जयपुर. राजस्थान के निर्माण में अलग-अलग रियासतों का अपना-अपना योगदान रहा है. जयपुर रियासत की अगर बात करें तो जयपुर ने 1940 में इस ओर कदम बढ़ाया था. जयपुर के महाराजा को ये उनके क्षेत्र में प्रजामंडल की गतिविधि से ये महसूस होने लग गया था कि आगे जाकर नए राज्य (राजस्थान) का निर्माण होगा. उसी को ध्यान में रखते हुए सवाई मानसिंह द्वितीय ने मिर्जा इस्माइल को हैदराबाद से बुलाकर प्रधानमंत्री बनाया. उनसे जयपुर का नवनिर्माण इस तरह से कराया कि अगर आजादी के बाद एक अलग राज्य बनता है, तो जयपुर की इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हो. आगे चलकर वही हुआ. जयपुर की चारदीवारी के बाहर का निर्माण उसी तरह से किया गया कि एक राजधानी विकसित की जा सके.
साल 1948 में राजस्थान के गठन का काम चला तब मत्स्य संघ, राजस्थान संघ बने और बाद में 30 मार्च 1949 को जयपुर सहित जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर जैसी बड़ी रियासतों का विलय होकर वृहत्तर राजस्थान संघ बना. खास बात ये रही कि उस वक्त जयपुर का ही व्यक्ति प्रधानमंत्री (तत्कालीन मुख्यमंत्री) बना, जयपुर का ही राजा राजप्रमुख और जयपुर ही राजधानी बनी. ये फैसला कई रियासतों को अखरा. लेकिन जयपुर के पास इतनी सुविधाएं थी, इतना विकास था कि कोई इस पर प्रश्न खड़े नहीं कर सकता था.
इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर महाराजा ने सार्वजनिक इमारतों का निर्माण कर स्टेट को दे दी थी. जिसमें कोई भी डिपार्टमेंट शुरू किया जा सकता था. शुरुआत में परकोटा क्षेत्र में ही सारे डिपार्टमेंट हुआ करते थे. विधानसभा, आरटीओ और पब्लिक यूटिलिटी से जुड़े डिपार्टमेंट चारदीवारी में ही थे. इसी क्षेत्र में मेव अस्पताल (महिला अस्पताल), जनाना अस्पताल भी मौजूद थे. आधुनिक रूप से बसे हुए शहर की सभी सुख-सुविधाएं जयपुर में थी. जयपुर की टक्कर में सिर्फ एक अजमेर से थी. लेकिन वहां पानी की कमी की वजह से आखिर में जयपुर को राजधानी बनाया गया. राजस्थान का गठन और जयपुर को राजधानी रेवती नक्षत्र में इंद्र योग में बनाया गया था. ये ऐसा योग था जिसकी वजह से प्रदेश में भले ही जिले लगातार बढ़ रहे हो, लेकिन राजस्थान का स्वरूप कभी नहीं बिगड़ा.