जैसलमेर. रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंटों में इन दिनों त्वचा संबंधी मेंज बीमारी फैल रही है. बीते चार महीनों में जैसलमेर और बाड़मेर जिले के कई गांवों में ऊंट पालकों को इस बीमारी से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
ऊंटों में तेजी से फैल रही मेंज बीमारी कोरोना संक्रमण के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन में ऊंटों का इलाज भी नहीं हो पा रहा है. ऊंटों में हो रहे मेंज रोग को ग्रामीण 'पां' बीमारी कहते हैं. मेंज के साथ ही इन दिनों ऊंटों में सर्रा तिबरसा रोग की भी पुष्टि हो रही है, जिसके चलते पशुपालकों में भय व्याप्त हो गया है.
यह बीमारी जैसलमेर जिले के सांवता, करड़ा, पोछिणा, मसूरिया, लुणार, गूंजनगढ, बिंजराज का तला, सम, खाभा, मिठड़ाऊ के साथ ही बाड़मेर जिले के सुंदरा, पांचला, केरला, रोहिणी, समद का पार, जैसिंधर, अकली, तामलोर और मुनाबाव में फैल रही है.
जैसलमेर के सांवता गांव के ऊंटपालक सुमेर सिंह भाटी का कहना है कि उनके इलाके में लगभग 5000 ऊंट है और वे स्वयं 400 ऊंटों के मालिक हैं. भाटी श्री देगराय उष्ट्र संरक्षण एवं दूध विपणन विकास सेवा समिति के नाम से एक सोसायटी भी चलाते हैं. भाटी ने कहा कि क्षेत्र के ऊंटों में मेंज (पॉ) बीमारी फैलनी शुरू हो गयी है और उनके 170 ऊंटों में ये बीमारी अब तक फैल चुकी है. जिससे चलते 15 ऊंटनियों की मौत हो गई है.
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ऊंटनियों के दूध पर हो रहा असर
इसके अलावा 200 से 300 ऊंटों के समूह में 10 से 15 ऊंट इस बीमारी से ग्रसित हो रहे है. इस बीमारी के कारण ऊंटनियों की दूध देने की क्षमता भी कम हुई है. बीमार ऊंटनी 7 लीटर की जगह अब सिर्फ 4 लीटर दूध ही दे रही है. भाटी ने कहा कि इस बीमारी की रोकथाम के लिए ऊंटों को जो एरोमैटिक का टीका लगता है, वो लॉकडाउन के चलते नहीं मिल पा रहा है.
सरकारी अस्पतालों में भी ये टीका उपलब्ध भी नहीं है. कोरोना संक्रमण के चलते सरकारी पशु अस्पतालों में भी डॉक्टर नहीं है. जानकारी के अनुसार अकेले जैसलमेर में 40 हजार से ज्यादा ऊंटनियां हैं. भाटी का दावा है कि मेंज के कारण बड़ी संख्या में ऊंटनियों की मौत हो चुकी है. पशुपालक देसी नुस्खों से अपने पशुओं को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा.
पशु पालकों को नहीं मिल रहा उष्ट्र विकास योजना का पैसा
ऊंट पालकों का कहना है कि एक ओर तो ऊंटों में बीमारी फैल रही है. वहीं, दूसरी ओर कोरोना संक्रमण के चलते नकदी का संकट खड़ा हो गया है. राजस्थान सरकार ने ऊंट को राज्य पशु का दर्जा तो दे दिया, लेकिन उष्ट्र विकास योजना में दिए जाने वाली 10 हजार रुपए की राशि को बंद कर दिया है.
सुमेर सिंह भाटी को नवंबर के बाद यह राशि नहीं मिली है, यदि सरकार यह पैसा दे देती तो ऊंटों के इलाज में उन्हें आर्थिक तौर पर मदद मिलती. गौरतलब है कि ऊंटों की संख्या और प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए 2016 में उष्ट्र विकास योजना शुरु की गई थी. जिसके तहत ऊंट पालकों को ऊंटनी के बच्चे के रख-रखाव के लिए तीन किश्तों में 10 हजार रुपए सरकार की ओर से दिए जाते हैं.
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योजना पर चार साल में 3.13 करोड़ रुपए खर्च होने थे. ऊंट के बच्चे के पैदा होने पर तीन हजार, 9 महीने का होने पर तीन हजार और फिर 18 माह की उम्र होने पर चार हजार रुपए देय होते हैं. वहीं, पशु चिकित्सा अधिकारी जोगिंदर सिंह ने बताया कि इस बीमारी से ग्रसित पशु में दूध की उत्पादकता कम हो जाती है. डॉ. सिंह ने कहा कि इस रोग से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए, जिससे उनमें यह संक्रमण नहीं फैले. इसके लिए पशुपालन विभाग की ओर से निशुल्क इंजेक्शन भी उपलब्ध करवाए जा रहे है.
अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है राज्य पशु
ऊंट राजस्थान का राज्य पशु है और देश में सबसे ज्यादा ऊंट प्रदेश में ही हैं. बीते कुछ सालों में अवैध शिकार, बीमारी और उपयोगिता में कमी आने के कारण इनकी संख्या लगातार कम हो रही है. 2012 की पशु गणना के अनुसार राज्य में 3,25,713 ऊंट थे, जो 2019 में घटकर 2,12,739 ही रह गए हैं.
राजस्थान ऊंटों की संख्या के मामले में देश में पहले नंबर पर है. भारत में 2012 में जहां 4,00,274 ऊंट थे. वहीं, अब ये घटकर 2,51,956 ही रह गए हैं. आंकड़े बताते हैं कि देश के 84 फीसदी ऊंट राजस्थान में हैं. चिंता की बात यह है कि राजस्थान में ही ऊंटों पर सबसे ज्यादा संकट गहरा रहा है.
क्या है मेंज बीमारी
ऊंटों में सार्कोप्टिक मेंज, खाज या पां नाम की ये बीमारी सार्कोपट्स स्केबेई वर कैमेली नामक एक माइट से होती है, जो मक्खियों से फैलती है. यह बीमारी रोगी ऊंटों से स्वस्थ ऊंटों में बहुत तेजी से फैलती है. यह रोग ऊंट के पेट, पूंछ, जांघ जैसे हिस्सों को ज्यादा प्रभावित करता है. मेंज से शरीर के इन हिस्सों के बाल झड़ जाते हैं और चमड़ी काली पड़ कर सूख जाती है. खुजली से ऊंट अपने शरीर को दीवार या पेड़ पर रगड़ता है, जिससे शरीर पर घाव बन जाते हैं.