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स्पेशल स्टोरी : जैसलमेर के वॉर म्यूजियम में भव्य श्रद्धांजलि स्थल का उद्घाटन...स्वर्ण अक्षरों में उकेरे शहीदों के नाम

जैसलमेर के वॉर म्यूजियम में बुधवार को भव्य श्रद्धांजलि स्थल का उद्घाटन किया गया. श्रद्धांजलि स्थल में भारत पाक युद्धों में शहीद हुए जवानों के नाम स्वर्ण अक्षरों में उकारे गए हैं. स्मारक का निर्माण जोधपुर के पत्थर से किया गया है.

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Published : Sep 18, 2019, 6:54 PM IST

जैसलमेर न्यूज, jaislamer news

जैसलमेर. जिले में 1965 और 1971 में हुए भारत पाक युद्धों की यादों को आम जनता के बीच रखने वाले वॉर म्यूजियम में आज का दिन शहीदों के नाम रहा. बुधवार को जैसलमेर के जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर भारतीय सेना द्वारा निर्मित वॉर म्यूजियम में वीर शहीदों के लिए भव्य श्रद्धांजलि स्थल का उद्घाटन किया गया. जिससे हर भारतीय का गर्व से सीना चौड़ा हो गया.

वीर शहीदों की याद में श्रद्धांजलि स्थल का हुआ उद्घाटन

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भारतीय सेना के लेफ्टीनेंट जनरल एस. के. सैनी जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ दक्षिणी कमान ने युद्ध स्थल के साथ-साथ श्रद्धांजलि स्थल का उद्घाटन किया. इस मौके पर सेना के वरिष्ठ अधिकारियों, जवानों सहित भूतपूर्व सैनिक मौजूद रहे.

जोधपुर के पत्थर से किया गया भव्य निर्माण
स्मारक का निर्माण जोधपुर के पत्थर के द्वारा भव्यता से किया गया है. श्रद्धांजलि स्थल में 21 परमवीर चक्र, 53 अशोक चक्र, 188 महावीर चक्र प्राप्त शहीदों के नाम, 12 वीरता पुरस्कार विजेताओं के साथ साथ जैसलमेर जिले के 15 शहीदों के नाम स्वर्ण अक्षरों में उकेरे गये हैं.

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जीवन चक्र को इंगित करता 16 फीट ऊंचा और 138 फीट चौड़ा चक्र

श्रद्धांजलि स्थल का निर्माण जनरल ऑफिसर कमाडिंग बेटल एक्स डिवीजन के टी.के.आईच के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ.16 फीट ऊंचा और 138 फीट चौड़े चक्र का निर्माण जनरल ऑफिसर कमाडिंग बेटल एक्स डिवीजन के ठीक मध्य में किया गया है. यह चक्र जीवन चक्र को इंगित करता है, चक्र के ठीक नीचे तीन सैनिकों के प्रतिबिंब को दिखाया गया है जो विभिन्न प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं.

श्रद्धांजलि स्थल बनाने का उद्देश्य शहीदों को सम्मान देना
श्रद्धांजलि स्थल बनाने का उद्देश्य शहीदों एवं वीरता पुरस्कार विजेताओं को श्रद्धांजलि देना एवं सैनिकों के बलिदान के बारे में वॉर म्यूजियम में आने वालों को जानकारी देना है. गौरतलब है कि वार म्यूजियम की स्थापना भारतीय सेना द्वारा 24 अगस्त 2015 को की गयी थी. उसके बाद से धीरे-धीरे युद्ध स्थल का विस्तार होता गया जो वर्तमान स्वरूप हासिल कर सका. यह जैसलमेर यूआईटी एवं सैनिक कल्याण बॉर्ड राजस्थान के सहयोग से इस मुकाम को हासिल किया जा सका है.

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