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Rajasthan Assembly Election 2023 : बीएसपी से विधायक बन कांग्रेस की बनाई सरकार, गहलोत के विरोध में गंवाया मंत्री पद अब शिवसेना के तीर से साधेंगे निशाना

राजस्थान की गहलोत सरकार में कभी मंत्री के रूप में सहयोगी रहे राजेंद्र गुढ़ा ने शनिवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट वाली शिवसेना का दामन थाम लिया है. गुढ़ा के इस कदम के बाद सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है तो कई तरह के कयास भी लगने लगे हैं. राजेंद्र गुढ़ा राजनीति के मंच पर एक ऐसा किरदार हैं, जिनके हर बयान और अंदाज ने सुर्खियां बटोरी हैं.

Rajasthan Assembly Election 2023
Rajasthan Assembly Election 2023

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 9, 2023, 5:40 PM IST

जयपुर.लाल डायरी में गहलोत सरकार के राज छिपे होने के आरोप लगाकर देशभर में चर्चित हो चुके पूर्व मंत्री और विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने शनिवार को महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना का दामन थाम लिया है. उदयपुरवाटी में हुए कार्यक्रम के दौरान सीएम एकनाथ शिंदे ने राजेंद्र गुढ़ा को शिवसेना में शामिल कर लिया. राजस्थान की राजनीति में खासतौर पर सीएम अशोक गहलोत के कभी करीबियों में गिने जाने वाले राजेंद्र गुढ़ा की राजनीतिक यात्रा काफी रोचक है. दो बार बसपा के विधायकों को साथ लेकर सीएम अशोक गहलोत को समर्थन देकर सरकार बनाने में योगदान दे चुके गुढ़ा के बयान समय-समय पर राजनीतिक हलचल को बढ़ाते रहे हैं. गहलोत के कट्टर समर्थक रहे राजेंद्र गुढ़ा के सचिन पायलट को समर्थन, अपनी ही सरकार को घेरने वाले बयान और फिर मंत्री पद से बर्खास्तगी तक हर चीज चर्चा में रही है.

दूसरी बार आए बसपा से कांग्रेस में तो मिला मंत्री पदःराजेंद्र गुढ़ा को एक साल पहले तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी के रूप में माना जाता था. राजेंद्र गुढ़ा एक बार नही बल्कि 2 बार बसपा के 6 विधायको को साथ लेकर गहलोत सरकार को समर्थन देकर पूर्ण बहुमत वाली मजबूत सरकार बना चुके हैं. साल 2008 में बसपा की टिकट पर चुनाव जीतने वाले राजेन्द्र गुढ़ा 2008 में बसपा छोड़ सभी 6 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे. गहलोत ने भी उन्हें सरकार में मंत्री बनाया, लेकिन साल 2013 में कांग्रेस के टिकट पर गुढ़ा चुनाव हार गए. 2018 में गुढ़ा मायावती को समझाने में कामयाब हुए और मायावती ने उनपर भरोसा करके बसपा का टिकट दिया.

सीएम गहलोत के साथ राजेंद्र गुढ़ा

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2018 के चुनाव के बाद जब गहलोत जोडतोड़, निर्दलीयों और आरएलडी की सहायता से सरकार चला रहे थे, तब 6 बसपा विधायको के साथ राजेंद्र गुढ़ा ने 16 सितम्बर 2019 को कांग्रेस में अपना विलय कर लिया. इससे सचिन पायलट के रूप में आंतरिक विरोध झेल रहे गहलोत की सरकार को मजबूती मिली. सभी 6 विधायकों ने सोनिया गांधी के सामने जाकर कांग्रेस की सदस्यता भी ग्रहण की. जुलाई 2020 में जब सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ विद्रोह किया तो गुढ़ा ने गहलोत का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया. इस दौरान राजेंद्र गुढा ने कई बार सचिन पायलट के विरोध में जमकर बयान बाजी की, हालांकि पार्टी में शामिल होने के करीब 2 साल बाद उन्हें मंत्री बनाया गया. इस अवधि तक राजेंद्र गुढ़ा स्वयं व साथी 5 विधायकों को सरकार मे हिस्सेदारी नहीं मिलने के लिए सचिन पायलट को ही जिम्मेदार मानते रहे.

