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Special : जानें क्यों राजस्थान की राजनीति में भाजपा के लिए जरूरी हैं राजे ?

चलिए अब आपको राजस्थान भाजपा की आगामी संभावित सियासी रणनीति और पूर्व मुख्मंत्री वसुंधरा राजे की अहमियत के बारे में बताते हैं. साथ ही ये भी बताएंगे कि आखिर क्यों पार्टी आलाकमान के लिए राजे (Vasundhara Raje in Rajasthan politics) जरूरी हैं...

Vasundhara Raje in Rajasthan politics
Vasundhara Raje in Rajasthan politics

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Published : Apr 3, 2023, 7:57 PM IST

Updated : Apr 3, 2023, 8:05 PM IST

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत

जयपुर.सांसद सीपी जोशी को हाल ही में राजस्थान भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया तो वहीं नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया अब बड़े नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं. इन सबके बीच पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अहमियत भी बढ़ी है. एक ओर जहां प्रदेश मुख्यालय पर पोस्टर से राजे की री एंट्री हुई तो वहीं पार्टी से जुड़ी गतिविधियों में भी उनकी सक्रियता अब साफ नजर आने लगी है.

इसके साथ ही पार्टी में व्याप्त गुटबाजी को खत्म करने के लिए भी लगातार कदम उठाए जा रहे हैं, जिसके अच्छे परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं. लेकिन इन सब के बीच सबसे अहम सवाल वसुंधरा राजे को लेकर आलाकमान के दृष्टिकोण का है, जो चुनावी साल में तवज्जो वाला ही दिख रहा है. माना जा रहा है कि वसुंधरा राजे की अहमियत को देखते हुए उन्हें पार्टी आलाकमान चुनाव प्रचार समिति की कमान सौंप सकता है. हालांकि, इससे पहले प्रचार समिति का काम स्टेट इंचार्ज ही देखा करते थे, लेकिन प्रमुख राजनीतिक स्तंभों को संतुलित करने के लिहाज से आलाकमान की यह कवायद आगामी दिनों में धरातल पर देखने को मिल सकती है.

13 सिविल लाइंस बना भाजपा का शक्ति केंद्र - जयपुर में राजनीति का केंद्र बिंदु सिविल लाइंस है, जहां मुख्यमंत्री निवास के रूप में 8 सिविल लाइंस बंगला सत्ता का केंद्र रहा है. वहीं, विपक्ष की राजनीति की धुरी 13 सिविल लाइंस वाले बंगले से साधी जाती रही है. यहां पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे रहती हैं. नवरात्रि में जब सीपी जोशी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर काबिज हुए तो वसुंधरा राजे समर्थक नेताओं ने उनके स्वागत में पलक पावड़े बिछा दिए.

राजे ने भी एक वीडियो मैसेज जारी करके सीपी जोशी को बधाई दी थी. इसके बाद जयपुर में अपनी राजनीतिक मुलाकातों में मशगूल सीपी जोशी और राजेंद्र राठौड़ ने 13 सिविल लाइंस पहुंचकर वसुंधरा राजे का आभार जताया. दोनों नेताओं की मुलाकात प्रदेश में भावी मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर गर्मी बढ़ाने वाली रही. इससे पहले भी जब गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल नियुक्ति किया गया था तो उस समय भी 13 सिविल लाइंस में आयोजित डिनर पार्टी में भाजपा के सभी नेता शामिल हुए थे. इस तरह से मौजूदा समय में वसुंधरा राजे विपक्ष की राजनीति के अंदर महत्वपूर्ण किरदार बनकर उभरी हैं.

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साबित हुई राजे की अहमियत -भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे के बीच दूरियों की खबरें 2 सालों से राजस्थान की सियासी गलियारों में परवान पर रही थी. केशोरायपाटन और सालासर में राजे के जन्मदिन पर शक्ति प्रदर्शन के लिए आयोजित कार्यक्रम में भी सतीश पूनिया शामिल नहीं हुए थे. जिसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म था. इस बीच राजस्थान की राजनीति के लिहाज से प्रदेश मुख्यालय और प्रमुख राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच पोस्टर बैनर से वसुंधरा राजे का बाहर होना भी सियासी पंडितों में चर्चा का मुद्दा रहा. लेकिन इस बार सालासर में वसुंधरा राजे के जन्मदिन पर आयोजित अभिनंदन समारोह में अरुण सिंह की मौजूदगी ने बदलते सियासी समीकरणों की ओर इशारा किया.

