जैसलमेर. कला संस्कृति एवं धोरों की धरती जैसलमेर. जहां पर्यटन सीजन सर्द हवाओं के साथ हवाओं की गति से तेज चल रही है. वहीं दूसरी तरफ नगर परिषद अभी तक तैयार नहीं हुई है. सर्दियों में जैसलमेर की जनता को पीने का पानी प्राप्त करने वाली ऐतिहासिक गड़ीसर झील दुर्दशा का शिकार हो गई है.
जैसलमेर में अपने बदहाली की आसूं बहा रहा यह झील... - durdasa
कला संस्कृति एवं धोरों की धरती जैसलमेर. जहां पर्यटन सीजन सर्द हवाओं के साथ हवाओं की गति से तेज चल रही है. वहीं दूसरी तरफ नगर परिषद अभी तक तैयार नहीं हुई है.
इसकी दुर्दशा तो देखिए इंसान हाथ धोना भी पसंद नहीं कर रहा है. पशु उनसे किनारा करने लगे हैं. अब केवल वैसे ही इस झील के पानी में अपनी गर्मी शांत करती दिखाई दे रही है या फिर इस पानी में गंदी मछलियां अठखेलियां करते लोग नजर आ रहे हैं. प्यास बुझाने वाली गाड़ी सब मनोरंजन का साधन बन गई हैं. मरुस्थल धरा पर अमृत स्त्रोत के रूप में स्थापित गड़ीसर झील प्रशासन की उदासीनता के कारण अपना मूल अस्तित्व खोती जा रही है.
गड़ीसर झील के लिए प्रशासन ना तो कोई विशेष इंतजाम कर रही है ना ही इसे सहेजने के प्रयास होते दिख रहे हैं, जिससे देश एवं विदेश घूमने आ रहे लोग भी इसकी खूबसूरती में गंदगी का दाग हो रहा है. झील के चारों तरफ गंदगी होने से वातावरण प्रदूषित हो रहा है. कभी यह तालाब पूरे शहर की प्यास बुझाता था. साथ ही साथ शहर के मंदिरों में भी इस पानी का उपयोग लिया जाता था. इसे पावन पवित्र माना जाता था. समय बीतते-बीतते गड़ीसर तालाब झील का रूप धारण कर लिया और यहां आने वाले हजारों देशी-विदेशी पर्यटकों का मुख्य आकर्षण का केंद्र बनने के साथ में पर्यटकों के लिए वोटिंग की सुविधा भी उपलब्ध करवाता था. इस झील पानी में भी गंदगी का साम्राज्य फैला रही है. प्रशासन द्वारा कड़ी सफाई के लिए भी कोई खास इंतजाम नहीं किए गए, जिससे कि की हालत बद से बदतर होती नजर आ रही है.
ऐतिहासिक और पवित्र गणेशन चीन में प्लास्टिक की पॉलीथिन प्लास्टिक की खाली बोतल शराब और खाली विद्यार्थी नजर आ रही है. सुबह, दोपहर और शाम यहां पर शराबियों का जमावड़ा रहता है. शराब की खाली बोतलों के साथ अन्य खाने-पीने की वस्तुएं और कचरा भी झील में डालते हैं.