जैसलमेर.1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना के 120 जवानों ने पश्चिमी राजस्थान में थार के धोरों में स्थित जैसलमेर के लोंगेवाला में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. वैसे तो आर्मी ने उस दौरान युद्ध लड़ा था, लेकिन बीएसएफ के एक जवान ने इस युद्ध को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी. वह नाम है भैरो सिंह राठौड़. इनको आपने 'बॉर्डर' फिल्म में देश के लिए शहीद होता देखा होगा. लेकिन असल जिंदगी में वो वीर आज भी जिंदा है. जोधपुर के शेरगढ़ स्थित एक गांव में वो योद्धा अपना जीवन यापन कर रहा है. भैरों सिंह की जुबानी सुनिए इस युद्ध की दास्तां.
भारत की इस कमजोर सीमा पर हमले के साथ पाकिस्तानी सेना की मंशा थी कि रात को हमला किया जाए और सुबह का नाश्ता जैसलमेर में, दोपहर का भोजन जोधपुर में और रात का खाना दिल्ली में किया जाए. पाकिस्तानी सेना को अंदाजा नहीं था कि संख्या में भले ही इस सीमा पर सैनिक कम थे, लेकिन इनके हौसले किसी भी दुश्मन को पस्त करने के लिए भरपूर थे. इन्हीं हौसलों की बानगी थी कि टैंक और पैदल रेजिमेंट के साथ पूरे संसाधनों सहित लोंगेवाला सीमा पर पहुंची पाक सेना को उल्टे पांव लौटना पड़ा और उनके जोधपुर और दिल्ली के सपने, सपने ही रह गए.
5 और 6 दिसंबर 1971 को हुआ था युद्ध
लोंगेवाला युद्ध के नायक भैरो सिंह ने उस युद्ध के बारे में बताते हुए कहा कि थार रेगिस्तान में लोंगेवाला की लड़ाई 5 और 6 दिसंबर 1971 को लड़ी गई थी. इस लड़ाई के दौरान 23वीं पंजाब रेजीमेंट के 120 भारतीय सिपाहियों की एक टोली ने पाकिस्तानी सेना के 3000 फौजियों के समूह को धूल चटा दी थी. भारतीय वायु सेना ने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी.
लड़ाई का मुख्य फोकस सीमा का पूर्वी हिस्सा था
1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई का मुख्य फोकस सीमा का पूर्वी हिस्सा था. पश्चिमी हिस्से की निगरानी सिर्फ इसलिए की जा रही थी ताकि पाकिस्तानी सेना इस इलाके पर कब्जा करके भारत सरकार को पूर्वी सीमा पर समझौते के लिए मजबूर ना कर दें. पाकिस्तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर ने अपनी योजना पर विश्वास प्रकट करते हुए कहा था कि इंशाअल्लाह हम नाश्ता लोंगेवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खाएंगे और रात का खाना जैसलमेर में होगा. यानी उनकी नजर में सारा खेल एक ही दिन में खत्म हो जाना था.
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नायक भैरो सिंह ने बताया कि वे उस समय 14 बीएसएफ में तैनात थे और लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सेना के साथ गाइड के लिए उन्हें अटैच किया गया था. 3 दिसंबर को मेजर चांदपुरी ने लेफ्टिनेंट धरमवीर के नेतृत्व में जवानों की टोली को बाउंड्री पिलर 638 की हिफाजत के लिए गश्त लगाने भेज दिया. ये पिलर भारत-पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर लगा हुआ था.