जैसलमेर.जैसलमेर की प्राचीन राजधानी 'लौद्रवा' में शिव मंदिर के पास और काक नदी के किनारे मूमल की मेड़ी के अवशेष मौजूद हैं, जो मूमल-महेंद्रा की अमर प्रेम कहानी के मूक गवाह हैं. रेगिस्तान के मीलों लंबे समंदर को पारकर अमरकोट से महेन्द्रा अपनी प्रियतमा मूमल से मिलने यहां आता था. लौद्रवा नगर काक नदी के किनारे बसा हुआ थार का नखलिस्तान था. इसी भग्न-लौद्रवा में आज भी मूमल की मेड़ी के खंडहर देखे जा सकते हैं. यह महल एक स्तम्भ के रूप में बना था, जिसे लोक कथा में 'इकथम्भिया' महल कहा जाता है.
थार के रेगिस्तान में बहुत सुंदर कही जाने वाली राजकुमारी मूमल और राजकुमार महिन्द्रा का बेइंतहा प्रेम 'मेड़ी' महल के सबसे ऊपरी कक्ष को कहा जाता है. जाली झरोखों से शोभित मूमल की इस मेड़ी में सभी तरह की भौतिक सुविधाएं थीं. इसी मेड़ी में रहती थीं, अद्वितीय सुंदरी मूमल. यह मेड़ी कई रहस्यों का घर थी. विषैले और खतरनाक जीव थे, जो किसी को भी डरा सकते थे. मेड़ी के कई गुप्त मार्ग भी थे.
अनजान व्यक्ति इन रहस्यों को भेद नहीं सकता था...
मूमल ने प्रतिज्ञा कर रखी थी, कि जो पुरुष इन रहस्यों को भेदकर उस तक पहुंच जाएगा और अपनी योग्यता से उसे प्रभावित कर देगा. वह उसी के साथ विवाह करेंगी. मूमल की इस प्रतिज्ञा और उसके रूप-सौन्दर्य की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी. तत्कालीन सिंध, गुजरात और मारवाड़ के साथ ही लोकाख्यानों में इरान, इराक और अफगानिस्तान तक उसके रूप के चर्चे थे. राजकुमार, बादशाह और वीर पुरुष लौद्रवा मूमल की मेड़ी तक पहुंचे. लेकिन उसके रहस्य को भेदने में नाकाम रहे. कोई विरला बुद्धिमान मूमल तक पहुंच भी जाता तो वह मूमल के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाता और उसके रहस्यों का शिकार हो जाता.
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एक दिन की बात...
अमरकोट के राणा का पुत्र महेन्द्र एक दिन शिकार करते समय एक हिरण का पीछा करते-करते लौद्रवा राज्य की काक नदी के पास जा पहुंचे. नदी के उस पार एक सुन्दर बगीचा और उसमें बनी झरोखेदार मेड़ी दिखाई दी. सुनसान इलाके में मेड़ी देखकर वो खुश हुए. तभी मूमल की एक सहेली ने आकर परिचय पूछा. महेन्द्रा ने परिचय दिया और मेड़ी की जानकारी ली. उसने बताया, कि यह झरोखेदार मेड़ी और सुन्दर बाग उसी मूमल का है, जिसके चर्चे दूर-दूर तक हैं.
प्रण था, वह विवाह उसी से करेगी जो उसका दिल जीत लेगा...
मूमल ने प्रण ले रखा है, कि वह विवाह उसी से करेगी, जो उसका दिल जीत लेगा. नहीं तो पूरी उम्र कुंवारी ही रहेगी. उसके बाद उसकी सहेली ने महेंद्रा को मूमल से मिलाया. मूमल को देखकर महेंद्रा देखता ही रह गया. उसकी नजरें मूमल के चेहरे को एकटक देखते जा रहीं थीं. मूमल का भी कुछ यही हाल हुआ और फिर दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठे. बातों-बातों में कब रात कट गई और सुबह सूरज निकल आया, पता हीं नहीं चला. महेन्द्रा का मूमल को छोड़कर वापस जाने का मन नहीं हो रहा था.
चलते समय महेन्द्रा ने मूमल से वादा किया- कि वो फिर आएगा...
मूमल से वापस आकर मिलने का वादा कर महेन्द्रा अमरकोट के लिए रवाना तो हो गया पर पूरे रास्ते उसे मूमल के अलावा कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था. वह तो सिर्फ यही गुनगुनाता चला जा रहा था 'म्हारी माढेची ए मूमल, हाले नी अमराणे देस' यानि मेरी मांढ देश की मूमल, आओ मेरे साथ अमरकोट चलो.
