जयपुर.एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान की ओर से गुरुवार को जयपुर के बिड़ला सभागार में 'धर्म दंड, धर्म राज्य और संवैधानिकता' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. इसके मुख्य वक्ता चाणक्य धारावाहिक फेम निर्देशक और अभिनेता डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी रहे. जबकि प्रस्तावना एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष एवं पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ महेश चंद्र शर्मा ने रखी.
डॉ. महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि यूरोप का सामंतवाद भारतीय राजतंत्र से अलग है. भारत में ऐसे राजा की कल्पना संभव नहीं है. जो गलत करे तो उसे दंडित नहीं किया जा सके. राजा बनने से पहले राज्याभिषेक होता था. इसमें जिन मंत्रों का प्रयोग होता था. वे मंत्र पूरे भारत में एक समान थे. इन मंत्रों और राज्याभिषेक के समय यह स्पष्ट किया जाता था कि यदि राजा ने भी अधर्म किया तो उसे धर्म दंड देगा. यही धर्म दंड की महत्ता है. उन्होंने कहा कि भारत में राजतंत्र पश्चिम के समान बर्बर और अराजक कभी नहीं रहा. यही कारण है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जितने देश आजाद हुए उनमें अकेला भारत ही है. जहां आज भी लोकतंत्र है. क्योंकि यह हमारी मूल भावना है. उन्होंने कहा कि राजदंड भारत की राजनीति का विधि-विधान है. लेकिन दुर्भाग्य से हम पिछले कुछ समय तक सेंगोल से अनभिज्ञ थे.
धर्मदंड (राजदंड) के रूप में सेंगोल की व्याख्या करते हुए कहा कि संसद में लगा सेंगोल जनप्रतिनिधियों को याद दिलाता रहेगा कि शासन धर्म के अधीन हो, अन्यथा उन्हें दंडित भी किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि आज हर दिन कोई नया प्रश्न उठता है. सब चर्चा करते हैं. लेकिन मूल ग्रंथों तक बहुत कम लोग जाते हैं. उन्होंने कहा कि विद्यार्थी शास्त्रों की रक्षा के लिए दंड धारण करते हैं. सन्यासी के दंड को ब्रह्म दंड कहा जाता है. पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद में सेंगोल स्थापित कर उस परंपरा को पुनर्जीवित किया. जो हजारों साल से चली आ रही थी.