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क्या वसुंधरा राजे की आदत में है खामोश बैठ जाना! 2008 से दिल्ली दरबार को देती रही हैं चुनौती - Vasundhara Raje news

Vasundhara Raje in Rajasthan politics, राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री और पूर्ण बहुमत वाली पहली गैर कांग्रेसी भाजपा सरकार बनाने वाली वसुंधरा राजे की राजनीतिक पारी को लेकर राजस्थान में कई तरह की चर्चाएं हैं. दो दशक के बाद वे मुख्यमंत्री की जगह भाजपा की सरकार में एक विधायक की हैसियत से मौजूद होगी. क्या राजे को अपना मौजूदा अस्तित्व मंजूर होगा या उनकी फितरत के मुताबिक एक बार फिर दिल्ली और राजस्थान की भाजपा के बीच रस्साकशी का खेल होगा. जानकारों का कहना है कि इस सवाल के जवाब के लिए अभी लोकसभा चुनाव तक इंतजार करना होगा.

Vasundhara Raje in Rajasthan politics
Vasundhara Raje in Rajasthan politics

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 18, 2023, 7:31 PM IST

जयपुर.एक दौर था कि राजस्थान में अलग-अलग धड़ों और जातियों में बंटे जनसंघ से बनी भारतीय जनता पार्टी को भैरोंसिंह शेखावत ने एक जाजम पर लाकर नई भाजपा के रूप में स्थापित किया था. हालांकि, शेखावत कभी भाजपा की जीत के आंकड़े को सौ के पार नहीं ले जा सके थे. ऐसे में भैरोंसिंह शेखावत और जसवंत सिंह की सिफारिश पर राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे दाखिल हुई और साल 2003 के विधानसभा चुनाव में 120 सीट जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचती. इससे पहले वसुंधरा राजे की परिवर्तन यात्रा की चर्चा पूरे देश में हुई. यह यात्रा राजे को भाजपा के अग्रिम पंक्ति के नेताओं में शामिल करने में मददगार साबित हुई थी. वहीं, 2013 में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में पार्टी ने 160 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज की. वसुंधरा राजे के पहले कार्यकाल की समाप्ति वाले साल 2008 से लेकर 2023 तक के सफर की बात करें तो दो बार मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उनके समक्ष कई खट्टे मीठे तजुर्बे भी सामने आए.

2009 में दिल्ली को दिखाई थी आंख :साल 2003 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वसुंधरा राजे ने राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर जादू सा कर दिया था. विधायकों की लंबी फौज राजे के समर्थन में लामबंद हो गई थी. इस दौरान राज्य के मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे कई बड़े नेता उनके साथ संबंधों में कड़वाहट घोलते रहे. इनमें देवी सिंह भाटी और घनश्याम तिवारी सरीखे नेता भी शामिल रहे, जिनके साथ मतभेद को सुलझाने के लिए तत्कालीन प्रभारी और मौजूदा राज्यपाल कलराज मिश्र ने भी राजस्थान में डेरा डाल दिया था. राजे ने संगठन पर नियंत्रण के लिए कोशिशें की तो संघ की ओर से संगठन महामंत्री के रूप में आए प्रकाश चंद्र के साथ उनके रिश्ते बिगड़ते चले गए.

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे

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हालात यह रहे कि 2008 के विधानसभा चुनाव में संघ की नाराजगी के कारण चुनाव से पहले राजे की मुखालफत बढ़ गई और मजबूत नेतृत्व के बावजूद सत्ता कांग्रेस के हाथों में चली गई. इसके बाद भी लगातार गतिरोध बढ़ता गया. 2009 की लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने शिकस्त का सामना किया. तो तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह वसुंधरा राजे से जिम्मेदारी लेते हुए नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने के लिए कहा, इस दौरान तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर ने इस्तीफा दिया, राजस्थान के हालात को देखकर प्रकाश चंद्र भी चले गए, परंतु राजे अपने रुख पर अड़ी रही. हालांकि वसुंधरा राजे के नेतृत्व के आगे आलाकमान का असर फीका नजर आया.

2012 में कटारिया से दिखी रार :साल 2008 में चुनाव हुए तो संघनिष्ठ नेताओं ने वसुंधरा के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया और नतीजे कांग्रेस के पक्ष में चले गए. इसके बाद 2010 में दिल्ली के आगे सरेंडर करते हुए वसुंधरा राजे ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया. वहीं, साल 2012 में एक बार फिर वसुंधरा राजे ने दिल्ली के खिलाफ अपने तेवर दिखाने शुरू किए. यह मसला गुलाबचंद कटारिया की लोक जागरण यात्रा का था, गुलाबचंद कटारिया की इस यात्रा के खिलाफ वसुंधरा राजे ने अपने समर्थक विधायकों के साथ लामबंदी शुरू कर दी. राजे का तर्क था कि पार्टी के नेताओं को विश्वास में लिए बिना कटारिया ने नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से खुद को 2013 के चुनाव के लिए मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में पेश करने की कोशिश की है. तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हालांकि वसुंधरा राजे को कटारिया की यात्रा कामयाब बनाने के लिए साथ देने के निर्देश दिए थे, लेकिन वसुंधरा राजे ने न सिर्फ अपने समर्थक विधायकों को कटारिया की रैली में जाने से रोका, बल्कि हाई कमान को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता छोड़ देने की धमकी तक दे डाली.