रमेश मीणा का जूनियर बनाया तो शुरू हुई नाराजगीः राजेंद्र गुढ़ा को सीएम अशोक गहलोत ने मंत्री बनाया. बसपा से आए विधायकों में केवल राजेंद्र गुढ़ा ही थे, जिन्हें मंत्री बनाया गया. राजनीति के जानकारों की मानें तो होमगार्ड जैसा सामान्य मंत्री पद और उनके साथ 2008 में बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होने वाले रमेश मीणा को पंचायती राज मंत्री बनाए जाने से उनकी नाराजगी गहलोत के खिलाफ शुरू हुई. ये नाराजगी राज्यसभा चुनाव में इस कदर बढ़ गई कि उन्होंने खुलेआम सीएम अशोक गहलोत का विरोध करना शुरू कर दिया. जानकारों का कहना है कि राज्यसभा चुनाव में तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी को वोट दिया, लेकिन यहीं से उनकी दूरियां गहलोत से बढ़ती चली गई. ये दूरियां धीरे-धीरे सचिन पायलट की नजदीकियों में बदल गई.

सचिन पायलट के साथ अनशन पर बैठे राजेंद्र गुढ़ा व अन्य

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2020 में गहलोत के साथ तो सितम्बर 2022 में पायलट के सारथीः पिछले पांच साल में राजस्थान में जिन राजनीतिक घटनाक्रमों में राजेंद्र गुढ़ा शामिल रहे हैं, वे कभी-कभी ही देखने को मिलते हैं. 2020 में जो राजेंद्र गुढा सचिन पायलट के खिलाफ अशोक गहलोत के खेमे में मजबूती के साथ खड़े थे, वही राजेंद्र गुढा सितंबर 2022 में गहलोत का दामन छोड़ सचिन पायलट के साथ खड़े हो गए. उन्होंने इस्तीफा देने की बजाए कांग्रेस की विधायक दल की बैठक में मौजूदगी दिखाई, हालांकि इससे कुछ महीने पहले से ही राजेंद्र गुढ़ा गहलोत के खिलाफत और पायलट का समर्थन करना शुरू कर दिया था.

25 सितंबर 2022 के बाद तो उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत गहलोत के मंत्रियों व विधायकों पर जमकर निशान लगाया. इसमें प्रमुख रूप से शांति धारीवाल, महेश जोशी और प्रताप सिंह खाचरियावास जैसे मंत्री उनके सीधे निशाने पर रहे. यहां तक कि जब सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ पैदल मार्च का समापन जयपुर में किया तो सभा में उन्होंने लाल डायरी का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर ही विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोप लगा दिए.

एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी के साथ राजेंद्र गुढ़ा

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सदन में सरकार को घेरा तो गया मंत्री पदःराजेंद्र गुढ़ा लगातार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके करीबी नेताओं के खिलाफ बयान बाजी करते रहे. उन बयानबाजियों से कांग्रेस के नेताओं ने किनारा किया और कोई कार्रवाई नहीं हुई. 21 जुलाई 2023 को कांग्रेस के विधायक जब भाजपा को मणिपुर की घटना पर महिला विरोधी बताते हुए घेर रहे थे, तो मंत्री के तौर पर राजेंद्र गुढ़ा का बयान सीएम अशोक गहलोत के लिए नागवार गुजरा. सदन में राजेंद्र गुढ़ा ने कहा था कि हम महिलाओं की सुरक्षा में असफल रहे और हमें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे बर्दाश्त नहीं किया और 21 जुलाई की शाम को ही गुढ़ा को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद 26 जुलाई को राजेंद्र गुढ़ा ने विधानसभा में लाल डायरी लहराई और अपनी ही सरकार को भ्रष्टाचारी बताया तो उन्हें विधानसभा से भी निलंबित कर दिया गया.

