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होली की रात की चांदनी ऐसी कि...सूरज भी डूबकर मर जाए

वसंत ऋतु की शुरुआत होते ही एक नयापन का एहसास होने लगता है. नित नूतन परिर्वतन देखने को मिलते हैं. होलिकोत्सव का आगाज होने से पहले प्रकृति का इतना खूबसूरत रूप शायद ही कभी दिखा हो. नजारा ऐसा कि जिसे देख कोई भी अचंभे में पड़ जाए.

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Published : Mar 20, 2019, 8:17 PM IST

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जयपुर. वसंत ऋतु आते ही एक नयापन का एहसास होने लगता है. नित नूतन परिर्वतन देखने को मिलते हैं. होलकोत्सव का आगाज होने से पहले प्रकृति का इतना खूबसूरत रुप शायद ही कभी दिखा हो. हर शाम एक दिल को छूने वाला एहसास दे जाती है. ऐसा नजारा शायद कम ही दिखने को मिलता है कि चांद की चांदनी के आगे सूरज किरणें फीकी पड़ जाएं.


पतझड़, सावन, बसंत, बहार. ऋतुओं का ये क्रम ऐसे ही नहीं रखा गया. बसंत एक ऐसी अवधि है जिसे हम प्रकृति की किशोर अवस्था मानते हैं. ऐसे में प्रकृति का यौवन चरम पर होता है. आपकी निगाहें जिधर भी जाएं निर्जीव से लेकर सजीव तक सभी चीचों में एक नया बदलाव दिखता है. पेड़ पौधों में नई कोपलें आने लगती हैं. तो आम और नीम के पेड़ों में फूल दिखते हैं. खेतों में सरसों के लहलहाते पीले पुष्प तो प्रकृति खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं.


इन सब के बीच आजकल हमारे चंदा मामा की बात ही कुछ अलग है. उन्होंने दिवाकर यानि सूरज भगवान को फीका कर दिया है. शाम ढलते ही चांद में जो चमक दिखती है उससे एक बार किसी को भी धोखा हो सकता है कि यह दिन है कि रात.


वाकई यह सूरज के लिए डूब मरने वाली बात है. शाम ढलने साथ शुरु होती उनकी चमक सूर्य देव के आगे ही उन्हें फीका साबित कर देती है. यकीन ना हो तो यह नजारा शहर की चकाचौंध हटकर किसी शांत जगह पर देखा जा सकता है.


फिलहाल कुछ भी हो हम तो यही कहेंगे कि बसंत ढलने को है और बहार के दिन आने वाले हैं. जिसका असर दिखाई देने लगा है. शायद इससे चंद्रमाखुद को अलग नहीं रख पा रहे हैं. तभी तो उन्होंने सूरज को फीका करने के अचंभा कर दिखाया है.

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