जयपुर. कहते हैं कि जिस पार्टी में अनुशासनहीनता होती है वो पार्टी आगे नहीं बढ़ पाती, लेकिन इन दिनों राजस्थान में अनुशासनहीनता का पर्याय देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस बन चुकी है. राजस्थान में जिस तरह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच राजनीतिक शीत युद्ध जारी है उसमें पार्टी का अनुशासन कहीं पीछे छूट गया है. हालांकि अनुशासनहीनता की शुरुआत तो साल 2018 में विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के चयन के बाद से ही शुरू हो गई थी. लेकिन साल 2020 में हुई सचिन पायलट की बगावत ने उसे और बल दिया. फिर 25 सितंबर 2022 को कांग्रेस आलाकमान के विधायक दल की बैठक बुलाने के फैसले का जब विधायकों ने विरोध करते हुए इस्तीफे सौंप दिए. इसके साथ रही सही कसर उस समय पूरी हो गई. 25 सितंबर के बाद तो राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के हालात ये हैं कि पहले अशोक गहलोत कोई बयान देते हैं उसके मायने निकालकर सचिन पायलट जवाब देते हैं. उसके बाद दोनों के समर्थक अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी बयानबाजी में जुट जाते हैं.
आलकमान ने साधी चुप्पी क्या तूफान से पहले की शांति :राजस्थान में हो रही बयानबाजी को लेकर कांग्रेस आलाकमान सर्कुलर जारी कर चुका है. प्रदेश के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा नेताओं को हिदायत दे चुके हैं. हालात यह है कि जिन नेताओं को राजस्थान का सह प्रभारी बनाकर आलाकमान और राजस्थान कांग्रेस के बीच की कड़ी के रूप में राजस्थान भेजा गया है. वो भी इस मामले को आलकमान के नाम पर टालते नजर आ रहे हैं. उधर इस मामले में पायलट के अल्टीमेटम के बाद छाई चुप्पी से लग रहा है कि आलाकमान अब कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के निर्णय के बाद राजस्थान कांग्रेस का स्थाई समाधान देगा.