साथ ही जब प्रदेश मुख्यालय पर नए पोस्टर लगाए गए तो उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा के साथ ही प्रदेश के नेताओं में सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे के चेहरे देखने को मिले. ऐसे में माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी यह मान चुकी है कि राजस्थान के रण में वसुंधरा राजे के बिना पार पाना आसान नहीं होगा. झालावाड़ से लेकर जैसलमेर तक और भरतपुर से लेकर बांसवाड़ा तक वसुंधरा राजे एक लोकप्रिय चेहरे के रूप में मौजूद है. लिहाजा उन्हें साइड करके राजस्थान में आगे बढ़ना आसान नहीं होगा. बीते पांच साल में एक के बाद एक उपचुनाव में भाजपा की हार भी वक्त-वक्त पर पार्टी आलाकमान के जख्मों को हरा करती रही है. चाहे लोकसभा की सीटों का मिशन 25 हो या फिर आने वाले चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत के साथ जीत का दावा हो. भाजपा आलाकमान को वसुंधरा राजे के बिना लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं लग रहा है.

दो दशक से राजस्थान भाजपा की राजनीति के केंद्र में राजे -राजस्थान की राजनीति में बीते दो दशकों से वसुंधरा राजे भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रमुख नेताओं में शुमार रही हैं. साल 2003 में वह प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर राजस्थान में आई तो परिवर्तन यात्रा के जरिए उन्हें तत्कालीन केंद्रीय नेतृत्व ने फ्री हैंड दे दिया. इस बीच एक मौका ऐसा भी आया, जब पार्टी में चेहरे और मोहरे को लेकर गतिरोध की स्थिति बनी. ऐसे में वसुंधरा राजे हाशिए पर जाती नजर आई.

पहले ललित किशोर चतुर्वेदी, घनश्याम तिवारी, तत्कालीन संगठन मंत्री प्रकाश चंद्र और हरिशंकर भाभड़ा के साथ उनके मतभेद खुलकर जाहिर हुए थे. तब मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य के कार्यकाल को पूरा किए जाने पर ही सवाल खड़े होने लगे थे. इसके बाद 2008 में जब भाजपा सत्ता से बेदखल हुई तो गुलाबचंद कटारिया नेता प्रतिपक्ष बने और चुनाव से पहले उनकी सियासी यात्रा पर विवाद गहरा गया था.

इस दौरान वसुंधरा राजे के वजूद पर सवाल खड़े होने लगे थे. लेकिन तब भी गुलाबचंद कटारिया की जगह नेता प्रतिपक्ष के रूप में वसुंधरा राजे प्रदेश भाजपा की सिरमौर साबित हुई. इसके बाद खुलकर पार्टी के विधायकों ने वसुंधरा राजे के पक्ष में बगावत शुरू कर दी. इस शक्ति प्रदर्शन में 80 फीसदी से ज्यादा विधायकों ने खुलकर राजे कैंप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. इसके साथ ही एक बार फिर से राजे चुनाव जीतने के बाद सीएम बनाई गईं.

वहीं, जब 2018 में भाजपा सत्ता से बाहर हुई तो माना गया कि केंद्रीय नेतृत्व अब राजे को प्रदेश से बाहर कोई जिम्मेदारी सौंप देगा. संगठन में भी राजे कैंप के माने जाने वाले नेताओं को जगह नहीं मिल पाई थी. लेकिन 2022 से दिल्ली की मेल मुलाकातों के बाद तब्दीलियों का सिलसिला शुरू हुआ. जहां प्रदेश से जुड़े हर फैसले में वसुंधरा राजे को प्रमुखता मिलती नजर आई.

Last Updated : Apr 3, 2023, 8:05 PM IST

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