जयपुर.राजस्थान में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले संसद में महिलाओं को राजनीति में 33% आरक्षण देने के विधेयक पर मुहर लगी. चूंकि अभी विधेयक लागू नहीं होना था, इसलिए राजस्थान में दोनों ही प्रमुख दलों ने महिलाओं को 33 फीसदी टिकट देना जरूरी नहीं समझा. यहां भाजपा ने महिलाओं को महज 20 यानी कुल सीटों का 10% और कांग्रेस ने 27 यानी कुल सीटों का 13.5 % टिकट देकर इतिश्री कर ली. इनमें भी 7 सीटें ऐसी हैं, जहां दोनों ही राजनीतिक दलों ने महिलाओं पर दांव खेला है. .
मतदान के साथ ही बढ़ा जीत प्रतिशत :राजस्थान विधानसभा चुनाव में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति इस बार भी ढाक के तीन पात वाली है. किसी भी दल ने इस विधानसभा चुनाव में महिला कोटा लागू करने में रुचि नहीं दिखाई, जबकि मतदान में महिलाओं की भागीदारी की अगर बात करें तो साल 1998 से 2018 तक लगातार बढ़ती रही है. पहले जो मतदान 58.88 फीसदी रहा, वो चुनाव दर चुनाव बढ़कर 75 फीसदी तक पहुंच गया. यही नहीं बीते दो चुनाव को देखें तो महिलाओं के जीत का प्रतिशत भी पुरुषों की तुलना में बढ़ा है. 2013 में 166 महिला प्रत्याशियों में से 28 ने जीत दर्ज की थी. वहीं, 2018 में 189 में से 24 विधानसभा पहुंची.
इसे भी पढ़ें -बीकानेर पूर्व से भाजपा प्रत्याशी सिद्धि कुमारी बोलीं- जनता का आशीर्वाद ही मेरी ताकत है
7 सीटों पर कांग्रेस-भाजपा ने खेला महिला प्रत्याशियों पर दांव :इन आंकड़ों के बावजूद राजस्थान के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों ने महिलाओं को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया. भाजपा ने जहां 200 में से 20 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं कांग्रेस ने कुछ आगे बढ़कर 27 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को मौका दिया है. वहीं, प्रदेश में 7 सीटें ऐसी हैं, जहां दोनों ही राजनीतिक दलों ने महिला प्रत्याशियों पर दांव खेला है.
राजस्थान में राजनीति पुरुष प्रधान :महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने पर आधी आबादी ने सवाल उठाए हैं. शिक्षाविद डॉ. मीनाक्षी मिश्रा ने कहा कि राजस्थान में महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है. जब विधेयक पास हुआ है तो अभी से ही महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाई जानी चाहिए थी और भारत में तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी महिला रही हैं. राजस्थान की तो सीएम भी महिला रही हैं. इन उदाहरण से स्पष्ट है कि महिलाएं राजनीति में भी सक्षम रूप से काम कर सकती हैं. बावजूद इसके यहां राजनीति पुरुष प्रधान हो रही है. अमूमन ये भी देखने को मिलता है कि महिलाओं के नाम पर सीट जीती जाती है, लेकिन महिला उस पर काम करती नजर नहीं आती है. उनके बजाय उनके पति काम करते हैं, जो पार्षद पति या एमएलए पति कहलाते हैं. हालांकि यह गलत है और हास्यास्पद भी. महिला जब अंतरिक्ष में जा चुकी तो और क्या शेष बचा है?.