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Mahashivaratri 2023:जयपुर की बसावट से पहले का है ये शिवलिंग, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

आज हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसकी स्थापना जयपुर की बसावट से पहले हुई थी. ये मंदिर श्मशान भूमि पर स्थित (Tadkeshwar Temple of Jaipur) है.

Mahashivaratri 2023:
Mahashivaratri 2023:

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Published : Feb 18, 2023, 8:44 PM IST

जयपुर का ताड़केश्वर मंदिर

जयपुर. जयपुर की बसावट से पहले स्थापित ताड़केश्वर मंदिर श्मशान भूमि पर बना है और यहां शिवलिंग स्वयंभू है. मान्यता है कि यहां एक बकरी ने अपने बच्चों को बचाने के लिए शेर तक को खदेड़ दिया था. आसपास बड़ी संख्या में ताड़ के वृक्ष होने की वजह से ये शिवलिंग ताड़केश्वर नाथ कहलाया. जयपुर के इस सबसे प्राचीन मंदिर में विराजमान शिवलिंग भक्तों की लापरवाही से घिसता जा रहा है. निरंतर जलाभिषेक और दुग्ध अभिषेक के बाद शिवलिंग को रगड़ने से इसका आकार छोटा हो रहा है.

ताड़केश्वर मंदिर पहले छोटा था. मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण जयपुर शहर की स्थापना के दौरान हुआ. जयपुर के आर्किटेक्ट विद्याधर भट्टाचार्य ने इस मंदिर को तैयार करवाया था. मंदिर के महंत बम महाराज ने बताया कि ताड़केश्वर महादेव मंदिर को पहले ताड़कनाथ के नाम से जाना जाता था. इस शिवलिंग की किसी ने स्थापना नहीं की, बल्कि ये स्वयंभू है. उन्होंने बताया कि आमेर स्थित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के व्यास सांगानेर जाते समय वर्तमान मंदिर के स्थान पर कुछ समय के लिए रुके थे. यहां ताड़ के वृक्षों का जंगल था. उस दौरान उन्होंने देखा कि एक बकरी अपने बच्चों को बचाने के लिए शेर से मुकाबला कर रही थी. इस लड़ाई में बकरी ने शेर को खदेड़ दिया. इस घटना के बाद उन्हें जमीन के नीचे से कुछ अजीब आवाज सुनाई दी.

मंदिर स्थापित पीतल के नंदी

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इसके बारे में उन्होंने आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह को बताया. तब महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने दीवान विद्याधर भट्टाचार्य को यहां भेजकर खुदाई करवाई तो इस स्थान स्वयंभू शिवलिंग निकले. जिसके बाद दीवान ने क्षेत्र में ताड़ के वृक्ष होने के कारण इसे ताड़केश्वर महादेव के नाम से पुकारा और इसी नाम से श्मशान स्थल पर ताड़केश्वर मंदिर का निर्माण करवाया गया. इसके बाद महाराजा ने व्यास परिवार को यहां सेवा पूजा की जिम्मेदारी सौंपी, तभी से व्यास परिवार यहां पूजा करते आ रहे हैं.

मंदिर के महंत बम महाराज ने बताया कि इस मंदिर में पीतल के विशाल नंदी भी हैं. ये एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है, जहां नंदी शिवलिंग के सामने नहीं, बल्कि दाएं तरफ है. यहां नंदी महाराज को तांत्रिक पद्धति से स्थापित किया गया था. मान्यता है कि पीतल के नंदी प्रत्यक्ष हैं और हर भक्त से खुद साक्षात्कार करते हैं. इसके अलावा यहां भगवान गणेश, बजरंगबली और अन्य देवी-देवता की प्राण प्रतिष्ठित है.

मंदिर में पूजा करते भक्त

चूंकि यहां हर दिन करीब 25 हजार श्रद्धालु दर्शन, जलाभिषेक, दूध अभिषेक और गन्ने के रस से अभिषेक करते हैं. इस दौरान उनके हाथों की अंगूठियों से रगड़ने के चलते शिवलिंग को क्षति हो रही है. भक्तों के लगातार जलाभिषेक और घिसने से शिवलिंग का आकार भी छोटा हो रहा है. इसके चलते शिवलिंग के लिए अब रजत कवच बनाने की योजना चल रही है. हालांकि, रजत कवच का डिजाइन इस तरह का तैयार किया जाएगा, जिससे श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो.

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