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By election: सीएम और मंत्रियों के निधन के बाद उनके परिवार भी हारे उपचुनाव, लेकिन अब सहानुभूति बनी जीत की गारंटी

राजस्थान में विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के निधन के बाद अब तक 23 बार विधानसभा उप चुनाव हुए. इनमें से 5 बार उनके परिजनों को जीत मिली. जबकि 9 बार जनता ने ऐसे प्रत्याशियों को नकारा. हालांकि गहलोत सरकार के मौजूदा कार्यकाल में 6 विधायकों के निधन से खाली हुई सीटों पर सहानुभूति जीत का आधार बनी. ऐसे में सरदारशहर में होने वाले उपचुनाव में सहानुभूति जीत की गारंटी माना जा रहा (Sympathy factor in Sardarsahar by election 2022) है.

Sympathy factor in Sardarsahar by election 2022
सीएम और मंत्रियों के निधन के बाद उनके परिवार भी हारे उपचुनाव, लेकिन अब सहानुभूति बनी जीत की गारंटी

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Published : Nov 7, 2022, 7:49 PM IST

Updated : Nov 7, 2022, 9:19 PM IST

जयपुर. सरदारशहर से विधायक भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद भाजपा और कांग्रेस ने 5 दिसंबर को होने जा रहे उपचुनाव में टिकट को लेकर माथापच्ची शुरू कर चुकी है. गहलोत सरकार के वर्तमान कार्यकाल में अब तक 5 कांग्रेस और 1 भाजपा विधायक समेत कुल 6 विधायकों का निधन हो चुका है. रिक्त हुई इन सीटों में से पांच पर उपचुनाव हो चुके हैं. छठा चुनाव दिसंबर में होगा. विधायकों के निधन के बाद बनी सहानुभूति का फायदा हर बार उनके परिजनों को टिकट और जीत के रूप में नहीं मिला है. हालांकि इस बार गहलोत सरकार में सहानुभूति के चलते अधिकांश विधायक ​परिवारों को जीत के रूप में 'श्रद्धांजलि' मिली (sympathy wins in by elections during Gehlot tenure) है.

राजस्थान में अब तक विधायकों के निधन के चलते 23 बार विधानसभा और 4 बार लोकसभा उपचुनाव हो चुका है. विधानसभा की बात करें तो 23 विधानसभा उपचुनाव में पार्टियों ने 14 बार विधायकों के परिजनों पर ही भरोसा जताया, जिनमें से पार्टियों को सहानुभूति का फायदा 5 बार मिला. वहीं 9 बार जनता ने उपचुनाव में निधन हो चुके विधायकों के परिजनों को चुनाव हरा दिया. अब तक सांसदों के निधन के चलते 4 उपचुनाव राजस्थान में हुए हैं, जिनमें से 2 बार पार्टियों ने सांसदों के निधन के बाद उनके परिजनों को टिकट दिया, जिनमें से 1 को जीत मिली और 1 को हार.

इनके निधन पर हुए उपचुनाव

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इस कार्यकाल में सहानुभूति बनी जीत की गारंटी:राजस्थान में विधायकों के निधन के बाद 23 बार उपचुनाव हुए हैं, जिनमें से पार्टियों ने 14 बार विधायकों के परिजनों को टिकट दिया. लेकिन गहलोत सरकार के इस कार्यकाल के 5 उपचुनाव छोड़ दिए जाएं, तो राजस्थान की जनता ने 10 विधानसभा उपचुनाव में केवल 1 बार की सहानुभूति के आधार पर चुनाव जीताया. इस तरह 9 उपचुनाव में निधन हो चुके विधायकों के परिजनों पर जनता ने भरोसा नहीं जताया. मंत्रियों ही नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिजनों को भी जीताकर विधानसभा नहीं भेजा. वहीं अब तक हुए 4 लोकसभा सांसदों के निधन के चलते उपचुनाव में दो बार पार्टियों ने निधन होने वाले सांसदों के परिजनों पर भरोसा जताया, जिनमें से एक बार सांसद परिजन को जीत मिली और एक बार हार.

