जयपुर.विश्व पर्यटन दिवस हर साल 27 सितंबर को मनाया जाता है. साल 1980 में संयुक्त राष्ट्र ने विश्व पर्यटन संगठन के जरिए इस खास मौके की शुरुआत की थी. जिसका मकसद था कि दुनिया भर में पर्यटन के जरिए रोजगार को बढ़ावा देना और लोगों को जागरूक करना. साथ ही महत्वपूर्ण स्थलों से दुनिया भर के लोगों को अवगत कराना. राजस्थान और राजधानी जयपुर पर्यटन के मानचित्र में भारत में शुरुआत से ही अव्वल रहे हैं, लेकिन बीते एक दशक में जयपुर के ऐतिहासिक स्थल व पुरातत्व महत्व की जगह से जंगल सफारी ने अपना अलग मुकाम बनाया है. जंगल के साथ ही शहर के करीब घूमते लेपर्ड भी अब लोगों को आकर्षित कर रहे हैं.
तीन लेपर्ड सफारी वाला शहर -ऐसे तो जयपुर की पहचान जलसों और जवाहरात वाले शहर के रूप में है, लेकिन अब जयपुर शहर अपने आबादी वाले क्षेत्र में गुलजार हो रहे जंगलों के बीच चलकदमी करते पैंथर्स के कारण भी अपनी अलग पहचान बना रहा है. जयपुर एक मात्र ऐसा शहरी क्षेत्र है, जहां आसपास में विकसित किए गए वन्य क्षेत्र में तीन लेपर्ड सफारी है. झालाना, आमागढ़ के जंगल में गलता और नाहरगढ़ के इलाके के मायला बाग में घूमते लेपर्ड के अलावा दूसरे जंगली जानवरों का दीदार भी पर्यटक करीब से कर पाते हैं. इन जंगलों में कई तरह की वनस्पति, पक्षी और सरीसृप की विभिन्न प्रजातियां निवास करती हैं. जयपुर में पर्यटन की यह दिशा न सिर्फ नए क्षेत्र का रास्ता खोल चुकी है, बल्कि शहर में पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में भी मददगार साबित हो रही है. हालांकि, नाहरगढ़ में मायला पार्क को फिलहाल सैलानियों के लिए नहीं खोला गया है.
कहां कितने लेपर्ड
- झालाना - 40
- आमागढ़ - 17-20
- मायला बाग - 18-20
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झालाना से हुई लेपर्ड सफारी की शुरुआत -जयपुर के झालाना औद्योगिक क्षेत्र के पीछे का वन क्षेत्र जहां कभी अतिक्रमण और अवैध खनन का खतरा था, आज वहां हरा भरा जंगल यहां आने वाले सैलानियों को अपनी ओर खींच रहा है. 50 के दशक में आजादी के ठीक बाद तक इस इलाके में बाघ निवास किया करते थे, लेकिन महारानी गायत्री देवी ने शहर में बढ़ते खतरे को देखकर उस आखिरी बाघ का शिकार किया था. उसके बाद से जंगल पर शहरी आबादी का असर बढ़ता चला गया. जिससे ऐतिहासिक शहर जयपुर के आसपास के जंगलों पर खतरा हुआ और पर्यावरण संतुलन गड़बड़ लगा. ऐसे में जंगल को बचाने के साथ-साथ यहां बसने वाले लेपर्ड्स के कुनबे को भी सहेजने के मकसद से वन विभाग ने इस क्षेत्र को लेपर्ड रिजर्व के रूप में घोषित कर दिया. उसके बाद अब इस क्षेत्र में निवास करने वाले लेपर्ड यानी बघेरों की आबादी 40 के पार जा पहुंची है. साल भर देसी विदेशी सैलानी यहां सुबह व शाम की पारी में जंगल की खूबसूरती के साथ-साथ लेपर्ड्स को करीब से देखने के लिए आते हैं. हालत यह है कि हमेशा यहां बुकिंग फुल रहती है.