राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट जयपुर.एक बार फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट आमने-सामने हैं. दोनों नेताओं के बीच बयानों के बाण तो चल ही रहे थे, लेकिन इस बीच पायलट के एक फैसले ने सीएम गहलोत के साथ ही अब पार्टी आलाकमान की भी चिंताएं बढ़ा दी हैं. दरअसल, विधानसभा चुनाव सिर पर है और सीएम गहलोत सरेआम सियासी मंचों से सरकार रिपीट कराने की बात कह रहे हैं, लेकिन इस बीच उनका पायलट संग जारी सियासी अंतरद्वंद्व बार-बार आड़े आ जा रहा है. वहीं, मंगलवार को सचिन पायलट ने सीएम गहलोत के उन आरोपों पर पलटवार किया, जो उन्होंने उन पर और उनके समर्थक विधायकों पर लगाए थे. पायलट ने कहा कि जिनका पूरा सियासी जीवन ही पैसे के दम पर पनपा है, उन्हें तो हर चीज में पैसा दिखाई ही देगा और वे ही लोग ऐसे आरोप भी लगा रहे हैं.
अगर सबूत है तो करें कार्रवाई - उन्होंने कहा कि अगर किसी के पास पैसे के लेनदेन के सबूत हैं तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई. पायलट ने कहा- ''मैं किसी पर भी आरोप लगा दूं कि वो हजार करोड़ खा गया. कोई 10000 करोड़ खा गया या फिर एक लाख करोड़ खा गया हो. इस बात का कोई मतलब ही नहीं निकता है. अगर पब्लिक डोमेन में किसी के पास कोई प्रमाणित तथ्य है तो फिर कार्रवाई होनी चाहिए थी. अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई?''
ऐसे लोगों का मेरे पास भी इलाज नहीं -पायलट ने आगे कहा कि जिन लोगों का पूरा राजनीतिक जीवन ही सिर्फ पैसे के दम पर पनपा हो, शायद उनको हर चीज में पैसे दिखाई देते हैं. लेकिन उन्हें जनता के जज्बात और इमेज पर भी ध्यान देना चाहिए. खैर, अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो फिर इसका उनके पास भी कोई इलाज नहीं है. पायलट ने कहा कि अगर कोई उन पर उंगली उठा सकता है तो वो भी यह साफ कर देना चाहते हैं कि ऐसे आरोप लगाने से किसी का लाभ होने वाला नहीं है, क्योंकि आरोप तो वो भी लगा सकते हैं. उन्होंने कहा कि जुबान खोलने में किसी का कुछ नहीं जाता है.
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पायलट ने खुद को बताया पार्टी का अनुशासित कार्यकर्ता - पायलट ने कहा कि वो तमाम गालियां खाने के बाद भी पार्टी के अनुशासन के मार्ग से विचलित नहीं हुए. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वो आम लोगों की सियासत में विश्वास करते हैं. उन्होंने कहा कि किसी पर आरोप लगाना तो आसान है, लेकिन पब्लिक को जवाब देना मुश्किल होता है. उन्होंने कहा कि आज उन विधायकों पर हमले हो रहे हैं, जिनके दम पर राज्य में सरकार बनी और वो सीएम बने. सोनिया गांधी ने जिन पर भरोसा व्यक्त किया उन्हें बदनाम किया जा रहा है. उनकी बेवजह सार्वजनिक मंचों से आलोचना की जा रही है.
गहलोत के आरोपों पर जताई आपत्ति -पायलट ने कहा कि आज 40-45 सालों तक सक्रिय सियासत में रहने वाले नेताओं व विधायकों पर आरोप लगाए जा रहे हैं. ये वो विधायक हैं, जो करोड़ों रुपए दान कर चुके हैं, लेकिन सच तो यह है कि वर्तमान में जो हो रहा है, वो सरासर गलत है. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग जो पब्लिक डोमेन में 30- 40-45 साल से राजनीति कर रहे हैं. उन पर सरेआम आरोप लगाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि उन लोगों ने भाजपा से पैसे लिए हैं. हेमाराम चौधरी साल 1980 से विधायक हैं. उनकी छवि हर कोई जानता है. विजेंद्र ओला के पिता 1957 से कांग्रेस पार्टी में चुनाव लड़ रहे थे. बड़े-बड़े पदों पर रहे हेमाराम चौधरी ने तो अपने बेटे की याद में 100-100 करोड़ रुपए की अपनी जमीन दान में दे दी. 22 करोड़ का हॉस्टल बनाया. बावजूद इसके ऐसे नेताओं पर आरोप लगाए जा रहे हैं.
मुझे कोरोना, गद्दार और निकम्मा तक कहा - पायलट ने कहा कि मुझे कोरोना, गद्दार और निकम्मा तक कहा गया. कांग्रेस विधायकों को बदनाम और भाजपा नेताओं का गुणगान यह समझ से परे है. पायलट ने कहा कि पिछले ढाई साल से उन्हें बहुत कुछ कहा गया. लेकिन वो हमेशा खामोश रहे. किसी भी आरोप पर प्रतिक्रिया तक नहीं दिए और न ही कभी पार्टी और उसकी छवि को नुकसान पहुंचने दिया. लेकिन अब पानी सिर से ऊपर चला गया है. पायलट ने कहा कि कांग्रेस के विधायकों को बदनाम किया जा रहा है और भाजपा के नेताओं का गुणगान हो रहा है, जो पार्टी के लिए घातक है.
उल्टे गहलोत पर लगाए ये गंभीर आरोप - उन्होंने कहा कि हम सीएम गहलोत के नेतृत्व के विरोध में गए थे. लेकिन गद्दारी तो विधायकों के इस्तीफे दिलवाने वाली घटना थी. सचिन पायलट ने कहा कि साल 2020 में हम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ दिल्ली गए थे और अपनी बात कांग्रेस आलाकमान के सामने रखी थी. हमारे तथ्यों के आधार पर ही सोनिया गांधी ने 25 सितंबर को माकन और खड़गे को विधायक दल की बैठक कराने के लिए जयपुर भेजा था. लेकिन वो विधायकों की बैठक ही नहीं होने दिए. सोनिया गांधी उस समय हमारी पार्टी की अध्यक्ष थीं. उनकी अवहेलना, मानहानि और बेइज्जती हुई, जो सही मायनों में गद्दारी थी. पायलट ने कहा कि विधायकों को उनकी इच्छा के खिलाफ इस्तीफा दिलवाया गया. अपनी सरकार को संकट में खड़ा किया गया. बहुत से लोग तो ये आरोप भी लगाते हैं कि मोदी और शाह के कहने पर ही इस्तीफे दिलवाए गए थे. लेकिन क्या यह बात पब्लिक डोमेन में बोली जा सकती है.