इनके निधन पर हुए उपचुनाव

भंवरलाल के बेटे अनिल शर्मा को मिलेगा टिकट!: राजस्थान में भले ही वर्तमान गहलोत कार्यकाल से पहले कभी जिन विधायकों या सांसदों के निधन होने के चलते उपचुनाव में राजस्थान की जनता ने उनके परिजनों को ज्यादातर चुनाव हराए हों, लेकिन कांग्रेस की वर्तमान गहलोत सरकार में जनता ने नया फार्मूला अपना लिया है. गहलोत के वर्तमान कार्यकाल में अब तक प्रदेश में विधायकों के निधन के चलते 5 बार उपचुनाव हुए हैं.

इनके निधन पर हुए उपचुनाव

इनमें से कांग्रेस ने 3 और भाजपा ने 1 परिजन को टिकट दिया और दोनों ही पार्टियों की ओर से विधायक परिजनों को जीत मिली. तो वहीं धरियाबाद टिकट पर भाजपा ने विधायक के परिजन की जगह किसी और नेता पर भरोसा जताया तो जनता ने भाजपा के फैसले को नकार दिया. ऐसे में अब 5 दिसंबर को होने जा रहे उपचुनाव में लगता नहीं है कि कांग्रेस पार्टी भंवरलाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा के अलावा किसी और नेता पर दांव लगाएगी.

इनके निधन पर हुए उपचुनाव

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यह रहे अब तक विधायकों के निधन के चलते उपचुनाव के नतीजे:

