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Rajasthan Assembly News ; राजस्थान में शवों के साथ प्रदर्शन की रवायत पर रोक , जानिए कैसे उठाया सरकार ने कदम - राजस्थान में शव के साथ प्रदर्शन पर होगी सजा

राजस्थान विधानसभा में मृत शरीर का सम्मान विधेयक—2023 ध्वनिमत के साथ पारित हो गया. सरकार ने अपने आंकड़ों में कहा कि साल 2019 से लेकर 2023 तक प्रदेश में शवों के साथ प्रदर्शन की 306 घटनाएं हुई. वहीं बीजेपी के कार्यकाल में 82 घटनाएं हुई.

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Published : Jul 21, 2023, 8:49 AM IST

जयपुर.बीते गुरुवार को राजस्थान विधानसभा में मृत शरीर का सम्मान विधेयक—2023 ध्वनिमत के साथ पारित हो गया. इससे पहले चर्चा के दौरान संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने इस बिल के बहस पर जवाब दिया और आंकड़ों को पेश किया. इन आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान कांग्रेस सरकार के राज में साल 2019 से लेकर 2023 तक प्रदेश में शवों के साथ प्रदर्शन की 306 घटनाएं हुई. इससे पहले बीजेपी राज में 82 घटनाओं का जिक्र आता है. ऐसे में धारीवाल ने कानून बनाने की जरूरत को बताते हुए कहा कि इन आंकड़ों पर सख्त प्रावधानों से ही अंकुश लगेगा. धारीवाल ने वसुंधरा राजे सरकार के दौरान नवंबर 2016 की कलेक्टर कॉन्फ्रेंस का जिक्र करते हुआ कहा था कि एक दिन की चर्चा में इस दरमियान डेड बॉडी के साथ होने वाले प्रदर्शन को लेकर कानून की मांग तब भी की गई थी.

शव के साथ प्रदर्शन के जरिए सरकारी नौकरी की मांग की प्रवृति लगातार बढ़ रही है. हालांकि नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने इससे पहले बहस के दौरान कहा था कि यह कानून मीसा और डीआरआई जैसे कानूनों की याद दिला रहा है. वहीं आदिवासी क्षेत्रों के विधायकों का कहना था कि ट्राइबल बेल्ट में किसी हादसे में मौत पर दूसरे पक्ष से मौताणे या कहे कि मुआवजे की परंपरा है. ऐसे में यह बिल आदिवासी संस्कृति और नियमों के खिलाफ है. जाहिर है कि राज्य के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, बारां, प्रतापगढ़ जैसे आदिवासी बाहुल्य जिलों में मौताणा लेने की आदिवासी परंपरा है. इसके अलावा प्रदेश के कई इलाकों में इस तरह के मामलों में इजाफा हुआ है. इसमें सरकार का तर्क है कि प्रदेश में ऐसे अन्यायपूर्ण मामले बढ़ रहे हैं, जिन्हें रोकने के लिए कानून की जरुरत थी. वहीं डेड बॉडी के डेटा, डीएनए प्रोफाइलिंग, डिजिटलाइजेशन से जेनेटिक डाटा स्टोर करना जरुरी हो गया है. इस प्रकार के मामलों में गोपनीयता भंग होने से भी परेशानी हो रही है, जिसके लिए कानून बनाना जरुरी हो गया है.

