जयपुर. आजादी से पहले राजपूताना राजस्थान के नाम से जाना जाता था, यानी कि राजपूतों का राज्य और राजपूतों का शासन. इस शासन में सबसे ज्यादा महत्ता विजयादशमी पर्व की थी. जब राजपूत शस्त्र पूजन किया करते थे और भगवान श्री राम को भी याद किया करते थे. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि विजयादशमी पर एक अभिजीत विजय मुहूर्त था, जिसमें भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था. चूंकि जयपुर राजघराने का दावा है कि वो राम जी के वंशज हैं, ऐसे में जयपुर राजघराना हमेशा से विजयादशमी पर शस्त्र पूजन करता आया है. साथ ही सिंहासन पूजा करता है.
दीवाने खास में दरबार लगाया जाता था और उसके बाद जयपुर महाराजा की सवारी निकला करती थी. महाराजा आमेर रोड पर स्थित विजय बाग में शमी वृक्ष (खेजड़ी के पेड़) की पूजा किया करते थे. उसके बाद ये सवारी पूरे जयपुर में घूमती थी. इस दिन महाराजा आम जनता से भी मिला करते थे. इसलिए शहर वासी भी इस पर्व को लेकर उत्साहित और तैयार रहते थे. भगत ने बताया कि जयपुर में दशहरा के दिन जो शस्त्र पूजा हुआ करती थी, उसके बाद रावण दहन की भी परंपरा रही है. इस रावण दहन से पहले रामलीला हुआ करती थी. खुद जयपुर महाराजा इसमें शामिल भी होकर कलाकारों को प्रोत्साहित किया करते थे. उन्होंने बताया कि विजयादशमी जयपुर राजघराने का एक बड़ा त्योहार था.
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खुद महारानी गायत्री देवी ने अपनी किताब प्रिंसेस माय रिमेंबर्स में जिक्र किया कि जब 1940 में वो शादी होकर आईं, उस वक्त वो जयपुर महाराजा मानसिंह को जय बोला करती थीं. यहां उन्होंने पहली मर्तबा दशहरा पर सजा राज दरबार देखा. महाराजा शस्त्र पूजन करने के बाद एक शाही बग्गी में सवार हुआ करते थे, जिसे 6 सफेद घोड़े उस बग्गी को खींचा करते थे. महाराजा इस सुनहरी बग्गी में तीन मील दूर तक विशेष महल में जाते थे. इस बग्गी का इस्तेमाल सिर्फ दशहरे के दरबार के लिए ही हुआ करता था.