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जहां ना पहुंची बिजली, पानी और सरकार, वहां पहुंचा Etv Bharat...जाना इस गांव का सूरत-ए-हाल

लॉकडाउन के दौरान कई ऐसे इलाके, बस्ती और गांव हैं जहां पर किसी भी तरह की सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही है. या यूं कहें की आलाधिकारियों की लापरवाही की वजह से कई परिवार भूखे हर दिन सो जाते हैं. क्योंकि यहां तक कोई प्रशासनिक तंत्र नहीं पहुंचता है. ऐसा ही एक गांव है राजधानी जयपुर का कसनेरा, जहां के हलातों का रियल्टी चेक करने इटीवी भारत पहुंचा और हकीकत चौंकाने वाली थी.

lockdown reality check, राजस्थान में लॉकडाउन
ETV भारत की पड़ताल.

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Published : Apr 16, 2020, 9:02 PM IST

(दूदू) जयपुर:लॉकडाउन पार्ट 2 के बाद लोगों की स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम राजधानी जयपुर के की दूदू क्षेत्र की कसनेरा गांव में पहुंची. इस गांव के बाहर गोचर भूमि पर बसी हुई भील बस्ती में जब हमारी टीम ने जायजा लिया तो परत दर परत लॉक डाउन के बीच की परेशानियां निकल कर सामने आई. बस्ती में लॉक डाउन के बाद ना तो प्रशासन पहुंचा और ना ही अभी तक किसी ने इनकी यहां के लोगों की सुध ली है. जब बस्ती के लोगों से ईटीवी भारत ने बातचीत की तो पता लगा की इन लोगों के लिए लॉकडाउन का मतलब सिर्फ कामकाज का बंद हो जाना ही है.

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ये लोग सैनिटाइजर और मास्क जैसे शब्दों से अंजान है. वहीं खाद्य सामग्री का वितरण और भोजन के पैकेट जैसे सरकारी प्रयास भी इनकी पहुंच से दूर नजर है. जब हमने स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं से बस्ती के लोगों को लेकर बातचीत की.

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सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये भील समाज के यह लोग गोचर भूमि पर बसे होने के कारण यहां के लोगों को सरकारी सुविधाएं नहीं मिल पाती है. ना ही उनके पास बिजली के कनेक्शन है और ना किसी तरह की सरकारी पाइपलाइन है जिससे इनके घरों तक पानी पहुंच सके. ईटीवी भारत के पहुंचने के बाद कई समाजिक कार्यकर्ताओं ने इन परिवारों तक खाद्य सामग्री उपलब्ध करने की बात कही है.

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राशन कार्ड जैसी सुविधाएं भी बस्ती के इन लोगों के लिए बेमानी सी है. याकिनन सवाल उठना लाजमी है जब सरकार लॉकडाउन के दौरान प्रदेश में किसी के भूखे नहीं सोने का दावा करती है. फिर कसनेरा की इस भील बस्ती के लोगों पर सरकार और उसके सिस्टम पर नजर क्यों नहीं पड़ती. क्यों यहां के लोग अंधेरे में जी रहे हैं. क्यों इन्हें शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है और क्यों इन परिजनों में से कई बच्चे हर दिन भूखे सो जाते हैं. हलांकि

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