शव के साथ प्रदर्शन के चर्चित मामले :
- अक्टूबर 2006 में श्रीगंगानगर में किसान चंदूराम की पुलिस लाठीचार्ज से कथित मौत के बाद शव के साथ प्रदर्शन के बीच भड़का किसान आंदोलन
- मई 2008 में सिकंदरा में हुई पुलिस फायरिंग में मारे गये 15 लोगों के शवों का अंतिम संस्कार लंबे समय तक नहीं किया गया था
- 13 जून 2005 को टोंक के सोहेला में सिंचाई के पानी की मांग पर किसानों के प्रदर्शन के बीच पुलिस फायरिंग के विरोध में शवों के साथ प्रदर्शन
- 13 जुलाई 2017 को 19 दिन तक शव के साथ प्रदर्शन के बाद हुआ गैंगस्टर आनंदपाल के शव का अंतिम संस्कार
- 11 अप्रैल 2021 को किरोड़ी लाल मीणा ने दौसा के शंभू पुजारी के शव के साथ सीएम हाउस के नजदीक सिविल लाइंस फाटक दिया धरना
- 10 जून 2022 को सीकर के खंडेला में वकील की खुदकुशी के बाद परिजनों ने किया था शव लेने से इनकार
- 21 जून 2023 बीकानेर के खाजूवाला में दलित युवती की दुष्कर्म के बाद मौत के मामले में 36 घंटे तक चला शव के साथ प्रदर्शन
- 24 जून 2023 चित्तौड़गढ़ के रावतभाटा में हादसे का शिकार दो युवकों के शव के साथ रास्ता रोककर प्रदर्शन किया गया
- 27 जून 2023 को बाड़मेर में पूर्व सरपंच की हत्या के बाद शव को डीप फ्रीज में रखकर प्रदर्शन
- 19 जुलाई 2023 को जोधपुर के ओसियां में सामूहिक हत्याकांड के 48 घंटों बाद भी मांगों को लेकर गतिरोध के बीच शवों का अंतिम संस्कार नहीं हुआ

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मानवाधिकार आयोग ने भी की थी मांग :अक्टूबर 2019 में मानवाधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया ने इस संबंध में कानून की मांग उठाई थी. जस्टिस टाटिया ने शवों के साथ प्रदर्शन के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए कानून बनाने की सिफारिश की थी ।तब आयोग के अध्यक्ष रहे प्रकाश टाटिया ने 17 अक्टूबर 2019 को आदेश पारित करते हुए कहा था कि शवों के साथ धरना-प्रदर्शन को दंडनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि मांगों को पूरा करवाने के लिए शवों का दुरपयोग किया जाता है, जो कि मृत लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है. मानवाधिकार आयोग के मुताबिक मृतकों का अधिकार है कि मानवीय गरिमा के साथ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को पूरा किया जाए.

शव के साथ प्रदर्शन पर होगी सजा :
- नये कानून के मुताबिक मृतक के परिजन अगर शव के साथ विरोध प्रदर्शन करते हैं या किसी को शव प्रदर्शन के लिए सौंप देते हैं, जो उन्हें 2 साल की सजा हो सकती है
- शव लेने से इनकार करने पर 1 साल की सजा का प्रावधान रहेगा
- शव के साथ नेता या गैर परिजन प्रदर्शन करते हैं , तो 5 साल तक की सजा का प्रावधान रहेगा

नये कानून में क्या है प्रावधान :
- प्रशासन 24 घंटे में अंतिम संस्कार के लिए नोटिस देगा, परिजनों के नहीं मानने पर सशर्त मजिस्ट्रेट के आदेश पर होगी अंतिम संस्कार की प्रक्रिया, जायज कारण पर इस अवधि को बढाया जा सकेगा.
- शव के साथ प्रदर्शन की आशंका पर थानाधिकार शव कब्जे में लेगा और एसडीएम को सूचना देगा, एसएचओ शव का पोस्टमॉर्टम भी करवा सकेंगे.
- लावारिस शवों को डीप फ्रीजर में रखा जाएगा. साथ ही पुरुष और महिलाओं के शवों को अलग-अलग रखा जाएगा. इन शवों के पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी होगी.
- लावारिस शवों की जेनेटिक डेटा स्टोरिंग यानि DNA प्रोफाइलिंग होगी, यह डेटा बैंक जिलेवार बनाया जाएगा.
- जेनेटिक डेटा और इससे जुड़ी जानकारी को गोपनीय रखा जाएगा, इसकी जानकारी लीक करने पर 3 से 10 साल की सजा का प्रावधान रहेगा.

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