जयपुर. राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड की ओर से कराई गई तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा को लेकर बीते दिनों आंसर की जारी की गई. जिस पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए 22 मार्च की मध्यरात्रि तक का समय दिया था. इसके लिए प्रति प्रश्न आपत्ति दर्ज कराने का शुल्क 100 रुपए रखा गया, जिस पर बढ़-चढ़कर अभ्यर्थियों ने अपनी आपत्ति भी दर्ज कराई. आलम ये है कि अकेले हिन्दी भाषा के पेपर में 6 से लेकर 12 सवाल तक ऐसे बताए जा रहे हैं, जिनमें एक से ज्यादा उत्तर सही हैं या फिर बोर्ड की आंसर-की और परीक्षार्थियों के उत्तर में अंतर है.
हिन्दी भाषा पेपर में इन प्रश्नों पर दर्ज कराई गई आपत्ति :
प्रश्न संख्या 12 - वर्ष 2011 की जनगणनानुसार राजस्थान में वह जिला, जहां शहरी जनसंख्या राज्य में सर्वाधिक रही है ? (प्रश्न के हिन्दी वर्जन में कहीं भी प्रतिशत शब्द नहीं लिखा, जबकि अंग्रेजी अनुवाद में Percentage शब्द लिखा है).
प्रश्न संख्या 45-कोठारी आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
प्रश्न संख्या 60 - अगर अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों के लिए समुचित मात्रा में आवेदन प्राप्त ना हो तो उन्हें............वर्ग से भरा जा सकता है ?
प्रश्न संख्या 66 - शुद्ध वाक्य का चयन संबंधी प्रश्न (आंसर-की के अनुसार बोर्ड ने इसे सही माना है-'काशी सदा से भारतीय संस्कृति का केंद्र रहा है).
प्रश्न संख्या 70 - निम्नलिखित में से कौन सा शब्द जातिवाचक संज्ञा से निर्मित भाववाचक संज्ञा नहीं है ?
अब सुर्खियों में हिन्दी का पेपर (प्रश्नों के क्रम हिन्दी मास्टर पेपर के अनुसार है)
परीक्षार्थियों के अनुसार यदि किसी पेपर में 6 से 12 प्रश्न तक आपत्तियां लगाई जा रही हैं तो ये पेपर बनाने वाली एजेंसियों की योग्यता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती हैं. क्योंकि इसका सीधा खामियाजा परीक्षार्थियों को उठाना पड़ता है. दरअलस, यदि एक अभ्यर्थी औसतन 6 प्रश्नों पर आपत्ति लगाता है तो प्रति प्रश्न 100 रुपए के हिसाब से 600 रुपए फीस भरनी पड़ती है. अब यदि अनुमान के मुताबिक 5 हजार अभ्यर्थी औसतन 6 प्रश्नों पर आपत्ति लगाते हैं तो बोर्ड की जेब में 30 लाख रुपए जाते हैं.
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अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ने पर ये राशि करोड़ों में भी पहुंच सकते हैं. अभ्यर्थियों की माने तो बजट 2023-24 में आवेदन भरने की फीस माफ कर दी गई है तो प्रश्नों पर आपत्ति लगाने की फीस भी सरकार को माफ करनी चाहिए, ताकि बेरोजगारों को पेपर सेटर्स की गलती का खमियाजा नहीं उठाना पड़े. वहीं, कुछ अभ्यर्थियों ने कहा कि राज्य सरकार की भर्ती एजेंसियों को यूपीएससी की तर्ज पर पेपर बनाने की पहल करनी चाहिए. बता दें कि यदि प्रश्नों पर लगाई गई आपत्तियां सही पाई जाती हैं और ज्यादा प्रश्न डिलिट करने पड़े तो इसका सीधा असर अभ्यर्थियों की मेरिट पर भी पड़ेगा.