जयपुर.राजस्थान में चुनावी बिसात पर शह-मात का खेल जारी है. इस खेल में बाजी मारने के दावों के साथ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) के सुप्रीमो और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने पिछले दिनों गठबंधन करने का ऐलान किया था. अब गठबंधन के बाद पहली बार रविवार को दोनों नेता एक साथ एक मंच पर आए. हनुमान बेनीवाल ने एएसपी के चुनाव चिन्ह 'चाय की केतली' को हाथ में उठाया तो चंद्रशेखर आजाद ने रालोपा के चुनाव चिन्ह बोतल को थामा. इसके बाद दोनों एक-दूसरे के गले मिले और जमकर एक-दूजे की तारीफ की.
हर कमजोर और पीड़ित का गठजोड़ : राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के स्थापना दिवस और पार्टी की सत्ता संकल्प महारैली के समापन के अवसर पर जयपुर के विद्याधर नगर में आयोजित सभा में दोनों नेताओं ने प्रदेश की जनता से उनके गठबंधन को चुनाव में जिताकर किसान के बेटे को सत्ता की कुर्सी पर बिठाने की अपील की. इस दौरान उन्होंने भाजपा और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा. चंद्रशेखर आजाद ने अपने संबोधन के शुरुआत में कहा कि जब तक किसान कौम के बेटे को राजस्थान की सत्ता की कुर्सी पर नहीं बिठा देते तब तक वे राजस्थान के लोगों को छोड़कर नहीं जाएंगे. यह महज जाटों और दलितों का गठबंधन नहीं है, बल्कि हर कमजोर और पीड़ित का गठजोड़ है.
जातिगत झगड़े करवाए जा सकते हैं :उन्होंने कहा कि जब से दोनों पार्टियों के मोर्चे की घोषणा हुई है, राजस्थान की दोनों प्रमुख पार्टियां हिल गईं हैं. ऐसे में तय किया है कि राजस्थान के बाद इस गठबंधन को पूरे उत्तर भारत में लेकर जाएंगे. यह गठबंधन राजस्थान का भविष्य तय करेगा. इस गठबंधन से गांव के लोगों में खुशी है. उन्होंने आशंका जाहिर की कि इस गठबंधन के बाद लोगों को गुमराह करने के लिए जातिगत झगड़े करवाए जा सकते हैं. साथ ही कहा कि प्रदेश के 90 लाख नए मतदाता और पिछले चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के खिलाफ वोट करने वाले 80 लाख मतदाता यह तय करेंगे कि प्रदेश में सत्ता की कुर्सी पर कौन बैठेगा. उन्होंने दावा किया कि जनता की मांगों के आधार पर साझा चुनावी घोषणा पत्र तैयार किया जाएगा और सत्ता में आने पर छह महीनों में इस घोषणा पत्र की सभी घोषणाएं पूरी की जाएंगी.
नजदीक से भाजपा-कांग्रेस की सोच देखी है :राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने अपने संबोधन में कहा कि उन्होंने नजदीक से भाजपा और कांग्रेस की सोच देखी. उन्होंने हमेशा बारी-बारी से राज का मजा लिया है. वोट हमारा और राज उनका, लेकिन अब यह सब नहीं चलेगा. किसान और युवाओं को खुदकुशी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा था. ऐसे माहौल में राजस्थान को बचाने का संकल्प लिया और खुद की पार्टी का गठन किया. उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के कारण ही उन्होंने केंद्र में सत्तासीन एनडीए से अलग होकर प्रदेश में किसान आंदोलन का नेतृत्व किया और 70 दिन तक सड़क पर किसानों के हक की लड़ाई लड़ी. ईआरसीपी का मुद्दा लोकसभा तक उठाया. सेना में अग्निवीर योजना का भी खुलकर विरोध किया. राजस्थान में ऐसा कोई इलाका नहीं, जहां वे जनता के हक की लड़ाई लड़ने नहीं गए. हनुमानगढ़-गंगानगर में सिंचाई के मामले को लेकर किसानों के साथ पंजाब गया.