राजस्थान में कांग्रेस के शिक्षा मंत्री नहीं जीत पाते चुनाव जयपुर.प्रदेश में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. राजनीतिक दल चुनावी रण में दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं. टिकट वितरण को लेकर भी ये दल फार्मूले पर काम कर रहे हैं. बावजूद इसके सबसे खास बात यह है कि भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री के पद पर रहे नेता कभी भी अपनी पार्टी को निराश नहीं करते हैं और चुनावों में जीत का सेहरा बांधते आए हैं, जबकि राजनीतिक इतिहास गवाह है कि कांग्रेस के शिक्षा मंत्री 1993 से लेकर अब तक अपनी सीट नहीं बचा पाए हैं.
कहते हैं कि शिक्षा मंत्री सरकार की रीढ़ होता है. दरअसल, शिक्षा विभाग के कर्मचारी ही सबसे ज्यादा जनता से जुड़े होते हैं. ऐसे में सरकार भी अपनी नीतियों को जनता तक पहुंचाने के लिए इसी माध्यम को चुनती हैं. वर्तमान में शिक्षा विभाग में साढ़े तीन लाख से ज्यादा शिक्षक और लगभग इतने ही कर्मचारी हैं, जिनकी पकड़ शहरी क्षेत्रों से लेकर गांव-ढाणी तक होती है. ऐसे में सरकार में जो शिक्षा मंत्री होता है, उस पर शिक्षकों और कर्मचारियों को साधने, पार्टी की रीति नीति में उन्हें ढालने की अहम जिम्मेदारी होती है. पिछली सरकारों के शिक्षा मंत्री के हार-जीत की रिपोर्ट कार्ड पर नजर डालें तो कांग्रेस के शिक्षा मंत्रियों की परफॉर्मेंस बेहद खराब रहा है.
1993 भाजपा सरकार -गुलाबचंद कटारिया भाजपा सरकार में 13 दिसंबर, 1993 से 1 दिसंबर, 1998 तक शिक्षा मंत्री रहे. साल 1998 विधानसभा चुनाव में कटारिया बड़ी सादड़ी से चुनाव लड़े और उन्होंने जीत दर्ज की.
दांव पर होगी इनकी प्रतिष्ठा इसे भी पढ़ें -भीलवाड़ा में सीएम गहलोत ने की जनसुनवाई, कहा- आप ने जो मांगा मैंने दिया, अब मांगने की बारी मेरी
1998 कांग्रेस सरकार -बीडी कल्ला कांग्रेस शासन में 7 दिसंबर, 1998 से 8 दिसंबर, 2003 तक शिक्षामंत्री रहे. इसी कार्यकाल में अब्दुल अजीज 7 दिसंबर, 1998 से 14 मई, 2002 तक शिक्षा राज्यमंत्री रहे. 2003 विधानसभा चुनाव में बीडी कल्ला ने तो जीत दर्ज की, जबकि अब्दुल अजीज का टिकट ही कट गया.
2003 भाजपा सरकार - घनश्याम तिवाड़ी भाजपा सरकार में 8 दिसंबर, 2003 से 24 दिसंबर, 2007 तक शिक्षा मंत्री रहे. इसी कार्यकाल में कालीचरण सराफ को तिवाड़ी ने 24 दिसंबर, 2007 से 12 दिसंबर, 2008 तक जिम्मेदारी सौंपी. वही, वासुदेव देवनानी 31 मई, 2004 से 12 दिसंबर 2008 तक शिक्षा राज्य मंत्री पद पर रहे. 2008 विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भले ही कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन तीनों ही शिक्षा मंत्री घनश्याम तिवाड़ी, कालीचरण सराफ और वासुदेव देवनानी अपनी-अपनी सीटों को जीतने में कामयाब हुए थे.
2008 कांग्रेस सरकार - मास्टर भंवर लाल मेघवाल 19 दिसंबर 2008 से 16 नवंबर 2011 तक प्रदेश के शिक्षा मंत्री रहे. इसके बाद बृज किशोर शर्मा ने 16 नवंबर 2011 से 12 दिसंबर 2013 तक शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी संभाली. वहीं, नसीम अख्तर को इस सरकार में 17 नवंबर 2011 से 12 दिसंबर 2013 तक शिक्षा राज्यमंत्री बनाया गया. 2013 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी. मोदी लहर के चलते तीनों ही शिक्षा मंत्री मेघवाल, बृजकिशोर और नसीम अख्तर को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी.
इसे भी पढ़ें -Rajasthan Assembly Election 2023 : 1990 में सत्ता परिवर्तन के लिए भाजपा ने शुरू किया था सियासी यात्राओं का दौर, 2003 में दिखा राजस्थान में असर, जानें इतिहास
2013 भाजपा सरकार - कालीचरण सराफ प्रदेश में 20 दिसंबर 2013 से 27 अक्टूबर 2014 तक शिक्षा मंत्री रहे. इसके बाद उनको उच्च शिक्षामंत्री बना दिया गया, जबकि वासुदेव देवनानी को 27 अक्टूबर, 2014 को शिक्षा राज्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद किरण माहेश्वरी को 10 दिसंबर, 2016 को उच्च शिक्षा मंत्री का जिम्मा सौंपा गया. वहीं, 2018 के विधानसभा चुनाव में तीनों नेता अपनी-अपनी विधानसभा सीट से जीत कर आए और इतिहास दोहराया.
2018 कांग्रेस सरकार - अशोक गहलोत की तीसरी सरकार में शुरुआत में 24 दिसंबर, 2018 से 20 नवंबर, 2021 तक गोविंद सिंह डोटासरा शिक्षा मंत्री रहे, जबकि भंवर सिंह भाटी उच्च शिक्षा मंत्री रहे. इसके बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल होने पर डॉ. बीडी कल्ला को शिक्षा विभाग और उनके सहयोगी के तौर पर जाहिदा खान को शिक्षा राज्य मंत्री बनाया गया. वहीं, राजेंद्र यादव को उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई.
केवल कल्ला ही जीत पाए चुनाव - 1993 से लेकर अब तक कांग्रेस के केवल एक शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला को ही जीत नसीब हुई है. वर्तमान कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में शिक्षा विभाग को तीन मंत्री संभाल रहे हैं. ऐसे में इन तीन राजनेताओं की सीटों पर खासकर शिक्षा विभाग से जुड़े संगठन और कर्मचारियों की निगाहें जरूरी गड़ी रहेगी, क्योंकि एक बड़ा खेमा ट्रांसफर पॉलिसी नहीं बनने से नाराज है.
जबकि वेतन विसंगति, डीपीसी नहीं करना, इंग्लिश मीडियम स्कूल में शिक्षक नहीं लगा पाना भी विभाग की बड़ी नाकामी बताई जा रही है. इसी तरह उच्च शिक्षा विभाग में नए कॉलेज तो खोल दिए गए, लेकिन उन कॉलेजों को भवन उपलब्ध नहीं करा पाना, विश्वविद्यालयों की रैंकिंग गिरने से कई सवाल खड़े हुए हैं. जिनका जवाब विधानसभा चुनाव में मिल सकता है. ऐसे में देखना होगा कि क्या कांग्रेस के शिक्षा मंत्रियों के हारने के सिलसिले पर ब्रेक लगता है या फिर इतिहास अपने आप को फिर दोहराता है.