  1. 1965 राजाखेड़ा विधानसभा- 1965 में राजाखेड़ा से विधायक प्रताप सिंह के निधन के बाद उनके बेटे ने चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए.
  2. 1970 नसीराबाद विधानसभा- 1970 में नसीराबाद विधानसभा से एसडब्ल्यूए विधायक वी सिंह के निधन के बाद उनके बेटे ने चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए.
  3. 1978 रूपवास विधानसभा- 1978 में रूपवास विधानसभा से जनता पार्टी के विधायक ताराचंद का निधन हुआ. जनता पार्टी ने ताराचंद के बेटे को टिकट नहीं दिया, लेकिन वह दूसरी पार्टी से चुनाव लड़े और हार गए.
  4. 1978 बनेड़ा विधानसभा- 1978 में बनेड़ा से जनता पार्टी के विधायक उमराव सिंह डाबरिया के निधन के बाद जनता पार्टी ने उनके परिवार को टिकट नहीं दिया, लेकिन जीत जनता पार्टी के ही कल्याण सिंह कालवी को मिली.
  5. 1982 सरदारशहर विधानसभा- सरदारशहर विधानसभा से भाजपा विधायक मोहनलाल के निधन के बाद भाजपा ने उनके परिवार को टिकट नहीं दिया तो पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
  6. 1984 थानागाजी विधानसभा- 1984 में थानागाजी से कांग्रेस विधायक शोभाराम के निधन के बाद उनके परिजनों ने चुनाव नहीं लड़ा, जीत भी कांग्रेस पार्टी की ही हुई.
  7. 1988 खेतड़ी विधानसभा- 1988 में खेतड़ी से भाजपा विधायक मालाराम के निधन के बाद उनके बेटे ने चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव हार गए.
  8. बयाना विधानसभा 1995- बयाना विधानसभा में विधायक बृजराज सिंह का निधन होने के बाद भाजपा ने उनके बेटे शिवचरण सिंह को टिकट दिया, लेकिन वह जीत नहीं सके.
  9. बांसवाड़ा विधानसभा 1995- बांसवाड़ा विधानसभा से विधायक पूर्व मुख्यमंत्री हरदेव जोशी के निधन के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे दिनेश जोशी को टिकट दिया, लेकिन वे चुनाव हार गए.
  10. भीलवाड़ा विधानसभा 1995- भीलवाड़ा विधानसभा से भाजपा विधायक जगदीश चंद्र के निधन के बाद भाजपा ने उनके परिवार को टिकट नहीं दिया, लेकिन फिर भी जीत भाजपा प्रत्याशी राम रिछपाल को मिली.
  11. लूणकरणसर विधानसभा 2000- लूणकरणसर से कांग्रेस विधायक भीमसेन चौधरी के निधन के बाद उनके बेटे वीरेंद्र बेनीवाल को टिकट दिया गया, लेकिन वह चुनाव हार गए.
  12. 2002- अजमेर पश्चिम से कांग्रेस विधायक किशन मोटवानी के निधन के बाद कांग्रेस ने उनके परिवार को टिकट नहीं दिया, जीत कांग्रेस के नानकराम जगतराई को मिली.
  13. 2002- बानसूर से बसपा विधायक जगत सिंह दायमा के निधन के बाद उपचुनाव हुए. इसके बाद इनके परिवार के किसी सदस्य को टिकट नहीं मिला और भाजपा के रोहिताश कुमार ने बानसूर से जीत दर्ज की.
  14. 2002- सागवाड़ा से कांग्रेस के विधायक भीखाभाई के निधन मृत्यु पर कांग्रेस ने उनके बेटे सुरेंद्र कुमार को टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गए.
  15. 2005- लूणी से कांग्रेस विधायक रामसिंह विश्नोई के निधन के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे मलखान सिंह को टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गए.
  16. 2006- डीग कुम्हेर से राज परिवार के अरुण सिंह निर्दलीय चुनाव जीते, लेकिन उनके निधन के बाद भाजपा ने राज परिवार की दिव्या सिंह को टिकट दिया जिन्होंने जीत दर्ज की.
  17. 2006- डूंगरपुर विधानसभा से विधायक नाथूराम अहारी के निधन के बाद कांग्रेस ने परिवार को टिकट नहीं दिया फिर भी कांग्रेस के पूंजीलाल परमार चुनाव जीते.
  18. मांडलगढ़ 2018- भाजपा विधायक कीर्ति कुमारी का निधन हुआ उनके परिवार के सदस्य को टिकट नहीं दिया गया, तो जीत कांग्रेस के विवेक धाकड़ की हुई.
  19. राजसमंद 2021- 2020 में भाजपा विधायक किरण माहेश्वरी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी बेटी दीप्ति महेश्वरी ने चुनाव लड़ा और वह चुनाव जीतीं.
  20. सहाड़ा 2021- 2020 में सहाड़ा से विधायक कैलाश त्रिवेदी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री त्रिवेदी को टिकट दिया जिन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की.
  21. सुजानगढ़ 2021- 2020 में सुजानगढ़ से विधायक मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे मनोज मेघवाल को टिकट दिया और उन्होंने जीत भी दर्ज की.
  22. वल्लभनगर 2021- 2021 में वल्लभनगर से कांग्रेस विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने उनकी पत्नी प्रीति शक्तावत को टिकट दिया जिन्होंने चुनाव में जीत भी दर्ज की.
  23. धरियावद 2021- 2021 में धरियावद से भाजपा विधायक गौतम लाल के निधन के बाद भाजपा ने उनके बेटे को टिकट नहीं दिया, तो ऐसे में यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई.
  24. सरदारशहर विधानसभा में कांग्रेस विधायक पंडित भंवर लाल शर्मा के निधन के बाद उपचुनाव दिसंबर में है.

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यह रहे अब तक सांसदों के निधन के चलते उपचुनाव के नतीजे:

  1. दौसा लोकसभा 2000- राजेश पायलट की मृत्यु के बाद कांग्रेस ने उनकी पत्नी रमा पायलट को टिकट दिया और वह चुनाव में दौसा लोकसभा से विजयी रहीं.
  2. टोंक लोकसभा 2001- भाजपा सांसद श्याम लाल बंसी वाले की मृत्यु हुई. भाजपा ने उनके परिवार को टिकट नहीं दिया, जीत भाजपा के ही कैलाश मेघवाल की हुई.
  3. अजमेर लोकसभा 2018- सांसद सांवरमल जाट की मृत्यु पर उनके बेटे रामस्वरूप लांबा को टिकट दिया गया, लेकिन वह हार गए.
  4. अलवर लोकसभा- अलवर लोकसभा से सांसद रहे महेंद्र चांद नाथ का निधन हुआ, लेकिन उनके परिवार को टिकट नहीं दिया गया.
Last Updated : Nov 7, 2022, 9:19 PM IST

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