जयपुर में विकसित हुआ गुजराती कल्चर जयपुर. छोटी काशी में इन दिनों नवरात्रि की धूम है. गरबा-डांडिया नाइट्स में युवा जमकर झूम रहे हैं. जयपुर की स्थापना से ही यहां बसा गुजराती समाज गरबा-डांडिया के रंग बिखेरता आया है, जिससे समय के साथ-साथ अब अन्य समाज और विभिन्न वर्ग जुड़ते चले जा रहे हैं. आलम यह है कि अब शहर भर में होने वाले गरबा-डांडिया नाइट से पहले इसके लिए बाकायदा कोरियोग्राफर से ट्रेनिंग तक ली जाती है. वहीं, महिलाओं में नवरात्रि के नौ दिनों में होने वाले इस रंगारंग गरबा-डांडिया महोत्सव को लेकर खासा क्रेज रहता है.
सालभर से रहता है नवरात्रि का इंतजार :राजधानी में नवरात्रि के दिनों में गरबा-डांडिया इवेंट का लोग जमकर लुत्फ उठा रहे हैं. खासकर जयपुर की महिलाएं जो साल भर से इन नौ दिनों का इंतजार करती रहती हैं. वर्किंग वुमन से लेकर ग्रहणी सभी नवरात्रि में गरबा के रंग में रंग जाती हैं. इसके लिए विशेष परिधान के साथ-साथ ज्वेलरी की भी खरीदारी होती है. यहां तक की महिलाएं इस महोत्सव के लिए अब कोरियोग्राफर से विशेष क्लासेस भी लेती हैं. हाउसवाइफ प्रिया ने बताया कि जब वो बच्चे थे, तो अपने पेरेंट्स के साथ गरबा-डांडिया देखने जाया करते थे, लेकिन समय के साथ-साथ माहौल बदल गया है. अब वो भी डांडिया में पार्टिसिपेट करते हैं. हर साल इन 9 दिनों का विशेष इंतजार रहता है. नए परिधान और ज्वेलरी पहनकर गरबा नाइट में शामिल होने का जो मौका मिलता है, वो खास होता है. वहीं, वर्किंग वुमन दिव्या ने बताया कि इस फेस्ट के कलरफुल ड्रेस अट्रैक्ट करते हैं और वह खुद डांस की बड़ी शौकीन हैं. गरबा डांडिया के लिए वो बाकायदा वर्कशॉप भी लेती है.
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डांस ही नहीं, सांस्कृतिक आयोजन भी है गरबा : इसी तरह कोरियोग्राफर विष्णु सेन ने बताया कि आज जयपुर में गरबा-डांडिया को लेकर लोगों में खासा क्रेज है. उन्होंने बताया कि इस डांस फॉर्म में लोग सर्कल में डांस करते हैं, जो एक-दूसरे को परस्पर बांधे रखने का प्रतीक है. शुरुआत में जब जयपुर में गरबा-डांडिया शुरू हुआ था तो सिर्फ गुजराती समाज के लोग ही इस इवेंट से जुड़ा करते थे, लोगों में ज्यादा क्रेज नहीं था, लेकिन अब लोग उन्हें आगे से कॉल करते हैं कि गरबा डांडिया उत्सव कब से स्टार्ट होगा. उन्होंने कहा कि वो खुद करीब 11 साल से गरबा-डांडिया की क्लासेस दे रहे हैं. शुरुआत में लोग 2 से 3 दिन वर्कशॉप लिया करते थे. अब एक महीने पहले से क्लासेस लगना शुरू हो जाती है. खास बात ये है कि युवतियों के साथ-साथ महिलाओं और पुरुषों में भी इसे लेकर क्रेज देखने को मिलता है. जो लोग इसमें रुचि दिखाते हैं, उन्हें 13 ताली, 20 ताली, गरबा-डांडिया के सामान्य स्टेप में अंतर स्पष्ट कराया जाता है. उन्होंने बताया कि ये सिर्फ एक डांस फॉर्म नहीं बल्कि श्रद्धा से जुड़ा हुआ सांस्कृतिक आयोजन है. साथ ही लोगों के लिए एक अच्छा वर्कआउट भी है.
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सवाई जयसिंह लाए थे गुजराती ब्राह्मणों को :एक्सपर्ट डॉ मीनाक्षी मिश्रा ने बताया कि जयपुर में गुजराती कल्चर शुरू से ही है. जब सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की थी तो उन्होंने गुजराती ब्राह्मणों को भी यहां लाकर बसाया था. उन्हीं औदीच्य और प्रश्नोरे समाज ने यहां गुजराती कल्चर को नवरात्रि में जयपुर में उतारा. समय के साथ-साथ आसपास के लोग और दूसरे समाज के लोग भी इस इवेंट से जुड़ने लगे. धीरे-धीरे शहर में ये कल्चर बढ़ता ही चला गया, जिसका एक बड़ा कारण इसका सॉफ्ट और अट्रैक्टिव म्यूजिक, पहनावा और ज्वेलरी भी है. समय के साथ हर वर्ग और समाज के जुड़ने से अब ये कमर्शियल भी हो गया है. पहले गरबा-डांडिया के प्रोग्राम अष्टमी-नवमी तक सीमित थे. अब नवरात्र के पहले दिन से शुरुआत होती है, और दशहरे के बाद तक भी चलता रहता है. छोटे-बड़े स्कूल, क्लब और संगठन अपने-अपने स्तर पर इसका आयोजन कराते हैं. खास बात ये है कि महिला-पुरुष, बच्चा-बुजुर्ग हर वर्ग इससे जुड़ा रहता है. इन आयोजनों में बेस्ट गरबा ड्रेस डांडिया किंग, डांडिया क्वीन, फैमिली ग्रुप, बेस्ट कपल जैसे पुरस्कार भी दिए जाते हैं, जिन्हें जीतने के लिए सभी प्रतिभागियों में होड़ रहती है. इस वजह से भी गरबा का क्रेज लगातार बढ़ता जा रहा है. इसमें सिर्फ मनोरंजन ही नहीं बल्कि वर्कआउट भी होता है और रोजमर्रा की जिंदगी से अलग का एक्सपोजर मिलता है.