पहले लगा जाएंगे एआईएमआईएम मेंःअपनी ही सरकार के साथ जब मंत्री रहते हुए राजेंद्र गुढ़ा का विवाद हुआ तो उसके बाद एक तस्वीर एआईएमआईएण प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के साथ आई. इसके बाद कयास लगाए जाने लगे कि राजेंद्र गुढ़ा ओवैसी की पार्टी का दामन थाम सकते हैं, लेकिन राजनीतिक जीवन में सरप्राइज देने वाले गुढ़ा ने यहां भी सभी को चौंकाया. उन्होंने शनिवार को महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी एकनाथ शिंदे गुट वाली शिवसेना की सदस्यता ग्रहण कर ली.

विवादित लाल डायरी के साथ राजेंद्र गुढ़ा

निलंबित होंगे या शोभारानी की तरह बने रहेंगे सदस्यःराजेंद्र गुढ़ा ने आज औपचारिक रूप से शिवसेना को ज्वाइन कर लिया है. ऐसे में अब नजर कांग्रेस पार्टी पर है कि पार्टी कब राजेंद्र गुढ़ा को निलंबित करती है. 26 जुलाई को गुढ़ा का विधानसभा से निलंबन भले ही उनकी ही पार्टी ने क्यों नहीं किया हो, लेकिन संगठन ने अब तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं की है. माना जा रहा है कि जल्द राजेंद्र गुढ़ा को कांग्रेस पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा, हालांकि उनकी विधानसभा की सदस्यता वापस ली जाएगी या नहीं यह आने वाला समय बताएगा. उनकी सदस्यता के मुद्दे को हवा देकर कांग्रेस ज्यादा फेमस होने का मौका देती है या फिर भाजपा विधायक शोभा रानी कुशवाहा की तरह उन्हें पार्टी से निकालकर विधानसभा सदस्यता पर कोई बात नहीं कही जाए.

इस तरह के कयास भी उठने लगेःराजेंद्र गुढ़ा ने जब लाल डायरी का मुद्दा उठाते हुए अपनी ही सरकार को घेरा तो कांग्रेस पार्टी ने उनपर भाजपा से मिले होने का आरोप लगाया. इस बीच लगातार राजेंद्र गुढ़ा यह कहते हुए नजर आते रहे कि वह किसी भी हाल में भाजपा में शामिल नहीं होंगे, लेकिन जिस शिवसेना का दामन उन्होंने थामा है, वह भाजपा का ही एक एलायंस दल है. ऐसे में चर्चा यह भी उठने लगी है कि लाल डायरी के कुछ राज सामने लाते रहने की एवज में हो सकता है कि भाजपा उदयपुर वाटी की सीट को शिवसेना के एलायंस को देकर बड़े मुद्दे को जीवित रखे.

विधानसभा में अपनी बात रखते राजेंद्र गुढ़ा

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तत्काल गुढ़ा की विधायकी नहीं जाएगीःराजेंद्र सिंह गुढ़ा के शिवसेना में शामिल होने के बावजूद तत्काल उनकी विधायकी नहीं जाएगी. गुढ़ा दलबदल कानून के दायरे में आ गए हैं, लेकिन इस कानून के तहत मेंबरशिप खत्म करने के लिए एक पूरा प्रोसेस है, जिसमें समय लगता है. जानकारों की मानें तो पहले विधानसभा स्पीकर के पास दलबदल के तहत गुढ़ा को डिस्क्वालिफाई करने के लिए याचिका लगानी होगी. कांग्रसे विधायक दल का सचेतक या कोई भी विधायक स्पीकर के पास यह याचिका लगा सकता है. विधानसभा स्पीकर इस याचिका के बाद राजेंद्र सिंह गुढ़ा को नोटिस जारी कर जवाब मांगेंगे. गुढ़ा के जवाब के बाद कोर्ट की तर्ज पर विधानसभा स्पीकर मामले की सुनवाई करेंगे, इस सुनवाई में वकील भी रहते हैं. पूरी सुनवाई के बाद स्पीकर इस पर फैसला देंगे, तब गुढ़ा की विधायकी जाएगी.

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