जैसलमेर के इस कार सेवक को साथियों ने क्यों मान लिया मृत? जैसलमेर. 6 दिसंबर 1992 को देशभर से कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे. इनमें जैसलमेर से 6 कारसेवकों का भी दल शामिल था. इस दल में जैसलमेर के पदम सिंह लौद्रवा भी शामिल थे. वे विवादित गुंबद पर चढ़ गए. गुंबद गिरने के दौरान कई लोग घायल हो गए. घटनास्थल को खाली करवा लिया गया. हालांकि पदम सिंह अपने दल के पास देरी से पहुंचे, तो उनके साथियों ने उन्हें मृत समझ लिया. आखिर में जब वे दल से मिले, तो पदम सिंह को गले लगाकर रोए.
दूसरी बार कारसेवा के लिए अयोध्या गए पदम सिंह लौद्रवा जैसलमेर के लौद्रवा गांव के निवासी हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि 1992 में अयोध्या जाने के लिए मैं बाड़मेर के गडरा रोड से रवाना हुए 6 कारसेवकों के दल में शामिल था. हम 26 नवंबर, 1992 को अयोध्या पहुंच गए थे. इसके बाद पूर्व में तय कार्यक्रम अनुसार 6 दिसंबर को विवादित ढांचे को गिरा दिया गया. उसमें मैं भी शामिल था. 6 दिसंबर को उस जगह करीब 5-6 लाख लोग थे.
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हमें कहा गया कि कि लोहे की तारों व एंगलों को हाथ मत लगाना, इसमें करंट छोड़ा गया है. हमने सभी एंगल व तारों को तोड़ दिया. इसके बाद मैं गुंबद पर चढ़ गया. इस दौरान कई लोग घायल हुए. शाम करीब 6 बजे विवादित ढांचे के तीन गुम्बदों को गिरा दिया गया. उसके स्थान को खाली कर वहां भगवान राम की मूर्ति को स्थापित कर पूजा-अर्चना व आरती की गई. उसके बाद अपने दल के पास पहुंचने में देरी हो गई, तो उन लोगों ने मुझे मृत मान लिया. जिससे मेरे वहां पहुंचने पर मुझे गले लगाकर सभी रो दिए. इसके बाद हमने भगवान राम की आरती की.
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उन्होंने बताया कि मुझे भगवान राम के इस काम में यह छोटा सा योगदान देने का अवसर मिला. यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है और इससे मेरा जीवन धन्य हो गया. उन्होंने बताया कि अब भगवान राम के मंदिर के दर्शन के लिए जा रहा हूं. यह भी मेरे लिए गौरव की बात है और आगे भी मुझे ऐसा कोई अवसर मिलता है, तो मैं अपने आप को धन्य महसूस करूंगा. बता दें कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाला है. पदम सिंह भी इसमें शामिल होंगे.
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गौरतलब है कि अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने के लिए जैसलमेर से बड़ी संख्या में कार सेवक दो बार यानी 1990 और 1992 में कारसेवा के लिए अयोध्या रवाना हुए थे. हालांकि पहली बार 1990 में रवाना हुए कारसेवकों को अयोध्या पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर कुछ दिनों बाद पुनः जैसलमेर भेज दिया गया था. जबकि 1992 में दूसरी बार कारसेवक कारसेवा करने के लिए रवाना हुए.
हालांकि पिछली बार गिरफ्तारी होने के कारण इस बार पूरी प्लानिंग की गई थी. 1992 में अयोध्या में कारसेवा के लिए 6 दिसबंर की तारीख तय की गई. जिसके बाद अधिकांश कारसेवक 30 नवम्बर से पहले ही अयोध्या पहुंच गए और वहां सरयू नदी में स्नान के बाद विवादित ढांचे व वहां बने राम मंदिर को देखा तथा वहां पूजा-अर्चना की. इसके बाद तय तिथि 6 दिसम्बर को विवादित ढांचे की और बड़ी संख्या में कारसेवक पहुंचे और कई कारसेवकों ने विवादित ढांचे के गुम्बद पर चढ़कर उसे गिराने का काम शुरू किया.