जैसलमेर. पक्षियों के लिए इंसानों द्वारा बनाई गई सरहद मायने नहीं रखती. वो जब उड़ान भरते हैं तो अपनी मर्जी के मालिक होते हैं. दुनिया में जहां दिल करता है, वहां उड़ते फिरते हैं और शांति का संदेश फैलाते हैं. ऐसे ही हजारों मील का सफर तय कर 'डेमोइसेल क्रेन' (कुरजां) मारवाड़ में इस वर्ष भी पहुंच चुके हैं.
जैसलमेर में साईबेरियन पक्षी का आगामन सैकड़ो की संख्या में प्रवासी पक्षी कुरजां के झुंड जिले के रामदेवरा कस्बे सहित आसपास के जलाशयों, खेतों में दिखाई दे रहे है. खासियत यह है कि साइबेरिया से लेकर मारवाड़ तक का करीब 6 हजार किलोमीटर का लम्बा सफर तय करने वाले ये पक्षी ना तो अपनी राह भटकते हैं और ना ही इनके यहां पहुंचने का समय गड़बड़ाता है. यह हर वर्ष तय समय पर पहुंच जाते हैं.
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कुदरत ने पक्षियों को कुछ विशेष क्षमता प्रदान की है. जिसके बल पर कुरजां साइबेरिया मौसम में शुरू होने वाले बदलाव को पहले से जान लेती है और मौसम में बदलाव शुरू होते ही हजारों की तादात में कुरजां भारतीय मैदानों की तरफ उड़ान भरना शुरू कर देती है. ये पक्षी करीब छह हजार किलोमीटर का सफर तय कर मारवाड़ पहुंच जाते हैं. सर्दी के आगमन के साथ ही कुरजां के समूह वहां से उड़ान भरना शुरू कर देते हैं और मारवाड़ में रातों के ठंडा होना शुरू होने के साथ यहां पहुंच जाते है.
यह है कुरजां की उड़ान का रास्ता...
कुरजां एक खूबसूरत पक्षी है, जो सर्दियों में साइबेरिया से ब्लैक समुद्र से लेकर मंगोलिया तक फैले प्रदेश से हिमालय की ऊंचाइयों को पार करता हुआ भारत में आता है. पूरी सर्दियां मैदानों और तालाबों के आसपास के क्षेत्र में गुजारने के बाद वापस अपने मूल वतन में लौट जाता है. अपने लंबे सफर के दौरान यह पांच से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ता है.
जैसलमेर के रामदेवरा कस्बे के तालाब और मैदानी भाग बना इनकी सैरगाह...
ये पक्षी रामदेवरा और आसपास क्षेत्र के गांवों में स्थित तालाबों पर सर्दी के मौसम की शुरूआत होते ही आ जाते है. इस वर्ष पिछले एक महीने से इस विदेशी पक्षी के झुंड मावा, छायण गांव के मुख्य तालाब, रामदेवरा -सिहड़ा मार्ग पर स्थित तालाबों, जैन मन्दिर के सामने और कई खड़ीनों में देखे जा सकते हैं. पक्षी प्रेमियों का कहना है कि कोरोना के कारण इस बार पर्यावरण अधिक स्वस्थ और स्वच्छ बना रहा है. कुरजां पक्षी इस बार भी बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे है, जो अच्छे संकेत है. कुरजां का प्रिय भोजन खेतों में होने वाला मतीरा और धान के दाने होते है, इसके साथ ही ये जलाशयों के किनारे कीट-पतंगों को भी खाते है. इस बार इस इलाके में हुई अच्छी बारिश से कुरजां को खेतों में अच्छा भोजन मिल रहा है.
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कुरजां लोक गीत...
कुरजां मारवाड़ के परिवेश में इतना घुलमिल गया है कि इस पर लोक कलाकारों द्वारा कई लोक गीत बनाये जा चुके है. राजस्थानी विरह गीत कुरजां में कुरजां के माध्यम से सात समंदर पार विदेश गए पति को पत्नी द्वारा सन्देश पहुंचाने का शानदार चित्रण किया गया है. लोक गीतों में अपने अपनी विरह वेदना को कुरजां पक्षी से प्रियतम को संदेश भिजवाना चाहा. जिसमें असीम करुणा और मिलन की ललक व्यक्त है.