जयपुर. संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के साहित्य विभाग में हाल ही में नियुक्त किए गए असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान का नियुक्ति विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. वहीं, जहां से फिरोज ने पीएचडी की है उस राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के प्राचार्य प्रो. अर्कनाथ चौधरी ने कहा कि ये बहस का विषय ही नहीं है. उन्होंने फिरोज खान को योग्य पात्र बताते हुए कहा कि जो साहित्य विषय फिरोज पढ़ाएंगे, उसका धर्म से कोई सीधा संबंध नहीं है.
फिरोज खान मामले पर राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के प्राचार्य प्रो. अर्कनाथ चौधरी से खास बातचीत संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में शास्त्री पुरोहित आचार्य से जुड़ी पढ़ाई होती है. इसमें हिंदू धर्म से जुड़े रीति रिवाज बताए जाते हैं. ऐसे में दूसरे धर्म के व्यक्ति को इसकी कैसे जानकारी होगी, और क्या वो इन संस्कारों को अपनाएगा. इन सवालों के साथ फिरोज खान की नियुक्ति पर सवाल उठाए गए.
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इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए ईटीवी भारत जयपुर स्थित राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में पहुंचा. जहां से फिरोज ने तालीम हासिल की और वहां बतौर गेस्ट फैकल्टी 3 साल छात्रों को शिक्षा भी दी. वहीं, संस्थान में ईटीवी भारत ने फिरोज के शिक्षक और संस्था प्राचार्य प्रोफेसर अर्कनाथ चौधरी से खास बातचीत की.
इस दौरान उन्होंने कहा कि ये बहस का विषय ही नहीं है प्रो. अर्कनाथ चौधरी ने बताया कि फिरोज बहुमुखी प्रतिभा का धनी है. साथ ही उन्होंने कहा कि पंडित वही है जो समदर्शी हो और फिरोज में ये खूबी मौजूद है. उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में वेशभूषा की बाध्यता को खारिज करते हुए कहा कि अमूमन यहां लोग धोती कुर्ता पहनकर आते हैं. लेकिन इसकी अनिवार्यता नहीं है, महज अपेक्षा की जाती रही है.
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उन्होंने बताया कि फिरोज को बीएचयू में साहित्य विषय पढ़ाना है. जिसका धर्म से कोई सीधा संबंध नहीं है. जहां तक बात है पौरोहित्य और कर्मकांड की, तो वो परंपरा से प्रशिक्षित लोग होते हैं, जिसका विभाग अलग होता है. लेकिन फिरोज की नियुक्ति इसमें नहीं की गई. हालांकि, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में भी कर्मकांड के हिस्से होते रहे हैं, जिसमें फिरोज सम्मिलित हुआ करते थे.
प्रोफेसर अर्कनाथ चौधरी ने इस विवाद को अज्ञानता या स्थानीय राजनीति का रूप बताया. जिसके तहत कुछ लोग जानबूझ कर छात्रों को भड़का रहे हैं. उन्होंने तर्क दिया कि इंटरव्यू के दौरान पैनल में विभागाध्यक्ष और डीन भी मौजूद रहे और यदि कोई बाधा होती तो कुलपति से इस विषय में चर्चा जरूर की जाती. उन्होंने बीएचयू में जो विरोध हो रहा है उसे स्वाभाविक नहीं, बल्कि कृत्रिम बताया.