महेन्द्रा अमरकोट पहुंचा, फिर उसने चीतल नाम के एक ऊंट का इंतजाम किया. जिसके जरिए वह लोद्रवा मूमल के पास जा पहुंचता. रात के तीसरे पहर महेन्द्रा वापस निकला और सुबह होने से पहले अमरकोट आ पहुंचा. महेन्द्रा विवाहित था, उसकी सात पत्नियां थीं. महेन्द्रा की सातों पत्नियों को तो मूमल का नाम सुनकर जैसे आग लग गई. उन्होंने चीतल नाम के ऊंट के पैर तुड़वा दिए, ताकि उसके बिना महेन्द्रा मूमल के पास ना जा पाए.
पत्नियों के षडयंत्र के कारण मूमल से मिलने देरी से पहुंचा महेन्द्रा...
जब लौद्रवा में मूमल के महल के पास पहुंचा तो मूमल उसका इंतजार कर सो चुकी थी. उस दिन मूमल की बहन सुमल भी मेड़ी में आई थी. दोनों की बातें करते-करते आंख लग गई थी. सुमल ने पुरुषों के कपड़े पहने हुए थे और वह बातें करती-करती पुरुष के कपड़ों में ही मूमल के पलंग पर उसके साथ सो गयी. महेन्द्रा मूमल की मेड़ी पहुंचा तो यह दृश्य देख वापस लौट गया. वह मन ही मन सोचता रहा, कि जिस मूमल के लिए वो प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार था, वह मूमल ऐसी निकली.
इधर सुबह आंख खुलते ही मूमल की नजर महेन्द्रा के हाथ से छूटे चाबुक पर पड़ी तब वह समझ गई कि महेन्द्रा आया था. पर शायद किसी बात से नाराज होकर चला गया. कई दिनों तक मूमल महिंद्रा का इंतजार करती रही, कि वो आएगा और जब आएगा तो सारी गलतफहमियां दूर हो जाएंगी, पर महेन्द्रा नहीं आया. मूमल ने उसके वियोग में श्रृंगार करना छोड़ दिया, खाना-पीना भी छोड़ दिया, उसकी कंचन जैसी काया काली पड़ने लगी. उसने महेन्द्र को कई चिट्ठियां लिखी पर महेन्द्रा की पत्नियों ने वह चिट्ठियां महेन्द्रा तक पहुंचने ही नहीं दी.
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आखिर मूमल ने एक ढोली यानि गायक को बुलाकर महेन्द्रा के पास भेजा, पर उसे भी महेन्द्रा से नहीं मिलने दिया गया. वह किसी तरह महेन्द्रा के महल के पास पहुंचने में कामयाब हो गया और रात पड़ते ही उस ढोली ने मांढ राग में गाना शुरू किया 'तुम्हारे बिना, सोढा राण, यह धरती धुंधली तेरी मूमल राणी है उदास मूमल के बुलावे पर असल प्रियतम महेन्द्रा अब तो घर आव' ढोली के द्वारा गयी मांढ सुनकर भी महेन्द्रा का दिल नहीं पसीजा.
इसके बाद मूमल ने अमरकोट जाने के लिए रथ तैयार करवाया ताकि अमरकोट जाकर महेन्द्रा से मिल उसका वहम दूर किया जा सके. अमरकोट में मूमल के आने और मिलने का आग्रह पाकर महेन्द्र ने सोचा, शायद मूमल पवित्र है, लगता है मुझे ही कोई गलतफहमी हो गई और उसने मूमल को संदेश भिजवाया कि वह उससे सुबह मिलने आएगा. मूमल को इस संदेश से आशा बंधी.
रात को महेन्द्रा ने सोचा, कि देखें मूमल मुझसे कितना प्यार करती है.? महेन्द्रा के मन में तो शंका का कीड़ा घुस चुका था, वह मूमल की परीक्षा लेता है. अपने एक विश्वसनीय सेवक के हाथ मूमल के पास सन्देश भेजता है कि महेन्द्रा को नाग ने डस लिया है और वह मर गया है. मूमल इस सन्देश के मिलते ही प्राण त्याग देती है. मूमल के चरित्र की इस उज्ज्वलता को जानकर महेन्द्रा भी 'मूमल-मूमल-मूमल' पुकारता देह त्याग देता है. इस तरह एक शंका के कारण इस प्रेम कथा का दुखद अंत होता है.
एक ओर जहां जैसलमेर के पास लोद्रवा में काक नदी आज भी कल-कल करती मूमल और महेन्द्रा की अमर प्रेम कहानी सुना रही है. वहीं जैसलमेर में आयोजित होने वाले मरु महोत्सव में इस अमर प्रेमकथा की नायिका मूमल के नाम पर मिस मूमल सौंदर्य प्रतियोगिता आयोजित की जाती हैं.