जयपुर.राजस्थानी फिल्मों का जिक्र होते ही बाई चाली सासरिय, नानी बाई को मायरो, भोमली, डिग्गी पूरी का राजा, बालम थारी चुंदड़ी जैसे फिल्मों का नाम जहम में आता है. यह वो फिल्में हैं जिन्होंने न केवल राजस्थान बल्कि माया नगरी मुंबई तक अपनी धूम मचाई है. लेकिन अब ये सब बातें बीते जमाने सी लगती हैं. वक्त गुजरने के साथ राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी फिल्में बनना कमोबेस बंद सा हो गया है. कुछ एक फिल्म मेकर्स हैं जो राजस्थानी संस्कृति और यहां की कुरीतियों पर फिल्म बना रहे हैं. लेकिन सरकार से मिलने वाले असहयोग ने इसे सीमित कर दिया है और रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी. राजस्थानी फिल्म उद्योग को उभारने के लिए प्रदेश की गहलोत सरकार नई नीति लेकर आ रही है. इसके तहत राजस्थानी फिल्मों को मिलने वाली सब्सिडी 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख कर दी गई है.
ऐसा नहीं है कि राजस्थान में अच्छे कलाकारों या डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर की कमी है. राजस्थान के कलाकारों ने माया नगरी में अपने हुनर का लोहा मनवाया है. राजस्थान में कुछ एक फिल्म मेकर्स यहां के इतिहास और संस्कृति के साथ सामाजिक कुरीतियों पर फिल्म बना रहे हैं. लेकिन फिल्म मेकर्स की मानें तो सरकार की और से जो सहयोग मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता है. हालांकि, अब सरकार सब्सिडी 10 लाख से बड़ा कर 20 लाख कर रही है इससे थोड़ा बहुत लाभ मिलेगा. लेकिन फिल्म मेकर्स का कहना है कि सब्सिडी से कुछ खास नहीं होगा जब तक सरकार सिनेमा हॉल में राजस्थानी फिल्म के नियम नहीं बना देते. मेकर्स कहते हैं कि सरकार को ऐतिहासिक स्थलों को राजस्थानी फिल्म शूटिंग के लिए फ्री कर देना चाहिए. सरकार की नई पॉलिसी के हिसाब से अब राजस्थानी फिल्म जो सब्जेक्ट बेस और पर्यटन स्थलों पर शूट होंगी उसे 10 से की जगह 20 लाख की सब्सिडी मिलेगी. इसके साथ ही पर्यटन स्थलों पर शूटिंग करने में 50 फीसदी तक शुल्क में छूट मिलेगी. नेशनल अवार्ड लाने वाली फिल्मों को 15 लाख का अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि दी जाएगी. वहीं, ऑस्कर में जीतने पर डेढ़ करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलेगी. हालांकि, राजस्थानी कलाकारों को लगता है राज्य सरकार को अन्य राज्यों की तर्ज पर पॉलिसी बनाने की जरूत है, जिससे राजस्थानी सिनेमा को पहचान मिल सके. इस नई पॉलिसी में कलाकरों के लिए कुछ नहीं है.
राजस्थानी इतिहास, कला संस्कृति, संगीत, पर्यटन स्थल, तीज त्योहार और यहां की भाषा देश मे ही नहीं विदेश में भी अपनी पहचान रखती है. यही वजह है कि हिंदी फिल्मों की ज्यादातर शूटिंग राजस्थान के अलग अलग हिस्सों में होती है, लेकिन इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं की प्रदेश में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें आईं और गईं, लेकिन राजस्थानी सिनेमा को लेकर किसी ने बड़ी पहल नही की. इसका बड़ा उदाहरण प्रदेश में एक भी सरकारी अच्छा ड्रामा इंस्टीट्यूट नहीं होना माना जा सकता है. जब कलाकार सीखेंगे नहीं तो फिल्म अच्छी बनाएंगे कैसे. अच्छी फिल्म बनाएंगे नहीं तो फ़िल्म चलने की संभावना भी कम हो जाती है. ऐसे में जरूरत है सरकार इस दिशा में गंभीरता से विचार करे, ताकि राजस्थानी सिनेमा भी अन्य राज्यों की तरह सफलता के आयाम छू सके.
क्या है नई फिल्म पॉलिसी में...
- U ग्रेड वाली फिल्म को मिलने वाले अनुदान राशि को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख किया जा रहा है.
- U/A फिल्म को मिलने वाली अनुदान राशि को 5 से बड़ा कर 10 लाख किया जा रहा है.
- पर्यटन स्थलों पर फिल्म शूटिंग के लिए सरकार की ओर से 50 फीसदी तक कि छूट दी जाएगी.
- नेशनल अवॉर्ड जितने पर 15 लाख की पुरस्कृत राशि अलग से दी जाएगी.
- राजस्थान के किसी विषय पर बनने वाली फिल्म जैसे पानी की समस्या, शिक्षा, सामाजिक कुरीतियों पर संबंधित विभाग द्वारा भी अलग से 10 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा.
- ऑस्कर अवार्ड जितने पर 1.50 करोड़ की पुरस्कृत राशि दी जाएगी.
नई पॉलिसी में राजस्थानी फिल्म उद्योग को मिलने वाली रियायतों की ये है शर्तें...
- फिल्म को अनुदान के लिए सिनेमा हॉल में फिल्म के 100 शो प्ले करने के सर्टिफिकेशन देना होगा.
- फिल्म में 50 फीसदी कलाकार, टेक्नीशियन, सहित अन्य लोग जो फिल्म मे किसी ना किसी तरह की भूमिका निभा रहे हैं वो राजस्थानी होने चाहिए.
- फिल्म राजस्थान में बोली जाने वाली भाषा में होनी चाहिए.
- धार्मिक सद्भावना, साम्प्रदायिकता भड़काने, कुरीतियों का महिमा मंडल करने वाली फिल्मों को अनुदान नहीं मिलेगा.
- फिल्म कम से कम 75 मिनट की होनी चाहिए.
- एक बार अनुदान मिलने के बाद दस साल तक प्रोड्यूसर को अनुदान नहीं मिलेगा
फिल्स मेकर्स ने क्या दिए सुझाव ?