जयपुर. राजस्थान के विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है. इन चुनावों में अब नई सरकार के लिए 25 नवंबर को मतदान होना है. प्रदेश की राजनीति के इतिहास पर गौर किया जाए तो बीते दो दशक में गैर भाजपा शासित सरकारों के लिए तीसरे मोर्चे ने अहम भूमिका अदा की है. इस दौरान प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और सीपीएम का जहां वोट बैंक बरकरार रहा, वहीं नेशनल पीपल्स पार्टी, जमीदारा पार्टी, बीटीपी और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी जैसे राजनीतिक दलों ने भी सरकार बनने से किसी एक दल को दूर रखने का काम किया. आज भी प्रदेश में सीपीएम, बसपा, भारतीय आदिवासी पार्टी के अलावा एआईएमआईएम, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और आम आदमी पार्टी की दस्तक प्रमुख दलों के खेमे में बेचैनी कायम कर देती है. 2023 के इस मुकाबले में भी तीसरे मोर्चे की भूमिका को अहम माना जा रहा है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक अविनाश कल्ला तीसरे मोर्चे के जरिए सत्ता के कायापलट की संभावनाओं को मौजूदा परिदृश्य में खारिज करते हैं. कल्ला के मुताबिक राजस्थान का मुकाबला दो दलों के बीच ही नजर आएगा.
तीसरे मोर्चे की नहीं है प्रदेशव्यापी पहुंच :राजनीतिक विश्लेषक अविनाश कल्ला के मुताबिक प्रदेश में तीसरे मोर्चे की मौजूदगी पचास के दशक से है, तब स्वतंत्र पार्टी और रामराज्य पार्टी अस्तित्व में थी. आज भी तीसरा मोर्चा तो मौजूद है, लेकिन अब इनकी प्रदेशव्यापी पहुंच नहीं है. ये राजनीतिक दल जाति या क्षेत्र तक सीमित है. कल्ला हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि मारवाड़ में ताकत दिखाने वाली आरएलपी की जयपुर रैली इस बात की बानगी है, जहां दिखाने लायक भीड़ जुटाने के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा. इसी तरह से बीटीपी से बीएपी बनी आदिवासी पार्टी भी ट्राइबल बेल्ट में सीमित है.
इसे भी पढ़ें -Rajasthan Election 2023 : यूनिवर्सिटी में राजनीति का पाठ पढ़ाने वाले प्रोफेसर अब चुनावी मैदान में आजमाएंगे किस्मत
जीत-हार की तस्वीर साफ :अविनाशकल्ला का कहना है कि बसपा हालांकि चार से पांच फीसदी वोट बैंक तो हासिल करती है, लेकिन उनकी क्षेत्रीय पकड़ कमजोर है. आगे उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों में जातिगत अप्रोच तो नजर आती है, लेकिन आखिरी मौके पर राज्य के वोटर्स दो दलों में बंट जाते हैं. उनका दावा है कि राजस्थान में जीत-हार की तस्वीर भी हर बार की तरह इस बार भी साफ नजर आएगी. जहां प्रदेश में कांग्रेस के लिए गठबंधन की चुनौती रहेगी. हालांकि, तीसरा मोर्चा संभावना रखता है, लेकिन एकता की कमी से उसकी मारक क्षमता कम दिखती है. कल्ला ने बताया कि कैसे कई दफा हनुमान बेनीवाल जातिगत आधार पर पिछले चुनावों में दूसरे दलों में स्वजाति के प्रत्याशियों की मदद की बात को स्वीकार कर चुके हैं. उनका कहना है कि तीसरे मोर्चे का मिजाज वोट काटने वाला रहता है. इन चुनावों में गहलोत से ज्यादा नाराजगी मिनी सीएम के रूप में मिली आजादी से बेलगाम विधायकों के खिलाफ दिख रही है.
आप का क्या होगा :दिल्ली और पंजाब की सत्ता पर कायम आम आदमी पार्टी को लेकर अविनाश कल्ला का कहना है कि राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद आप की राजस्थान में एंट्री होनी ही थी. हालांकि, राजस्थान में आम आमदी पार्टी का कोई खास सियासी असर देखने को नहीं मिल रहा है. शुरुआत में लोग उनके साथ जुड़े. वो एक मूवमेंट बनाते भी दिखे, लेकिन क्षेत्रीय स्वीकार्यता वाले चेहरे के अभाव में उनकी मौजूदगी आज न के बराबर है. यहां AAP इंडिया अलाइंस में नहीं है, क्योंकि विनय मिश्रा ने दावा किया था कि उनकी पार्टी सभी 200 विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है. इसी तरह ओवैसी की जातिगत राजनीति चंद मुस्लिम सीटों तक सीमित बताने वाले कल्ला साफगोई से मानते हैं कि 10 से 12 फीसदी वोट शेयर करने वाला तीसरा मोर्चा उनके आकलन के मुताबिक इस रेस में आगे बढ़ता नजर नहीं आ रहा है.