जैसलमेर.पोकरण की धरती परमाणु बमों के परीक्षण के लिए विख्यात है, लेकिन वर्तमान सियासी परिदृश्य में यहां ध्रुवीकरण से वोटों का विस्फोट होता है. साल 2008 में सृजित इस विधानसभा सीट के पिछले तीन चुनावों के परिणामों पर गौर करें तो यहां पहले चुनाव में 73.6 फीसदी वोट पड़े थे. उसके बाद 2013 में 87.63 प्रतिशत और 2018 में 87.97 प्रतिशत मतदान हुआ था. तीन में से दो बार कांग्रेस के सालेह मोहम्मद यहां से चुनाव जीते. पिछले बार उन्होंने तारातरा मठ के महंत प्रतापपुरी को पराजित किया था.
मैदान में दो धर्मगुरु :दरअसल, इस सीट पर कांग्रेस ने सालेह मोहम्मद को प्रत्याशी बनाया है. वहीं, भाजपा ने महंत प्रतापपुरी पर फिर से दांव खेला है. सालेह मोहम्मद सिंधी मुस्लिम के धर्मगुरु हैं. उनको यह पदवी उनके पिता गाजी फकीर से मिली. गाजी फकीर ने जैसलमेर पोकरण में मुसलमान अनुसूचित जाति का गठबंधन बनाया था, जो चुनावों में काफी असरदार साबित होता रहा है. इस बार भी दोनों धर्मों के धर्मगुरु आमने-सामने हैं. ऐसे में यहां फिर से भीषण टक्कर की संभावना जाहिर की जा रही है. साथ ही कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार मतदान के सभी पिछले रिकॉर्ड टूट सकते हैं, लेकिन इस बीच सबकी निगाहें मुस्लिम और अनुसूचित जाति के गठबंधन पर टिकी हैं. यही कारण है कि भाजपा सावधानी से फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है. वहीं, पिछले चुनाव में पार्टी प्रत्याशी प्रतापपुरी को करीबी मुकाबले में 839 मतों से पराजय का मुंह देखना पड़ा था.
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2013 से हुई ध्रुवीकरण की शुरुआत : 2008 की जीत से गाजी फकीर उत्साहित थे, लेकिन 2013 में हालात एकदम से बदल गए. मोदी फैक्टर मैदान में प्रभावी रहा. ऐसे में पोकरण के चुनाव में जबरदस्त ध्रुवीकरण देखने को मिला और 87.63 फीसदी मतदान हुआ. इसमें भाजपा के शैतान सिंह को 85010 मत मिले, जबकि सालेह मोहम्म्द को 55566 वोट पड़े थे और वो 34 हजार वोटों से चुनाव हार गए. इसके बाद 2018 में गाजी फकीर की सलाह पर भाजपा के राजपूत उम्मीदवार के सामने कांग्रेस ने जैसलमेर सामान्य सीट से अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा. ऐसे में मुस्लिम व अनुसूचित जातियों के गठबंधन के चलते जैसलमेर से कांग्रेस के रूपाराम धनदे को मुस्लमानों ने वोट किया और बदले में पोकरण में अनुसूचित जाति का वोट सालेह मोहम्मद को मिला और वो नजदीकी मुकाबले में 872 मतों से चुनाव जीत गए.