जैसलमेर.स्वर्णनगरी को पर्यटन ने बहुत कुछ दिया है, जैसलमेर की पहचान पर्यटन से ही होती है. लेकिन अब पर्यटन को हमारी जरूरत है. जैसलमेर की साख यहां के स्थापत्य कला और सौंदर्य ने बनाई है. अब पर्यटन से जुड़ी कुछ समस्याओं की वजह से जैसलमेर की साख गिर रही है. हालांकि देशी पर्यटकों की आवक बढ़ रही है. लेकिन विदेशी सैलानियों की आवक कम हो रही है. समय रहते पर्यटन संरक्षण के प्रयास नहीं हुए तो जैसलमेर का पर्यटन खत्म हो जाएगा.
गौरतलब है कि साल 1970 के दशक में कुछ विदेशी पेशेवर मरूस्थलीय जैसलमेर में तेल और गैस के अन्वेषण के कार्य के सिलसिले में आए. यहां आकर उन्हें तेल-गैस के भूगर्भिय भंडारों की थाह तो लगी, लेकिन उससे भी ज्यादा विस्मयपूर्ण और कला का बड़ा खजाना इस रेगिस्तानी शहर में स्थापत्य सौन्दर्य के तौर पर नजर आया. वे लोग अपने देश गए और राजस्थान के इस ‘अजूबा’ शहर के बारे में लोगों को बताया. धीरे-धीरे एक कारवां बनने लगा और आज जैसलमेर वर्तमान में पर्यटन क्षितिज पर पुख्ता पहचान बना चुका है.
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हर साल 5 लाख से अधिक आते हैं सैलानी
आज यहां हर साल 5 लाख से ज्यादा देशी-विदेशी सैलानी घूमने आते हैं. सैकड़ों की तादाद में होटल्स, गेस्ट हाउस उनकी अगवानी के लिए तैयार हो चुके हैं और हजारों जिला वासियों के साथ बाहरी लोगों को भी यहां का पर्यटन रोजगार प्रदान कर रहा है. पर्यटन व्यवसायियों का मानना है कि जैसलमेर में पर्यटन विकास की अब भी अकूत संभावनाएं हैं, लेकिन उनका दोहन करने से पहले इस राह में आने वाली रुकावटों को दूर किया जाना आवश्यक है.
पर्यटन आजीविका मुख्य स्रोत
राजस्थान के पश्चिमी कोने में बसे जैसलमेर जिले को विश्व भर में ख्याति मिल चुकी है. उसकी वजह पर्यटन है. यहां की ऐतिहासिकता, स्थापत्य कला ने देशी-विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है. जिस जैसलमेर को काले पानी की सजा माना जाता था. वहां आज सात समुंदर पार से पर्यटन घूमने के लिए आते हैं. जैसलमेर को पहचान दिलाने में पर्यटन की अहम भूमिका है. जानकारों के अनुसार साल 1980 के बाद से जैसलमेर में पर्यटन ने पांव पसारे और देखते ही देखते पर्यटन यहां की आजीविका का मुख्य स्रोत बन गया.
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छह साल में छह गुना बढ़े देसी पर्यटक
जैसलमेर की कलात्मकता और यहां का शांत वातावरण देशी पर्यटकों को खूब रास आ रहा है. यहां देशी सैलानियों की आवक साल 1990 के बाद से हो रही है, लेकिन साल 2012 तक इनकी आवक का ग्राफ 1 लाख तक ही पहुंचा. इस दौरान यहां केवल बंगाली और गुजराती पर्यटक ही आते रहे. वहीं साल 2012 के बाद तो देश के हर कोने से पर्यटक यहां पहुंचने लगे. जिससे आवक में इजाफा हुआ और साल 2018 तक छह साल में देसी पर्यटकों की आवक 6 गुना तक बढ़ गई. साल 2018 में यह आंकड़ा 8 लाख के करीब रहा.
विदेशी सैलानियों के आने की आस
विदेशी सैलानियों की आवक भी सुधरी 2012 से 2015 के बीच विदेशी सैलानियों की आवक का ग्राफ नीचे उतरा. जहां पहले सवा लाख विदेशी सैलानी सालाना आते थे. वहीं साल 2012 में 50 हजार और उसके बाद तीन साल तक यह आंकड़ा एक लाख से कम रहा. विदेशी पर्यटकों की आवक गिरने से पर्यटन व्यवसायी चिंतित हो गए और जानकारों के अनुसार कुछ समस्याओं के चलते जैसलमेर का पर्यटन दूसरी तरफ डायवर्ट हो गया. लेकिन 2015 के बाद से फिर विदेशी सैलानियों की आवक बढ़ने लगी और 2018 में 1.36 लाख विदेशी सैलानी जैसलमेर आए. वहीं साल 2019 में अब तक पर्यटकों की आवक में भारी गिरावट दर्ज की गई है. लेकिन पर्यटन से जुड़े लोगों को अभी सीजन के दुसरे पड़ाव में अधिक सैलानियों के आने की आस है.
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नहीं दिया ध्यान और गिर गई साख
पर्यटनविदों के अनुसार यहां एक साल में करोड़ों का टर्न ओवर होता है. लेकिन पर्यटन को स्थाई और संरक्षण के लिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. जिस कारण सालाना टर्न ओवर कम होता चला गया. इसमें स्थानीय लोगों के साथ-साथ सरकारें भी दोषी हैं. यहां का पर्यटन विभाग मरू महोत्सव के अलावा कभी भी हरकत में दिखाई नहीं देता है.