जयपुर. छोटी काशी के कोने-कोने में भगवान शिव के अनेक मंदिर हैं. इन्हीं में दो ऐसे खास शिवालय भी हैं, जो भक्तों के लिए साल में महज एक या दो बार खुलते हैं. हम बात कर रहे हैं सिटी पैलेस में मौजूद राजराजेश्वर और शंकरगढ़ (शिवगढ़ी या मोती डूंगरी) पर मौजूद एकलिंगेश्वर महादेव की. क्या इन मंदिरों में नियमित पूजा-आराधना होती है, आखिर भक्त केवल एक या दो दिन ही इस इन मंदिरों में दर्शन क्यों कर पाते हैं, इस रिपोर्ट में देखिए.
18 फरवरी को महाशिवरात्रि है. ऐसे में देश भर के शिवालयों में भगवान का जलाभिषेक और पूजा जाएगी. इस मौके पर आपको बताते हैं कि उन मंदिरों के बारे में जहां भक्तों को अपने भगवान के दर्शन के लिए एक साल का लंबा इंतजार करना पड़ता है. छोटीकाशी के मोती डूंगरी पर स्थित एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर. यहां महाशिवरात्रि के अलावा कोई भक्त भगवान के दर्शन नहीं कर सकता. इसी तरह जयपुर के सिटी पैलेस में मौजूद राजराजेश्वर मंदिर भी है. हालांकि ये मंदिर महाशिवरात्रि के अलावा गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) के दिन भी खुलता है.
पढ़ें.Kansua Temple of Kota :महादेव का अनूठा मंदिर, यहां शिव के साथ विराजित हैं पुत्री अशोकासुंदरी
राजराजेश्वर मंदिरः इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार राजाओं की ओर से निर्मित ये मंदिर सिर्फ शिवरात्रि पर ही खुलते हैं. सिटी पैलेस में मौजूद राजराजेश्वर मंदिर महाराजा रामसिंह का निजी मंदिर है. उन्होंने शिव के वैभवशाली स्वरूप की कल्पना करते हुए इस मंदिर का निर्माण कराया था. यहां भगवान के सोने का सिंहासन, सोने का मुकुट, नेपाल से मंगाया गया पक्षीराज का चित्र भी मौजूद है. उन्होंने बताया कि राज राजेश्वर मंदिर महाशिवरात्रि के अलावा अन्नकूट के दिन भी खुलता है. जिससे आम जनता यहां आकर भगवान के दर्शन लाभ ले सके. यहां भगवान शिव का भूतेश्वर स्वरूप के बजाय राजेश्वर स्वरूप नजर आता है.
एकलिंगेश्वर महादेव (शंकरगढ़): शिव भक्त साल भर एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर के खुलने का इंतजार करते हैं और शिवरात्रि वाले दिन देर रात से एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर के बाहर भक्तों की लम्बी कतार लग जाती है. भक्तों को इस मंदिर तक पहुंचने के लिए एक किमी की चढ़ाई करनी पड़ती है. देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि ये मंदिर सवाई जयसिंह के समय का है. इस शिवलिंग को विधिवत तरीके से प्राण प्रतिष्ठित किया गया था. भगवान शिव के नाम पर ही इसे शंकरगढ़ नाम दिया. बाद में सवाई जयसिंह के छोटे बेटे माधो सिंह जिनका ननिहाल उदयपुर में था, वहां एकलिंगेश्वर महादेव थे. ऐसे में उन्होंने यहां भी एकलिंगेश्वर महादेव होने की इच्छा व्यक्त की थी, और फिर शंकरगढ़ का नाम ही एकलिंगेश्वर महादेव किया गया.