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चाकसू : शील डूंगरी में शीतला अष्टमी मेले में माता के दर पर हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई हाजरी

राजधानी सहित ग्रामीण अंचल में सोमवार को माता का विशेष पर्व शीतला अष्टमी यानी बास्योडा पर्व पारंपरिक रीति रिवाज से मनाया जा रहा है. इस अवसर पर सभी उम्र के लोग माता की पूजा अर्चना कर अच्छे स्वास्थ्य की कामना कर रहे है.

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शील डूंगरी में शीतलाष्टमी मेले में माता के दर हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई हाजरी

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Published : Mar 16, 2020, 3:55 PM IST

चाकसू (जयपुर). जिले के चाकसू शील की डूंगरी में आयोजित दो दिवसीय वार्षिक लक्खी मेला सोमवार को पूरे जोरो पर है, यहां आसपास हीं नहीं बल्कि दूर दराज राज्यों से भी हजारों श्रद्धालु पूरी आस्था व श्रद्धाभाव के साथ मां शीतला माता के दरबार पहुंचकर मत्था टेक कर ठंडे पकवानों का भोग लगाकर अपनी मुरादे पूरी करते है.

शील डूंगरी में शीतलाष्टमी मेले में माता के दर हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई हाजरी

लेकिन इस बार वार्षिक मेले में पहले की अपेक्षा श्रद्धालुओं की भीड़ कम दिखाई दे रही है. जहां एक ओर देश व प्रदेश में कोरोना वायरस का प्रकोप पांव जमा रहा तो वहीं गत दिनों चाकसू क्षेत्र में हुई ओलावृष्टि ने किसानों की फसल बर्बाद कर दिया है इसका एक कारण यह भी माना जा सकता है.

हालांकि मेले में बाहरी क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ रविवार बीती शाम से ही देखने को मिल रहा है. मेले में मनोरंजन के लिए मौत का कुआ, सर्कर्स, झूले-चकरी, खिलौने अन्य चीजें श्रद्धालुओं को खूब लुभा रही हैं. इस मेले की खास बात यह रहती है कि इस दिन घरों में खाना नही बनाया जाता है और अगले दिन बनाये गये ठंडे पकवानों का ही माता को भोग लगाया जाता है.

पढ़ें:जोधपुरः शीतला माता मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ा जनसैलाब

वहीं परिवार के सभी लोग घर पर बासी भोजन हीं ग्रहण करते है जिससे माता प्रसन्न रहती है. मेले में सुरक्षा की दृष्टी से प्रशासन ने मेला परिधि में जगह-जगह पर लगभग 20 क्लोजर सिक्रेट कैमरे लगाये है, वहीं चप्पे-चप्पे पर 500 से अधिक पुलिस के जवानों की तैनाती की गई है. ]

मंदिर का इतिहास...

बुजुर्गों के कथानुसार और पोथीखाने में उपलब्ध इतिहास के अनुसार, संवत सन् 1912 में जयपुर के महाराजा माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह और गोपाल सिंह को चेचक निकली थी. उस समय शीतला माता की मनुहार करने से उनका यह रोग ठीक हो गया था. इसके बाद शील की डूंगरी पर मंदिर व बारहदरी का निर्माण करवाकर पूजा-अर्चना की गई. बारहदरी पर लगे षिलालेख में संवत 1973 व लागत 11 हजार एक सौ दो रूपये और निर्माण जयपुर महाराजा की ओर से कराया जाना अंकित है. उसी समय से यहां मेला लगता है. मेले में जयपुर जिले के अलावा दौसा, टोंक, गंगापुर, सवाई माधोपुर सहित अन्य जगहों से लोग भारी तादाद में पहुंचते है. मेले के दूसरे दिन चाकसू व चंदलाई कस्बों में गुदरी का मेला रहता है.

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