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इस दौरान विधानसभा में मौजूद 78 विधायकों में से 63 ने वसुंधरा राजे के समर्थन में इस्तीफा भी सौंप दिए थे, तब तत्कालीन चार सांसद और कई वरिष्ठ नेताओं ने भी राजे के समर्थन में घेराबंदी की, तो आला कमान को सरेंडर करना पड़ा. जाहिर है कि वसुंधरा राजे ने आरोप लगाया था कि कटारिया अकेले ही यात्रा की प्लानिंग कर रहे थे, उन्होंने अरुण चतुर्वेदी और राजनाथ को साथ लेकर यात्रा से जुड़े पोस्टर का विमोचन भी कर दिया था. हालांकि चतुर्वेदी ने विमोचन के बाद कहा था कि उन्हें यात्रा से जुड़े पोस्टर की जानकारी नहीं थी.

2021 में फिर दिखाए तेवर :साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ भाजपा संगठन में अमित शाह ने अध्यक्ष के रूप में अपनी पकड़ बनाना शुरू कर दी. इसका परिणाम यह रहा की क्षेत्रीय क्षत्रप सीधा दिल्ली के नियंत्रण में आने लगे. ऐसे में 2021 की शुरुआत एक बार फिर राजस्थान में वसुंधरा राजे और दिल्ली में भाजपा नेतृत्व के बीच अघोषित शक्ति प्रदर्शन के जरिए खींचतान सामने लाई. राजे ने 2021 में नेता प्रतिपक्ष रहे गुलाबचंद कटारिया को चुनौती देकर मेवाड़ के 6 जिलों में देव दर्शन यात्रा निकाली. इस दौरान वसुंधरा राजे दक्षिण और मध्य राजस्थान के छह जिलों में गईं, जहां उनके 'गैर-राजनीतिक' दौरे होने के बावजूद, उन्होंने अपनी सभी सार्वजनिक सभाओं में राजनीतिक संदेश दिया. जिसे राजे के राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा गया.

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चुनाव से पहले जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन :वसुंधरा राजे वक्त वक्त पर दिल्ली में बैठे नेताओं को राजस्थान में अपनी सियासी ताकत का आईना दिखाती रही हैं. साल 2022 में उन्होंने हाड़ौती के केशोरायपाटन में अपने जन्मदिन पर शक्ति प्रदर्शन किया. विधानसभा में बीजेपी की ओर से विधायकों को उपस्थित रहने के निर्देश दिए जाने के बावजूद 40 से ज्यादा विधायकों ने वसुंधरा राजे को बूंदी जाकर बधाई दी थी. इस दौरान 10 से ज्यादा सांसद भी पहुंचे थे. इस साल भी वसुंधरा राजे ने अपने जन्मदिन से पहले 4 मार्च को समर्थकों के साथ सालासर में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया, जहां राजे समर्थक पार्टी के नेताओं ने घेराबंदी की और वसुंधरा राजे को चुनावी फेस बनाने के लिए आलाकमान पर दबाव भी डाला.

इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने विधानसभा घेराव के लिए पार्टी विधायकों को जयपुर में रहने के लिए कहा था, इसके बावजूद कई विधायक अल सुबह सालासर पहुंचकर राजे को बधाई देने में पीछे नहीं रहे. चुनावी साल में यहां पोस्टर पॉलिटिक्स भी नजर आई, जहां वसुंधरा राजे के बधाई संदेश वाले पोस्टर्स में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को जगह नहीं मिली. इस दौरान 12 मौजूदा सांसद, 52 विधायक और 118 पूर्व विधायक वसुंधरा राजे को शुभकामनाएं देने के लिए सालासर पहुंचे थे.

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राजस्थान में मोदी का चेहरा रहा हावी :राजस्थान भाजपा के नेताओं में बढ़ती हुई गुटबाजी के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा. चार चुनाव से भारतीय जनता पार्टी का राजस्थान में चुनावी चेहरा रही वसुंधरा राजे को इस चुनाव में तवज्जो नहीं मिली. हालांकि वसुंधरा राजे ने 60 के करीब अपने समर्थक विधायकों के लिए जनसभाएं आयोजित की, जिनमें से 40 से ज़्यादा विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे. वही नतीजे के बाद 60 से ज्यादा विधायकों ने वसुंधरा राजे से उनके बंगले पर मुलाकात की. हालांकि एक दर्जन के करीब वसुंधरा राजे समर्थक नेताओं की टिकट भी काट दिए गए थे. इन सब सूरत ए हाल में ना तो वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरी पारी को शुरू कर पाई और ना ही अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर उठ रहे सवालों पर समर्थकों को उलझन से निकलने में कामयाब रही.

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