथ ही ये दूरी से इन तारों को देख नहीं पाता और ज्यादा वजन होने के कारण ये एक ही दिशा में उड़ान भरता है. उड़ान के दौरान गुजरने वाले पावर ट्रांसमिशन लाइनों के पास पहुंचने पर ये उन्हें देख पाता है और अपनी उड़ान में अचानक परिवर्तन नहीं कर पाता, जिससे ये इन पावर ट्रांसमिशन वायरों के चपेट में आ जाता है.
क्या है गोडावण...?
गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) एक बड़े आकार का पक्षी है, जो गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र तथा सीमावर्ती पाकिस्तान में पाया जाता है. यह राजस्थान का राज्य पक्षी है. यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला होता है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है. यह पक्षी 'सोन चिरैया', 'सोहन चिड़िया' तथा 'शर्मिला पक्षी' के उपनामों से भी प्रसिद्ध है.
गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इसकी बहुत ही कम संख्या बची हुई है अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है. उड़ने वाले पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी पक्षी है, मादा गोडावण की लम्बाई 90 से 95 सेमी तथा 8 से 10 किलो वजनी और नर गोडावण 110 से 120 सेमी लम्बा और 15 किलो तक वजन का होता है. बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है.
गोडावण सर्वाहारी पक्षी है. इसकी खाद्य आदतों में गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का भक्षण करना शामिल है. किंतु इसका प्रमुख खाद्य टिड्डे आदि कीट हैं. यह सांप, छिपकली, बिच्छू आदि भी खाता है. राजस्थान के जैसलमेर जिले में राष्ट्रीय मरु उद्यान (डेजर्ट नेशनल पार्क) को गोडावण की शरणस्थली कहा जाता है. जहां पर गोडावण की घटती संख्या को बढ़ाने एवं इनके संरक्षण के लिये हेचरी स्थापित की गई है. जहां इनके प्रजनन काल में सुरक्षा के समुचित प्रबंध किए जाते हैं.