जयपुर. राजस्थान में 16 लाख दिव्यांगों से किए गए अधिकारों के दावे आज भी अधूरे हैं. सामाजिक संगठनों की ओर से लगातार आवाज उठाई जाती रही है, लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई. दिव्यांग अधिकार महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हेमंत भाई गोयल ने कहा कि स्थानीय निकायों में एक दिव्यांग को बतौर पार्षद मनोनीत करने का प्रावधान हुआ है, लेकिन ग्राम पंचायत स्तर पर अभी कार्रवाई नहीं हो पाई है.
सत्ता में भागीदारी अधूरी :हेमंत भाई गोयल ने आरोप लगाया कि सीएम गहलोत कहते हैं कि आप मांगते मांगते थक जाओगे, लेकिन मैं देता-देता नहीं थकूंगा तो फिर राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र के 11 हजार दिव्यांग स्थानीय सत्ता में भागीदारी से वंचित क्यों हैं ?.
राजस्थान में ऐसा प्रावधान क्यों नहीं : गोयल ने कहा कि दिव्यांग संगठनों के 15 साल के प्रयास के बाद प्रदेश में राजस्थान नगर पालिका अधिनियम में संशोधन कर राज्य के प्रत्येक शहरी निकाय में एक दिव्यांग को बतौर पार्षद मनोनीत करने का प्रावधान किया. 213 शहरी निकायों में से 190 से ज्यादा दिव्यांग पार्षद मनोनीत हो चुके हैं, लेकिन पंचायती राज अधिनियम में संशोधन की मांग 15 साल से अधूरी है, जबकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने सभी ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद में एक दिव्यांग को बतौर पंच व सदस्य मनोनीत करने का प्रावधान किया हुआ है. उन्होंने कहा कि इसको लेकर लगातार मुख्यमंत्री को पत्र और व्यक्तिगत मुलाकात के जरिये मांग कर चुके हैं , फिर राजस्थान में कांग्रेस सरकार ऐसा प्रावधान नहीं कर रही. वहीं, शहरी निकायों में दिव्यांग जनों को स्थानीय सत्ता में भागीदारी के बाद थ्री टायर पंचायती राज निकायों में भी प्रतिनिधित्व की आस जगी थी. उन्होंने कहा कि राजस्थान में करीब 11 हजार ग्राम पंचायत हैं, अगर राजस्थान सरकार पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर यह प्रावधान करती है तो करीब 11 हजार दिव्यांग जनों को ग्राम पंचायतों में बैठकर अपनी समस्याओं का समाधान करवाने का अवसर मिलेगा. इसको लेकर लगातार मुख्यमंत्री को पत्र और व्यक्तिगत मुलाकात के जरिए मांग कर चुके हैं, फिर राजस्थान में कांग्रेस सरकार ऐसा प्रावधान क्यों नहीं कर रही?