जयपुर. राजस्थान में विधानसभा चुनाव कि रणभेरी बज चुकी है. संभव है कि अक्टूबर महीने में आचार संहिता लग जाए और सत्ताधारी दल कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के बीच सत्ता का संघर्ष शुरू हो जाए. बहरहाल बात करें कांग्रेस पार्टी की तो 1998 के बाद 25वें साल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुख्य किरदार होंगे, लेकिन राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत को न चाहते हुए भी साल 2018 की तरह इस बार भी सचिन पायलट के साथ चुनाव कि चौसर में बंटवारा करना होगा. इसका कारण साफ है कि सचिन पायलट राजस्थान में उन चंद नेताओं में से एक हैं जो भीड़ के जादूगर हैं.
2018 चुनाव में मुख्य भूमिका में रहे, लेकिन जीत के बाद पता चला संघर्ष का असली मायना : सचिन पायलट 26 साल की उम्र में जब अपने पिता की विरासत संभालते हुए दौसा से सांसद बने तो वह देश के सबसे युवा सांसद थे. इसके बाद 2009 में फिर से पायलट सांसद बने, लेकिन इस बार परिसीमन के चलते उन्हें एसटी के लिए रिजर्व हुई दौसा की अपनी परंपरागत सीट छोड़कर अजमेर जाना पड़ा, लेकिन पायलट का जादू अजमेर में भी बरकरार रहा. सचिन पायलट अजमेर से सांसद भी बने और केंद्र सरकार में 2013 तक मंत्री भी रहे.
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सचिन पायलट को राजस्थान में एक केंद्र के नेता के रूप में माना जाता था, लेकिन 2013 में कांग्रेस पार्टी के 21 सीटों पर सीमट जाने के बाद मिली जबरदस्त हार के बाद पायलट को कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर राजस्थान भेजा. हालांकि, उनकी शुरुआत खराब रही और उनके नेतृत्व में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. पायलट को लोकसभा चुनाव के कुछ समय पहले ही चार्ज मिला था तो ऐसे में लोकसभा चुनाव की हार का ठीकरा पायलट के सिर पर नहीं फूटा और पायलट राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव में जुट गए.
राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सचिन पायलट 2018 के विधानसभा चुनाव में सरकार भी कांग्रेस की बनी, लेकिन सचिन पायलट मुख्यमंत्री नहीं बन सके और अशोक गहलोत को तीसरी बार मुख्यमंत्री का पद मिला. यहीं से सचिन पायलट की राजनीति का सबसे बड़ा संघर्ष शुरू हुआ. भले ही उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ उनके रिश्ते कटूता में बदल गए. यही कारण था कि 2020 में पायलट ने गहलोत के खिलाफ विद्रोह कर दिया. इसके बाद उन्हें उपमुख्यमंत्री पद के साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी गंवाना पड़ा.
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जुलाई 2020 से लेकर अगस्त 2023 तक, 3 साल से ज्यादा समय तक सचिन पायलट कांग्रेस पार्टी में ही बिना किसी पद के रहे और 3 साल बाद सारी आशंकाओं को दरकिनार कर कांग्रेस पार्टी ने सचिन पायलट को कांग्रेस की सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाली कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल कर कांग्रेस की मुख्य धारा में शामिल किया. वर्तमान संघर्षों के बीच अब पायलट एक बार फिर राजस्थान कांग्रेस के उस युवा चेहरे के रूप में विधानसभा चुनाव में दिखाई देंगे जो बिना किसी पद के भी राजस्थान के सबसे बड़े 'Mob Catcher' के रूप में दिखाई देंगे.
चुनाव में पायलट की होगी अहम भूमिका विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट दिखेंगे 'कैप्टन' की भूमिका में : सत्ताधारी दल के प्रमुख नेता होने के बावजूद 5 साल अपनी ही सरकार के समय हाशिये पर रहे सचिन पायलट टेरिटोरियल आर्मी में 5 साल में प्रमोशन पाकर कैप्टन बने, जिसे पायलट खुद पिछले 5 साल का शायद सबसे बड़ा अचीवमेंट मानते हैं. पायलट के पिता राजेश पायलट के कद के चलते जिन सचिन पायलट को चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुआ नेता माना जाता था, वही सचिन पायलट अपने पूरे राजनीतिक जीवन में पहली बार संघर्ष करते नजर आए. अब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य बने वही कैप्टन सचिन पायलट 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने कांग्रेस के प्रमुख सेनापति के रूप में दिखाई देंगे.
कांग्रेस की अहम बैठक में सचिन पायलट