जयपुर.दिनेश गुर्जर के लिए ब्रेल वरदान साबित हुआ. उन्होंने सादे कागज पर उभरे सेल्स की मदद से अपने जीवन के कोरे पन्ने में रंग भर दिया. हताशा निराशा के दौर से बाहर निकले और खास मुकाम हासिल कर लिया (Alwar blind Achiever Dinesh Gurjar). नेगेटिव सोच कि परिवार पर ताउम्र बोझ बने रहेंगे इससे उबर पाए. उन हजारों लाखों नेत्रहीनों की तरह ही कृतज्ञ हैं उस गिफ्ट के जो सदियों पहले लुई ब्रेल ने दुनिया को सौंपा था.
एक मुलाकात ने बदल दी तस्वीर-दिनेश के लिए राह आसान नहीं थी. अंधेरा बचपन से ही जीवन का सच बन गया था. उस निराशा के दौर में ही एक गुरु ने राह दिखाई. ब्रेल से रूबरू कराया. बताया कि कैसे 6 बिंदुओं में समाई वर्णमाला जीवन की दशा और दिशा बदल सकती है. ऐसा हुआ भी. धीरे धीरे लिपि को समझा, पढ़ाई की, खुद को मांझा और बतौर स्टेनो बैंकिंग सेक्टर में उतरे और आज पंजाब नेशनल बैंक में मुख्य प्रबंधक के रूप में आईटी जैसे विभाग का जिम्मा संभाल रहे हैं.
खोल रहे ज्ञान के चक्षु-गुर्जर नजीर हैं. जब कहते हैं कि वो भी उन खासों की लिस्ट में शामिल हैं जो आम लोगों को बैंकिंग काम आसानी से सिखा देते हैं तो गर्व की लकीरें माथे पर उभर आती हैं. जताती हैं कि आत्मविश्वास से लबरेज हैं और ये कॉन्फिडेंस उन्हें उस ब्रेल ने ही दिया है जिसने उन्हें इंडिपेंडेंट बना दिया. बताते हैं- एक वक्त था जब खाता खोलने के लिए इधर उधर भागना पड़ता था (World Braille Day 2023 ). बैंक में प्रवेश करने से पहले सोचना पड़ता था. आज हम (दृष्टिबाधित) सबकी मदद करते हैं. इससे अच्छी बात क्या होगी कि एक दृष्टिबाधित शख्स सूचना प्रौद्योगिक को ड्राइव कर रहा है. ये निश्चित तौर पर समाज के लिए विकास का सूचक है.
हार न मानें जीवन में- दिनेश पैदाइशी दृष्टिबाधित नहीं थे. एक गलती ने 5 साल के बच्चे की आंखों की रोशनी छीन ली. दरअसल, इन्हें बुखार हुआ. अलवर के बेलनी गांव में रहते थे. कुछ खास मेडिकल फेसेलिटी नहीं थी. तेज बुखार था तो परिवार वाले चिकित्सक के पास ले गए. कहते हैं चिकित्सक ने इंजेक्शन लगाया. उसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि धीरे धीरे आंखों की रोशनी चली गई. हार नहीं मानी और अपने जीवन की सफल कहानी लिख डाली. भरा पूरा परिवार है. दो बच्चियों के पिता हैं जिन्दगी की गाड़ी सरपट दौड़ रही है. अब सबको सलाह भी देते हैं कि कभी भी जीत के जज्बे को मरने न दें.
दान किया Cornea-दिनेश ने अपना कॉरनिया भी डोनेट किया है. 2016 में उन्होंने नेक काम किया. एक्सपर्ट्स की सलाह पर मरणोपरांत कॉरनिया दान करने का फैसला लिया. चूंकि 5 साल की उम्र में रोशनी गई थी सो तकनीकी तौर पर कॉरनियल ब्लाइंड नहीं हैं इसलिए अपने जाने के बाद किसी की आंखों को रंगीन दुनिया देखने का मौका देना अपना फर्ज समझा.
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लुई ब्रेल को थैंक्स-उच्च पद पर आसीन गुर्जर कहते हैं वो जो कुछ भी आज हैं उसका पूरा श्रेय लुई ब्रेल के अविष्कार को जाता है. उनकी वजह से ही शिक्षित हो पाए और एक मुकाम हासिल कर पाए. दुनिया को कुछ देने का सलीका भी लुई से ही सीखा इसलिए उन्हें दिल से धन्यवाद करते हैं. कहते हैं 215 साल पहले उस जमाने में जो उस शख्स ने किया वो अभूतपूर्व है. तब ऐसा युग भी नहीं था. चीजें आसान नहीं थीं लेकिन उस एक शख्स ने हम जैसे कितनों की दुनिया बदल कर रख दी.
लुई ब्रेल ने थमाई रोशनी की मशाल-‘ब्रेल’ शब्द को इसके निर्माता के नाम पर रखा गया था. लुई ब्रेल एक फ्रांसीसी थे, बचपन में ही उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी. उनका जन्म 4 जनवरी 1809 को फ्रांस के कूपवरे में हुआ था. बचपन में एक हादसे का शिकार हुए और आंखों से देखने में लाचार हो गए. फिर महज 15 वर्ष की आयु में इस लिपि का आविष्कार किया और कइयों की जिन्दगी संवार दी. ब्रेल लिपि कोई भाषा नहीं, बल्कि एक तरह का खास कोड है. इस लिपि को एक विशेष प्रकार के उभरे हुए कागज पर लिखा जाता है और इसमें उभरे हुए बिंदुओं की श्रृंखला पर उंगलियां से छूकर पढ़ा जा सकता है.
ब्रेल दिवस मनाने का उद्देश्य- दुनिया के करीब 39 मिलियन ऐसे लोग हैं, जो देख नहीं सकते. WHO के अनुसार विश्व भर में जहां 39 मिलियन लोग देख नहीं सकते, वहीं 253 मिलियन लोग दृष्टि विकार झेल रहे हैं. ऐसे लोगों को ही प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस मनाया जाता है. लुइस की ब्रेल लिपि से आज लाखों दृष्टिबाधितों को दुनिया देखने के साथ अपनी सफलता को हासिल करने का माध्यम बन रही है. UN महासभा ने 6 नवंबर 2018 को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसके बाद विश्व पहली बार 04 जनवरी, 2019 को ब्रेल दिवस मनाया गया. इसके बाद से ही हर साल 4 जनवरी को विश्व ब्रेल लिपि दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. जिसका उद्देश्य संचार के साधन के रूप में ब्रेल के महत्व के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाना, दृष्टिबाधित लोगों को प्रोत्साहित करने के साथ उनके अधिकार प्रदान करना ,साथ ही ब्रेल लिपि को बढ़ावा देना है.