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स्पेशल स्टोरी : देश भर में सबसे अनूठा है रेनवाल का दशहरा मेला...6 माह तक हर रोज जलता है 'रावण' - Jaipur news

जयपुर जिले के रेनवाल कस्बे का दशहरा मेला दूर-दूर तक प्रसिद्ध है. मेले की खासियत है कि यह विजयादशमी के चार दिन पहले शुरू होता है और होली के बाद तक चलता है. इस दौरान अलग-अलग गांवों में निर्धारित तिथियों पर रावण दहन का कार्यक्रम रखा जाता है. स्पेशल रिपोर्ट में पेश है 6 माह तक चलने वाले इस मेले की कुछ खास बातें.

रेनवाल न्यूज, renwal news

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Published : Oct 18, 2019, 5:06 PM IST

Updated : Oct 18, 2019, 7:11 PM IST

रेनवाल (जयपुर). जहां पूरे देश में विजयादशमी के दिन रावण दहन किया जाता है, वहीं जिले के रेनवाल क्षेत्र में विजयदशमी से चार दिन पहले से रावण दहन का पर्व शुरू होता है, जो होली तक चलता है. जिले के दशहरा मैदान पर रावण दहन का सिलसिला आसोज माह के नवरात्रा के छठे दिन से शुरू होता है, जो कि क्षेत्र के अलग अलग गांवों में भिन्न-भिन्न तिथियों को लगातार 6 माह तक जारी रहता है. यानी 'रावण' एक दिन नहीं बल्कि पूरे 6 महीने मरता है.

अनूठा है रेनवाल का दशहरा मेला

दशहरा मेला कमेटी के उप महामंत्री ने बताया कि 100 साल से भी अधिक समय से यह पुरानी परंपरा चली आ रही है, जो दक्षिण भारत की तरह मुख्तार नृत्य करते हुए समाप्त होती है.

इस प्रकार चलता है रावण दहन का कार्यक्रम
इस अनूठे रावण दहन की शुरुआत सर्व प्रथम रेनवाल में विजयादशमी से चार दिन पहले दशहरा मेला और 60 फुट के रावण के पुतले के दहन के साथ होती है. जबकि इसी माह की अष्टमी को रेनवाल के झमावाली मैदान पर रावण दहन हुआ. वहीं हरसोली में विजय दशमी को रावण दहन किया गया.

करणसर और मींडी गांव में भी आसोज माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रावण दहन किया गया, साथ ही बाघावास कस्बे में कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रावण दहन होता है. बात करें कस्बे के बासडी खुर्द की तो यहां कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन होता है. सबसे आखिर में रावण दहन नांदरी गांव में होता है.

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होली के बाद भी जारी रहती है परंपरा, जुड़ी हैं कई दंतकथाएं

दिलचस्प बात यह है कि यह परंपरा होली के भी बाद वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को नृसिंह लीला और रावण दहन किया जाता है. यह प्रक्रिया सैंकडों वर्षों से चली आ रही है. जिसके पीछे कई कारण हैं, जहां पुराने समय में मनोरंजन के साधन सीमित होने के कारण बुजुर्गों ने भिन्न-भिन्न तिथियों को मेले के आयोजन की ऐसी व्यवस्था बनाई थी, जिससे आसपास के लोग मेलो में भाग लेकर अपना मनोरंजन कर सके और आसपास के सभी व्यापारी भी मेले में शामिल होकर व्यापर कर सके.

अनूठा है रेनवाल का दशहरा मेला

रेनवाल का यह दशहरा मेला अपने आप में अनूठा है, जिसमें दूर-दराज बसे प्रवासी लोग जो बड़े शहरों में जीवन यापव कर रहे हैं, वह भी परिवार सहित मेले में शामिल होने आते हैं. मेले को लेकर लोगों में उत्साह देखते ही बनता है. दशहरा मेला कमेटी के कार्यकर्ता कई दिन पहले से ही तैयारी में जोर शोर से जुट जाते हैं. मेले में नाइयों के बालाजी मंदिर से भगवान श्रीराम को पालकी में बैठाकर दशहरा मैदान तक पहुंचाया जाता है. पालकी के साथ मुखौटा लगाए पूरी वानर सेना नाचते हुए श्रीराम के साथ चलती है.

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इस दौरान विद्वान पंडित मूदंग की थाप पर पयाना दंडक बोलते हुए साथ चलते हैं. रास्ते में सुरपंका का नाक कटना, विभिषण का शरणगति का चित्रण किया जाता है. जिसके बाद दशहरा मैदान में करीब एक घंटे तक श्रीराम और रावण की सेना के बीच युद्ध चलता है. बाद में रावण वध के साथ ही आतिशबाजी के साथ पुतले का दहन होता है. जीत की खुशी में पालकी में रघुनाथजी की रास्ते में जगह-जगह लोग आरती उतारते हैं. रात्रि में बड़ा मंदिर के सामने जीत के जश्न पर अवतार लीलाओं का आयोजन होता है, जहां मुखौटे लगाए हुए राम की सेना के पात्र नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हैं.

निकाली जाती हैं कई भगवान की झांकिया

इस दौरान विभिन्न भगवान की झांकिया भी निकाली जाती हैं, जिनमें रिद्धि-सिद्धि के साथ गणेशजी, रामदरबार, पंचमुखी हनुमान, आदि का वीर, मकरध्वज, केशर, मयंद, नल, नीर, सुग्रीव अंगद, नीलकंठ, बराह अवतार, नूसिंह अवतार, गरूड़ वाहन, शिव परिवार आदि झांकियां निकाली जाती हैं. जिसमें दक्षिण भारतीय शैली का अनुठा नजरा देखने को मिलता है. इस तरह पूरी रात बुराई पर जीत का जश्न मनाया जाता है, जिसके सैंकडों लोग साक्षी बनकर कार्यक्रम का आनंद उठाते हैं.

साम्प्रदायिक एकता की मिसाल है मेला

दशहरा मेला कमेटी के सदस्य महेन्द्र दाधीच ने बताया कि अगर एक तिथि को क्षेत्र में यह आयोजन किया जाएगा तो हमारे धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं होगा. इसलिए अलग-अलग तिथियां घोषित कर लगातार छह माह तक उत्सव मनाया जाता है. इन उत्सवों में सभी धर्मों के लोग भाग लेते हैं जो साम्प्रदायिक एकता को दर्शाता है. जहां मुस्लिम लोग भी इन आयोजन में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. यहां तक की मेले में भगवान की पूजा कर आशीर्वाद लेते हैं.

हालांकि, इतिहास के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण को अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को समाप्त कर शांति कायम की थी. उसी उपलक्ष में असत्य पर सत्य की जीत की खुशी में विजय दशमी का पर्व मनाया जाता है. लेकिन, रेनवाल सहित आसपास के कई गांवों में और कस्बों में दीपावली के बाद यहां तक की होली के बाद भी दशहरा मनाकर रावण दहन किया जाता है. यह प्रक्रिया ऐसे ही सैंकडों वर्षों से चली आ रही है.

Last Updated : Oct 18, 2019, 7:11 PM IST

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