जैसलमेर. जैसलमेर जिले के डेढ़ा गांव में करीब चार सौ साल पहले देवर के उलाहने पर भाभी के पिता ने एक ऐसा चमत्कारी तालाब खुदवाया, कि वो आज तक लोगों की प्यास बुझा रहा है. यहां के लोगों का कहना है, कि तालाब बनने के बाद से आज तक एक बार भी नहीं सूखा. जैसलमेर से करीब 50 किलोमीटर दूर कुलधरा खाभा रोड पर डेढ़ा गांव का यह ऐतिहासिक तालाब पालीवाल संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है.
कभी खाली नहीं हुआ तालाब का पानी
इस प्राचीन तालाब का पानी कई सदियों के बीत जाने के बाद भी कभी खाली नहीं हुआ. इसे कुदरत का करिश्मा कहें या फिर पूर्वजों का वरदान. इस तालाब में जैसलमेर के पालीवाल संस्कृति के कई गांवों की प्यास उस जमाने में भी बुझाई और आज भी आसपास के दर्जन भर गांवों की प्यास बुझा रहा है. इस क्षेत्र में कई बार 3 से 4 साल तक बारिश नहीं होने के बावजूद भी तालाब का पानी कभी खाली नहीं हुआ. वर्तमान में भी रोजाना आसपास के दर्जन भर गांवों से 50 से ज्यादा टैंकर इस तालाब से पानी भर कर ले जाते हैं. इस ऐतिहासिक तालाब की तस्वीर दिल्ली के विज्ञान भवन में राजस्थान के परम्परागत पेयजल स्रोतों की समृद्ध संस्कृति का बखान कर रही है. इसके अलावा देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
पढ़ें- स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर बना था यह ऐतिहासिक सरोवर
देवर के उलहाने पर भाभी के पिता ने खुदवाया तालाब
वहीं ईटीवी भारत को ग्रामीणों ने इस तालाब के बारे में जानकारी दी. गांव के बुजुर्गों का कहना है, कि इस तालाब के बारे में किवदंती जुड़ी हुईं हैं. यह गांव चार सौ साल पहले जब पालीवाल संस्कृति का हिस्सा था, उस समय पास के गांव जाजिया में पालीवाल जाति के एक धनवान सेठ की लड़की जसबाई की शादी इस गांव में हुई थी और उस समय पानी के लिए पनघट पर जाना पड़ता था. जस बाई एक दिन ससुराल से घड़ा लेकर पानी भरने गांव के कुएं पर गई, जहां एक पशुपालक अपने मवेशियों को पानी पिला रहा था. यह देखकर युवती ने पशुपालक से आग्रह किया, कि उसे पहले एक घड़ा पानी भरने दें, ताकि समय पर घर जाकर खाना बना सके, लेकिन पशुपालक ने उसके आग्रह को अनसुना कर दिया और जस बाई को बाद में घड़ा भरना पड़ा.