जयपुर.राजस्थान विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर भारत सरकार द्वारा जून 2020 में जारी कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य अध्यादेश 2020, जिसके माध्यम से पूरे देश में किसान को अपनी फसल को कृषि मंडी क्षेत्र या सरकार द्वारा अधिसूचित क्षेत्र में विक्रय के बंधन से मुक्त कर किसी भी स्थान, व्यक्ति, व्यापारी या संस्था को जब चाहे, जहां चाहे, जिस स्थान पर चाहे बेचने की दशकों पुरानी मांग को देशभर में लागू किए जाने की नीति और दृष्टिकोण को स्पष्ट किये जाने की मांग की है.
राठौड़ ने अपने पत्र में लिखा है कि केन्द्र सरकार ने देश के किसानों को कृषक उपज व्यापार और वाणिज्यक (संवर्द्धन और सरलीकरण) अध्यादेश 2020 के माध्यम से कृषि क्रय विक्रय के व्यापार क्षेत्र को परिभाषित करते हुए भारत में प्रवृत्त राज्य कृषि उपज मण्डी अधिनियम के लागू होने के क्षेत्र को निर्बाधित यानि रोक दिया. यह वैधानिक अधिकार भी दे दिया था कि किसान अपनी फसल को देश में किसी भी व्यक्ति, व्यापारी, कंपनी को सीधे या इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के माध्यम से बेच सकता है. केन्द्र सरकार ने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्यक अध्यादेश 2020 की धारा 6 के अनुसार सभी प्रकार के टेक्स या सैस को राज्य सरकार या केन्द्र सरकार द्वारा वसूल नहीं किये जाने का प्रावधान कर ऐतिहासिक निर्णय भी लिया है.
राठौड़ ने कहा कि देश के किसानों को दशकों बाद अपनी फसल का निर्बाध रूप से कहीं भी बेचने के अधिकार के बारे में केन्द्र सरकार द्वारा दिये गये अधिकार पर राज्य सरकार द्वारा लगभग 3 महीने गुजर जाने के पश्चात भी कोई नीतिगत निर्णय नहीं लिया जाना प्रदेश के किसानों में असमंजसता पैदा कर रहा है.
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राठौड़ ने खेद जताते हुए कहा कि केन्द्र सरकार के कृषक उपज व्यापार और वाणिज्यक अध्यादेश, 2020 कि मूल भावनाओं के विपरीत सरकार ने इसी 24 जुलाई को विधानसभा में प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति में राजस्थान कृषि उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक 2020 पारित करवाके यह सिद्ध कर दिया कि सरकार किसान को केन्द्र सरकार द्वारा बिना टैक्स, बिना फीस या सैस से अपनी फसल को देश में कहीं भी बेचान करने के वैधानिक अधिकार को लागू नहीं करना चाहती, क्योंकि सरकार ने राजस्थान कृषि उपज मण्डी विधेयक 1961 में हाल ही में संशोधन कर प्रदेश के किसी भी कृषि मण्डी क्षेत्र या अधिसूचित क्षेत्र या सरकार द्वारा अधिकृत लाईसेंसी व्यापारी के पास किसानों द्वारा मात्र फसल लाये जाने, चाहे फसल का विक्रय हो या न हो पर 2.6 प्रतिशत मण्डी टेक्स वसूल करने का अधिकार प्राप्त कर लिया वहीं कृषि उपज मण्डी अधिनियम 1961 की धारा 17 में संशोधन कर राजपत्र में दर प्रकाशित कर कृषक कल्याण कोष के नाम जितनी चाहे मनमर्जी तौर पर कृषक कल्याण फीस वसूलने का भी व्यापक अधिकार भी प्राप्त किया है.
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राज्य सरकार द्वारा हाल ही में कृषि उपज मण्डी अधिनियम में किये गये दोनों संशोधन केन्द्र सरकार द्वारा जारी कृषक उपज व्यापार और वाणिज्यक अध्यादेश 2020 की मूल भावना के बिल्कुल विपरीत है. केन्द्र सरकार जहां देश के किसानों को बिना किसी कर या फीस या सेस के अपनी उपज को अपनी मर्जी से जहां चाहे वहां किसी भी व्यापारी, संस्थान अथवा कम्पनी को बेचने के उन्मुक्त अधिकार दे रही हैं. वहीं, राज्य सरकार संघवाद कि भावना के विपरीत कानून बनाकर राज्य के किसानों से मनमाना मंडी टैक्स व कृषक कल्याण फीस वसूल करना चाह रही है.